केटी सिल्वर, बिज़नेस रिपोर्टर
चीन की अर्थव्यवस्था जुलाई से सितंबर की तिमाही में एक साल पहले की तुलना में 4।9% ही बढ़ी है। हालांकि, यह एक साल में सबसे धीमी रफ़्तार है और विश्लेषकों के अनुमान के उलट है।
यह पिछली तिमाही से बहुत कम है, तब वृद्धि 8% थी। इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना काफ़ी मुश्किल हो सकता है।
इसके लिए बिजली की कटौती, कोविड-19 के संक्रमण मामलों में फिर से वृद्धि और चीन के कई उद्योगों पर कड़ी नीतियां लागू करने को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है।
एक विशेषज्ञ ने कहा कि यह बदलाव बाक़ी साल के लिए विकास की रफ़्तार को कम कर सकते हैं और इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। हाल के महीनों में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ने काफ़ी चुनौतियों का सामना किया है।
बिजली की कमी
सबसे पहले बिजली की सप्लाई की बात करें तो दुनिया भर में कीमतों में बढ़ोतरी के कारण कच्चे माल के दामों पर प्रभाव पड़ा है।
यह उस समय पर हो रहा है जब बीजिंग ने क्षेत्रीय सरकारों पर कार्बन उत्सर्जन कम करने को लेकर दबाव बनाया है क्योंकि चीन का लक्ष्य 2060 तक ख़ुद को कार्बन न्यूट्रल बनाना है।
चीन के कई प्रांतों ने बिजली की राशनिंग शुरू की है जिसके कारण घरों और फ़ैक्ट्रियों से बिजली गुल हो चुकी है।
इसके साथ ही यह भी संयोग हुआ है कि देश के सबसे बड़े कोयला उत्पादक प्रांत में इस समय बाढ़ आई हुई है। शानशी प्रांत चीन के कुल कोयला उत्पादन में 30% का योगदान देता है।
तेज़ बारिश के कारण कोयले के दाम ऊंचाई पर पहुंच चुके हैं और सरकार को उत्पादन क्षमता में कटौती करनी पड़ी है।
बिजली की कटौती के कारण देश के कई उद्योगों को ख़ासा मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और इनमें वे उद्योग हैं जो काफ़ी बिजली का इस्तेमाल करते हैं। इनमें सीमेंट, स्टील और एल्युमीनियम उत्पाद के उद्योग शामिल हैं।
चीन के 'फ़ैक्ट्री गेट' (वो दाम जो निर्माता उत्पाद के लिए थोक विक्रेता से लेता है) के दामों में 25 सालों में सबसे तेज़ी से बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
कोयले के बढ़ते दामों पर कैपिटल इकोनॉमिक्स के वरिष्ठ चीन अर्थशास्त्री जूलियन एवंस-प्रिचार्ड कहते हैं कि 'उद्योग में ऐसी गिरावट काफ़ी गहरी दिखाई देती है।'
प्रोपर्टी सेक्टर में संकट
यह स्थिति ऐसे समय पर पैदा हुई है जब चीन का प्रोपर्टी सेक्टर अपने क़र्ज़ों को और न बढ़ने देने के लिए दबाव बना रहा है।
ताज़ा उदाहरण चाइना एवरग्रांडे ग्रुप का है जिसने 300 अरब डॉलर से अधिक का क़र्ज़ ले रखा है और वो दिवालिया होने की कगार पर है।
एक दूसरी रियल एस्टेट कंपनी फ़ैंटेसिया ने ख़ुद को दिवालिया घोषित कर दिया है और वहीं सिनिक हॉल्डिंग्स को चेतावनी दी गई है कि वो भी उसी रास्ते पर चल रहा है।
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के यू सू कहते हैं, "प्रॉपर्टी सेक्टर में धीमी गति ठेका निर्माण, बिल्डिंग मैटेरियल और घरों की साज-सज्जा जैसे कामों की रफ़्तार को प्रभावित करेगी।"
इसके बावजूद चीन के केंद्रीय बैंक ने सप्ताह के अंत में इस संकट को अधिक ख़तरनाक न बताते हुए इस पर अपनी चुप्पी को तोड़ा था।
पीपल्स बैंक ऑफ़ चाइना के निदेशक सो लेन ने कहा था कि एवरग्रांडे की 'वित्तीय देनदारियां उसकी कुल देनदारियों की एक तिहाई से भी कम हैं और उसके क़र्ज़दार अलग-अलग तरह के हैं।"
"कोई एक वित्तीय संस्थान एवरग्रांडे के कारण ख़तरे में नहीं है। वित्तीय उद्योग पर उसके ख़तरों को नियंत्रित किया जा सकता है।"
आगे क्या हो सकता है?
सिंगापुर के यूनाइटेड ओवरसीज़ बैंक के अर्थशास्त्री वोई चेन हो कहते हैं कि ऊर्जा का संकट और संपत्ति क्षेत्र में मार का असर यह होगा कि बैंक इस साल के लिए चीन की विकास गति का अनुमान कम लगा सकते हैं।
"वास्तव में जितना हमने सोचा था नंबर उससे भी काफ़ी कम हैं। मुझे लगता है कि चौथी तिमाही में यह विकास की रफ़्तार और भी धीमी होगी क्योंकि हम ऊर्जा की कमी के कारण इसका असर देख पाएंगे।"
वहीं, गेमिंग से लेकर शिक्षा क्षेत्र की बड़ी तकनीकी कंपनियों को सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्यों के लिए लाई गई चीन की नीतियों के कारण काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
चीनी सरकार ने अगले पांच साल के लिए जो योजना सार्वजनिक की है उससे पता चलता है कि इन कंपनियों पर ये कड़ी कार्रवाई आगे भी चलेगी।
जेपी मॉर्गन असेट मैनेजमेंट के चाओपिंग सू के अनुसार, इन सुधारों का लक्ष्य लंबी अवधि के विकास के लिए है और वे अभी फ़िलहाल घरेलू खपत और निवेश पर बोझ डाल रहे हैं।
वो कहते हैं, "जुलाई से जब कई नीतिगत उपायों को लागू किया गया तो इन छोटी अवधि के झटकों को टाल पाना असंभव था।"