प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता से, बीबीसी हिंदी के लिए
पश्चिम बंगाल में शनिवार को पहले चरण के मतदान से पहले बृहस्पतिवार को सत्ता के दोनों दावेदारों यानी तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी का हाई वोल्टेज चुनाव प्रचार थम गया। लेकिन इस दौर में दोनों दलों के प्रचार अभियान के दौरान 'खेला होबे' और आरोप-प्रत्यारोप के शोर में आम लोगों से जुड़े मुद्दे हाशिए पर ही रहे।
पहले चरण में पूर्व और पश्चिम मेदिनीपुर के अलावा बांकुड़ा, पुरुलिया और झाड़ग्राम जिलों की 30 सीटों के लिए मतदान हो रहा है। चुनाव प्रचार के आख़िरी दिन भी जहां एक तरफ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर मिथुन चक्रवर्ती ने ताबड़तोड़ रैलियां की तो दूसरी तरफ टीएमसी की स्टार प्रचारक ममता बनर्जी ने हेलीकॉप्टर और व्हीलचेयर के सहारे चार रैलियों को संबोधित किया।
पहले दौर में जिन सीटों पर मतदान होना है उनमें जंगल महल के नाम से कुख्यात रहे इलाक़े की 23 सीटें हैं।
बाक़ी सात सीटें पूर्व मेदिनीपुर में हैं। इलाक़े की बाक़ी सीटों पर मतदान दूसरे चरण में एक अप्रैल को होगा। इनमें नंदीग्राम की हाई प्रोफाइल सीट भी शामिल है जहां ममता बनर्जी का मुक़ाबला कभी अपने सबसे क़रीबी रहे शुभेंदु अधिकारी से है।
अहम सीटें जिन पर होगा मुक़ाबला
इस दौर की सबसे अहम सीटों में पुरुलिया के अलावा बांकुड़ा की छातना सीट और पश्चिम मेदिनीपुर ज़िले की खड़गपुर और पूर्व मेदिनीपुर की मेदिनीपुर सीट शामिल है। पुरुलिया और छातना की अहमियत इसलिए ज़्यादा है क्योंकि साल 2016 के चुनाव में यहां हार जीत का फ़ासला पांच हजार वोटों से भी कम रहा था। तब पुरुलिया सीट कांग्रेस के सुदीप मुखर्जी ने जीती थी और छातना सीट पर लेफ्ट की सहयोगी आरएसपी का कब्ज़ा रहा था।
साल 2016 में खड़गपुर सीट पर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने जीत हासिल की थी। लेकिन साल 2019 में उनके लोकसभा चुनाव जीत कर सांसद बन जाने के बाद यहां हुए उपचुनाव में टीएमसी ने इस सीट पर कब्ज़ा कर लिया था। टीएमसी ने इस बार वहां उपचुनाव जीतने वाले उम्मीदवार दिनेन राय को ही मैदान में उतारा है।
मेदिनीपुर सीट पर पूर्व विधायक मृगेंद्र नाथ माइती की बजाय अभिनेत्री जून मालिया के टीएमसी के टिकट पर मैदान में उतरने से यहां का मुक़ाबला भी दिलचस्प हो गया है।
पहले चरण में पूर्व मेदिनीपुर की 16 में से सात, पश्चिम मेदिनीपुर की 15 में से छह और बांकुड़ा की 12 में से चार सीटों पर मतदान होगा जबकि पुरुलिया की सभी नौ और झाड़ग्राम की सभी चार सीटों पर इसी दौर में वोट डाले जाएँगे।
फिलहाल इस दौर की 30 सीटों के लिए कुल 191 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें 21 महिलाएं हैं। इन उम्मीदवारों में एक-चौथाई के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज हैं तो 19 करोड़पति भी दौड़ में शामिल हैं। पहले दौर में उम्मीदवारों की औसत संपत्ति क़रीब 43.77 लाख रुपए हैं और इनमें से क़रीब आधे लोग ग्रेजुएट हैं।
दोनों पक्षों ने झोंकी अपनी पूरी ताकत
आंकड़ों के लिहाज से देखें तो साल 2016 में टीएमसी ने इन 30 सीटों में से 27 जीती थीं। तब कांग्रेस को दो और आरएसपी को एक सीट मिली थी। लेकिन इस बार समीकरण बदले हुए नजर आ रहे हैं। लोकसभा चुनाव में मिली कामयाबी के बाद अब बीजेपी की निगाहें इन सीटों पर हैं। पार्टी के चुनाव अभियान से भी यह समझना मुश्किल नहीं है कि उसने इलाक़े की यहां के चुनाव प्रचार में कितनी ताकत झोंकी है।
यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन-तीन चुनावी रैलियां की हैं जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खड़गपुर में रोड शो के अलावा कम से कम आठ रैलियों को संबोधित किया है। उनके अलावा बीजेपी प्रमुख जेपी नड्डा से लेकर राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक इलाक़े में प्रचार कर चुके हैं।
चुनाव प्रचार के आख़िरी दिन अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती ने भी यहां रैलियां की हैं। दूसरी ओर, यहां ममता बनर्जी ने अकेले एक दर्जन से ज़्यादा रैलियां की हैं।
टीएमसी ने इन 30 सीटों में से 29 पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। जयपुर सीट पर पार्टी के उम्मीदवार का नामांकन रद्द जाने की वजह से टीएमसी वहां एक निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन देने का फ़ैसला किया है। पहले चरण के चुनाव प्रचार से पहले ही ममता बनर्जी ने 'खेला होबे' यानी 'खेल होगा' का नारा दिया था। उनका पूरा अभियान इसी नारे और बीजेपी को बाहरी बताने पर केंद्रित रहा तो दूसरी ओर, बीजेपी ने इसी नारे को आधार बना कर उन पर ताबड़तोड़ हमले किए।
बुधवार को पूर्व मेदिनीपुर जिले के कांथी में अपनी आख़िरी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, "खेला होबे किंतु विकास का खेला होबे। ममता बनर्जी सरकार की उलटी गिनती शुरू हो गई है। दीदी का खेला शेष होबे। अमित शाह समेत दूसरे नेता भी लगातार यही कहते रहे कि खेला नहीं होगा, अब खेला ख़त्म होगा। "
उधर, ममता बनर्जी भी लगातार पलटवार करती रहीं हैं। इसी कड़ी में बुधवार की अपनी रैली में उन्होंने कहा था, "प्रधानमंत्री की कुर्सी के प्रति मेरे मन में सम्मान था। लेकिन मैंने प्रधानमंत्री मोदी से बड़ा झूठ बोलने वाला नहीं देखा है। "
'प्रचार में नहीं दिखे मुद्दे'
वरिष्ठ पत्रकार पुलकेश घोष कहते हैं, "पहले चरण के चुनाव अभियान में खेला होबे और आरोप-प्रत्यारोप के शोर में आम लोगों से जुड़े असली मुद्दे ग़ायब ही रहे। " "प्रधानमंत्री और ममता दोनों ने सत्ता में आने के बाद विकास परियोजनाओं के जरिए इलाक़े और पूरे बंगाल का चेहरा बदलने का दावा तो करते रहे, लेकिन लोग अब इन दावों की हकीकत समझ गए हैं। "
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर समीरन पाल कहते हैं, "पहले चरण के पहले का अभियान पूरी तरह एक-दूसरे पर हमला करने का अभियान रहा। इसने आम लोगों को भी असमंजस में डाल दिया है। "
"यही वजह है कि लोग अबकी खुल कर कुछ बोल नहीं रहे हैं। लोगों की यह चुप्पी क्या करेगी, इसके बारे में फिलहाल कुछ कहना मुश्किल होगा। "