पी चिदंबरम के बाद कांग्रेस के एक अन्य बड़े नेता पर सरकारी एजेंसी का शिकंजा कस गया है। कर्नाटक के चर्चित कांग्रेसी नेता डीके शिवकुमार को प्रत्यर्पण निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार कर लिया है। पिछले चार दिनों से दिल्ली में ईडी अधिकारी उनसे पूछताछ कर रहे थे।
8.33 करोड़ रुपए के मनी लांड्रिंग के एक मामले में ईडी डीके शिवकुमार से पूछताछ कर रही थी। डीके शिवकुमार एचडी कुमारस्वामी की सरकार में जल संसाधन मंत्री थे।
डीके शिवकुमार की गिरफ़्तारी की कांग्रेस ने आलोचना की है। कांग्रेस ने ट्वीट किया है कि डीके शिवकुमार की गिरफ़्तारी से सरकार अपनी नाकाम हो चुकी नीतियों और खस्ताहाल अर्थव्यवस्था से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है।
कौन हैं डीके शिवकुमार, बेंगलुरु स्थित वरिष्ठ पत्रकार इमरान कुरैशी से जानिए-
'चाहे लाखों नारे लगाए जाएं, ये डीके शिव कुमार किसी भी चीज़ से डरने वाला नहीं है। मैं अकेला आया हूं और अकेला ही जाऊंगा।' सुनने में भले ये बात नाटकीय लग रही हो लेकिन डीके शिव कुमार अपना परिचय कुछ इसी अंदाज़ में देते हैं। कर्नाटक में डीके शिव कुमार सिर्फ़ डीके नाम से जाने जाते हैं और लोकप्रिय हैं। उनके इस कथन की पुष्टि बीजेपी नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भी करते हैं।
बेंगलुरु में कर्नाटक विधानसभा को भंग किये जाने की मांग को लेकर धरने पर बैठे येदियुरप्पा ने मीडिया के सामने पढ़े गए अपने बयान में कहा, 'लोग डीके शिवकुमार की 'हरकतों' को भूले नहीं हैं। वो इस तरह के मामलों को संभालने में माहिर हैं।' येदियुरप्पा ने अपने इस बयान के समर्थन में महाराष्ट्र और गुजरात का उदाहरण भी दिया। जब शिवकुमार ने 'पार्टी हित के लिए विधायकों को पनाह दी थी।
कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के गठबंधन वाली सरकार ख़तरे में थी लेकिन दोनों ही पार्टियों के शीर्ष नेता या तो अपने घरों में आराम से बैठे हुए थे या फिर यहां वहां विरोध प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन शिवकुमार इन सबसे अलग, अकेले ही मोर्चा संभाले हुए थे।
बाकी नेताओं से अलग अंदाज़
कांग्रेस विधायक कोंडजी मोहन ने बीबीसी से कहा, 'चीज़ों को देखने का उनका रवैया किसी भी दूसरे नेता से बिल्कुल अलग है। उनकी क्षमता बेहिसाब है। वो धारणाओं को तोड़ने में माहिर हैं और पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा पर किसी तरह का सवाल ही नहीं उठाया जा सकता।'
वहीं कांग्रेस प्रचार समिति के महासचिव मिलिंद धर्मसेन कहते हैं, 'मैंने उन्हें अपने स्कूल के वक़्त से देखा है। हम एक ही गांव सथनूर से हैं। लोग नतीजों को लेकर फिक्रमंद रहते हैं लेकिन वो कभी किसी भी चीज़ से नहीं घबराते हैं। अगर उऩ्होंने कुछ हाथ में लिया है तो उसे पूरा करके ही रहते हैं।'
जिस तरह डीके शिव कुमार ने गुजरात राज्यसभा चुनाव के दौरान देश के दूसरे सबसे शक्तिशाली राजनेता और बीजेपी अध्यक्ष से दो-दो हाथ किए थे, उस लिहाज़ से धर्मसेन का बयान कुछ हद तक सही भी लगता है।
नाम न छापने की शर्त पर उनके एक सहयोगी ने कहा, 'ये अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी से सीधा-सीधा पंगा था। सभी को मालूम था कि वो बहुत बड़ा जोख़िम उठा रहे हैं और इसका भुगतान उन्हें अब तक करना पड़ रहा हैं। लेकिन वो ऐसे ही हैं।'
ऐसे क्यों हैं डीके?
उन्हें बेहद नज़दीक से जानने वाले एक शख़्स ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया, 'वो एक बेहद ठहरे हुए इंसान हैं। महत्वाकांक्षी भी हैं और उनकी इच्छा मुख्यमंत्री बनने की भी है। वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। उनका मानना है कि उनकी किस्मत में कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनना लिखा है।'
धर्मसेन भी कहते हैं कि उनका अंदाज़ ऐसा ही रहा है। वो कहते हैं 'उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए अपनी ज़मीन गिरवी रखी। साल 1985 में उन्होंने बतौर कांग्रेस उम्मीदवार सथानूर (बैंगलोर ग्रामीण जिले से) के युवाओं को एकजुट करने का काम किया। हालांकि वो एचडी देवगौड़ा के ख़िलाफ़ चुनाव नहीं जीत सके।'
हर दांव हिट
पांच साल बाद कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। शिवकुमार ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव पर लड़ा और इतिहास भी रचा। वोक्कालिगा समुदाय के मज़बूत दावेदार देवेगौड़ा हार गए। फिर दस साल बाद, शिवकुमार ने विधानसभा में देवेगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी को हराया।
और उसके बाद उस समय की सबसे बड़ी राजनीतिक हलचल मचाते हुए उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनाव में कनकपुरा लोकसभा सीट से अनुभवहीन तेजस्विनी को खड़ा कराकर देवगौड़ा को मात दी।
लेकिन इसके बाद भी जब पार्टी ने जेडीएस और देवगौड़ा परिवार से हाथ मिलाकर कर्नाटक में गठबंधन सरकार बनाने का फ़ैसला किया तो उन्होंने एक अनुशासित कार्यकर्ता की तरह पार्टी के फ़ैसले को स्वीकार कर लिया।
उनके साथ काम कर चुके कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि उन्होंने सालों से चली आ रही देवगौड़ा परिवार और वोक्कालिगा समुदाय के प्रति बनी विरोधी छवि को एक पल में ख़त्म कर दिया। इसका मतलब ये हुआ कि उन्हें ये लगता है कि जब उन्हें ज़रूरत पड़ेगी तो वो भी उनका साथ देंगे।
भविष्य को लेकर निवेश
वो हमेशा से भविष्य में निवेश करने का रवैया रखते हैं। धर्मसेन कहते हैं, 'उन्होंने मुझसे कहा था कि मूर्ख मत बनो और ज़मीन में निवेश करो। केवल ज़मीन ही है जो अच्छा रिटर्न देगी। उन्होंने ख़ुद ऐसी कई जगहों पर जमीनें खरीदीं जो उस वक़्त बिल्कुल वीरान थीं लेकिन उनकी दूरदर्शिता ही थी कि कुछ सालों बाद वो ज़मीनें क़ीमती हो गईं।' शिवकुमार को रियल एस्टेट, ग्रेनाइट और शिक्षा के क्षेत्र में रुचि रखने वाला माना जाता है।
एक पुराने कांग्रेसी नेता एलएन मूर्ति कहते हैं, 'उनके परिवार के पास कनकपुरा में कुछ ज़मीन थी। फिर जब वो 80 के दशक में मेरे सहायक बनकर काम करने आए तो उनका अपना काम करने का तरीक़ा था। वो बहुत मेहनती हैं। बहुत से लोगों को लगता है कि वो थोड़े झगड़ालू किस्म के हैं लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। उनके ख़िलाफ़ एक भी मामला दर्ज नहीं है। वो बेहद ज़मीनी हैं और उनका व्यक्तित्व भी वैसा ही है।' तो ऐसे में जब उन्होंने मुंबई पुलिस से यह कहा कि उनके पास कोई हथियार नहीं है सिर्फ़ एक दिल है तो उनका यक़ीन किया जाना चाहिए था।
अब तक सीएम क्यों नहीं बने?
बीजेपी में शामिल हो चुकीं तेजस्विनी गौड़ा कहती हैं कि अगर वो दूसरों को आगे बढ़ाते तो वे मुख्यमंत्री होते। वह किसी और को आगे बढ़ता देख पचा नहीं सकते हैं। मैं अपने बारे में ये बात नहीं कर रही हूं। योगेश्वर या एसटी सोमशेखर को ही देख लें। वो अपने अहंकार से उबर नहीं पाते हैं।
लेकिन, कांग्रेस पार्टी में ऐसे कई लोग हैं जो अब भी मानते हैं कि वे किसी न किसी दिन मुख्यमंत्री ज़रूर बनेंगे। जब उन्होंने राजनीति में क़दम रखा था तो वो सिर्फ बारहवीं पास थे।
साल दर साल पढ़ाई करते हुए उन्होंने राजनीति शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन कर लिया। उन्होंने संस्कृत के श्लोक भी पढ़ने सीखे। इसके अलावा 12वीं शताब्दी के संत बासवाना के वचन भी सीखे, जिन्हें उत्तरी कर्नाटक में मानने वाली एक बड़ी आबादी है।
डीके शिवकुमार को ख़ुद भी यक़ीन है कि उनका समय आएगा। क्योंकि उनका मानना और कहना है कि वो अब भी युवा हैं। वो महज़ 57 साल के हैं।