Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

पीएम मोदी को जून महीने में छठ की याद क्यों आई: नज़रिया

हमें फॉलो करें पीएम मोदी को जून महीने में छठ की याद क्यों आई: नज़रिया
, बुधवार, 1 जुलाई 2020 (07:52 IST)
मणिकांत ठाकुर, वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए
प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना के अवधि-विस्तार का सूत्र आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से तो जुड़ ही जाता है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय संबोधन में जैसे ही ग़रीबों/श्रमिकों को और 5 महीनों तक मुफ़्त अनाज देने का ज़िक्र आया, बात समझ में आने लगी।
 
फिर तो प्रधानमंत्री ने बिहार के मशहूर पर्व छठ का नाम लेते हुए इस योजना को उस समय तक चलाने की बात कर के मतलब साफ़ कर ही दिया।
 
ज़ाहिर है कि 5 महीने बाद यानी नवंबर तक बिहार में विधानसभा के चुनाव संपन्न हो जाएंगे और तब यह मुफ़्त राशन वाली योजना भी समाप्त हो जाएगी।
 
कोरोना के कारण उपजे हालात से इस ग़रीब कल्याण योजना को जोड़ना भले ही प्रधानमंत्री का प्रत्यक्ष भाव रहा हो, लेकिन संदेश का लक्ष्य चुनावी भी था।
 
बिहार के ग़रीब मज़दूरों में लॉकडाउन की वजह से जो पीड़ा पल रही है, उस पर चुनाव को देखते हुए मरहम लगाने के अभी और भी प्रयास हो सकते हैं।
 
लेकिन यहाँ ग़रीबों, श्रमिकों और किसानों के बीच सरकारी राशन वितरण और खाद-पानी आपूर्ति से संबंधित इतनी समस्याएँ हैं, कि थोड़े मुफ़्त अनाज जैसे प्रलोभन शायद ही असरदार हों।
 
राशन कार्ड से ले कर बीपीएल-सूची तक में इतनी सारी गड़बड़ियाँ हैं कि अनेक सरकारी राशन वितरण केंद्रों पर मारपीट जैसी स्थिति बनी रहती है। ज़रूरतमंदों के नाम सूची से, और माल स्टॉक से ग़ायब हो जाते हैं।
 
उधर खाद की क़िल्लत और डीज़ल-मूल्य वृद्धि का ये आलम है कि किसान दिन-रात सरकार को कोसते रहते हैं।
 
बिहार में सत्तापक्ष (जेडीयू-बीजेपी ) के सामने सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि राज्य में रोज़ी-रोटी कमाने का अवसर नहीं मिल पाने से निराश श्रमिक फिर बाहर जाने लगे हैं।
 
नीतीश सरकार ने राज्य में ही मज़दूरों को काम-धंधा उपलब्ध कराने का जो आश्वासन दिया था, वह पूरा होता हुआ नहीं दिख रहा। इसलिए प्रति परिवार 5 किलो मुफ़्त अनाज वाली सरकारी मदद श्रमिकों का राज्य से पलायन नहीं रोक पा रही है।
 
वैसे, आगामी पर्व-त्योहारों को देखते हुए जो श्रमिक इस कोरोना काल में बिहार से बाहर नहीं जा कर यहीं रोजीरोटी के जुगाड़ में लग जाएँगे, उन पर जेडीयू-बीजेपी की ही नहीं, राष्ट्रीय जनता दल की भी नज़र लगी रहेगी।
 
हालाँकि जैसे-जैसे चुनाव की तारीख़ें नज़दीक आती जाएँगी, वैसे-वैसे जातीय समीकरण बिठाने से लेकर धार्मिक ध्रुवीकरण कराने वाले तमाम सियासी तत्व सक्रिय हो कर ज़मीनी समस्याओं को हाशिये पर पहुँचाने लगेंगे।
 
तब सिर्फ कुछ किलो मुफ़्त अनाज से काम नहीं चलने वाला। मोटे-मोटे प्रलोभन और तमाम तिकड़म ले कर प्राय: सभी प्रमुख उम्मीदवार चुनावी बाज़ार में उतरेंगे ही।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

आज का इतिहास : भारतीय एवं विश्व इतिहास में 1 जुलाई की प्रमुख घटनाएं