भारत ने विश्व बैंक से क़र्ज़ लेने से क्यों किया इनकार

Webdunia
रविवार, 21 जुलाई 2019 (15:17 IST)
दीप्ति बथिनी
बीबीसी संवाददाता
 
एन. चंद्रबाबू नायडू सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना, आंध्रप्रदेश की राजधानी अमरावती के विकास पर संकट के बादल घिर गए हैं।
 
राज्य सरकार ने क़र्ज़ के लिए विश्व बैंक से संपर्क किया था। आंध्रप्रदेश कैपिटल रीजन डेवलपमेंट आथॉरिटी (एपीसीआरडीए) ने 2016 में विश्व बैंक को इस संबंध में एक आवेदन भेजा था।
 
विश्व बैंक ने 30 करोड़ डॉलर देने का वादा किया था जबकि बाकी का फ़ंड एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर बैंक (एआईआईबी) से मिलना था। इस परियोजना की कुल लागत का अनुमान क़रीब 71.5 करोड़ डॉलर है। लेकिन गुरुवार को विश्व बैंक की वेबसाइट पर अमरावती सस्टनेबल इन्फ़्रास्ट्रक्चर एंड इंस्टिट्यूशनल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट का स्टेटस 'रद्द' दिखा।
 
भारत, श्रीलंका और मालदीव की विशेष परियोजनाओं को लेकर विश्व बैंक के विदेशी मामलों के सलाहकार सुदीप मज़ुमदर ने बीबीसी को बताया कि भारत सरकार ने प्रस्तावित अमरावती परियोजना में वित्तीय मदद के अपने आवेदन को वापस ले लिया है।
 
उन्होंने कहा कि विश्व बैंक के कार्यकारी निदेशकों के बोर्ड को सूचना दी गई है कि सरकार के फ़ैसले के बाद प्रस्तावित परियोजना पर अब काम नहीं होगा।
 
क्या फ़ंड करने वालों ने हाथ खींच लिए?
अमरावती परियोजना के लिए एआईआईबी दूसरा सबसे बड़ा फंड दाता है। एआईआईबी प्रवक्ता लॉरेल ऑसफ़ील्ड ने बीबीसी को बताया कि अगले हफ़्ते इस परियोजना में शामिल रहने को लेकर वे विचार-विमर्श करेंगे।
 
उनके अनुसार, "एआईआईबी को पता है कि विश्व बैंक ने अमरावती परियोजना को अपनी निवेश सूची से बाहर कर दिया है। इस बारे में हमारी निवेश कमेटी अगले हफ़्ते चर्चा करेगी। हालांकि आंध्रप्रदेश सरकार के उच्च अधिकारियों ने विश्व बैंक की ओर ऐसी किसी सूचना से इनकार किया है।
 
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हम नहीं जानते कि भारत सरकार ने अपना आवेदन वापस ले लिया है। हालांकि यही अंत नहीं है। हम मानव संसाधन विकास और शहरी विकास आदि से जुड़ी अन्य परियोजना में मदद मांगेंगे।
 
इस परियोजना से जुड़े एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी का कहना था कि "जो कुछ हुआ वो अच्छा नहीं है लेकिन विश्व बैंक ही अकेला फ़ंडदाता नहीं है।
 
नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर सरकार में एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आमतौर पर कभी ऐसा नहीं होता कि विश्व बैंक कर्ज़ देने से पहले किसी तरह की जांच की मांग करे, लेकिन लैंड पूलिंग एक्ट से संबंधित कुछ शिकायतें थीं जिन्हें विश्व बैंक को भेज दी गई थीं. भारत सरकार को ये चिंता रही होगी कि एक विदेशी एजेंसी जांच कर रही है।
 
दिल्ली में वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि विश्व बैंक बहुत बाधाएं पैदा कर रहा था इसलिए भारत ने अपनी तरफ़ से आवेदन वापस ले लिया। अधिकारी ने संकेत दिया कि इस मामले में पूरी जानकारी 23 जुलाई को दी जाएगी।
 
विश्व बैंक के हटने का कारण
विश्व बैंक की वेबसाइट पर जांच पैनल की रिपोर्ट मौजूद है, जिसमें कहा गया है कि जून 2017 में जांच पैनल के चेयरमैन गोंज़ालो कास्त्रो डी ला माटा ने जांच की अपील दर्ज की थी। पैनल को इस संबंध में दो आवेदन मिले थे।
 
एक ज़मीन मालिकों की ओर से और दूसरे उस इलाक़े के किसानों की ओर से, जिसमें कहा गया था कि लैंड पूलिंग स्कीम से उन्हें नुक़सान हो रहा है।
 
इस स्कीम के तहत प्रस्तावित शहर को ज़मीन मिलनी थी। इन आरोपों की जांच के लिए 2017 में जांच पैनल ने दौरा भी किया था। सरकार के उच्च अधिकारियों ने बताया कि विश्व बैंक ने कथित अनियमितताओं की जांच की इजाज़त मांगी थी।
 
कैपिटल रीजन फ़ार्मर्स फ़ेडरेशन के मालेला सेशागिरी राव ने कहा कि विश्व बैंक के पीछे हटने के बाद अन्य फ़ंडदाता भी अपना हाथ खींचेंगे।
 
उन्होंने कहा कि अपनी ज़मीन और आजीविका को लेकर हमारे ऊपर एक अनिश्चितता छाई हुई है। डर और चिंता के मारे रातों की नींद ग़ायब हो गई है। हमारी ज़िंदगी में इस संघर्ष ने एक ऐसा निशान छोड़ दिया है जो हम ज़िंदगी भर नहीं भूल सकते। हमें उम्मीद है कि विश्व बैंक के पीछे हटने का एक व्यापक संदेश जाएगा और सरकारी और अन्य फ़ंडदाता लोगों की चिंताओं को ईमानदारी और प्रतिबद्धता से समझेंगे।
 
राज्य सरकार का क्या कहना है?
विश्व बैंक को दिए आवेदन में कहा गया था कि राजधानी अमरावती को 54,000 एकड़ ज़मीन की ज़रूरत है। इसमें दावा किया गया था कि 90 प्रतिशत जगह ज़मीन मालिकों और किसानों की सहमति से ली जा रही है। जुलाई 15, 2018 तक इन ज़मीन के टुकड़ों पर आश्रित 21,374 परिवार प्रभावित हुए थे। राज्य सरकार का कहना है कि राजधानी बनाने का काम भारत सरकार का है।
 
बीबीसी से बात करते हुए राज्य के वित्त मंत्री बी राजेंद्र रेड्डी ने कहा कि पिछली सरकार की लैंड पूलिंग स्कीम की समीक्षा के लिए मंत्रिमंडल की उप समिति का गठन किया गया है।
 
उन्होंने कहा कि बहुत सारे किसानों ने लैंड पूलिंग में अनियमितता का आरोप लगाते हुए विश्व बैंक का दरवाज़ा खटखटाया था. एक जांच पैनल बनाया गया जिसकी रिपोर्ट के आधार पर विश्व बैंक फंड जारी करने से पहले जांच कराना चाहता था।
 
ऐसा लगता है कि आर्थिक मामलों के विभाग ने इसका विरोध किया क्योंकि ये देश की संप्रभुता के हित में नहीं था। ऐसा लगता है कि पिछली राज्य सरकार ने पूरी तरह अपना होमवर्क नहीं किया था। अब क्या होगा, इस पर मंत्री ने कहा कि भारत सरकार की ओर मिले फंड के अनुसार विकास के काम किए जाएंगे।
 
उन्होंने कहा कि इतने बड़ा क़र्ज़ लेना आसान नहीं है। हम इसे कैसे अदा करेंगे? लगता है कि पिछली सरकार के निजी हित जुड़े हुए थे क्योंकि आरोप है कि पिछली सरकार से जुड़े लोगों को राजधानी के अंदर आने वाली ज़मीनों से फ़ायदा मिलने वाला था।
 
"वित्त मंत्रालय, उद्योग और पंचायत राज मंत्रालय के साथ कैबिनेट की एक उप समिति बनाई गई है जो जांच कर रही है। हम जल्द ही एक नई योजना लेकर आएंगे।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

ट्रंप क्यों नहीं चाहते Apple अपने प्रोडक्ट भारत में बनाए?

क्या है RIC त्रिगुट, रूस क्यों चाहता है फिर इसे सक्रिय करना

हेलो इंदौर ये है आपकी मेट्रो ट्रेन, जानिए Indore Metro के बारे में 360 डिग्री इन्‍फॉर्मेशन

'सिंदूर' की धमक से गिड़गिड़ा रहा था दुश्मन, हमने चुन चुनकर ठिकाने तबाह किए

खतना करवाते हैं लेकिन पुनर्जन्म और मोक्ष में करते हैं विश्वास, जानिए कौन हैं मुसलमानों के बीच रहने वाले यजीदी

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

TECNO POVA Curve 5G : सस्ता AI फीचर्स वाला स्मार्टफोन मचाने आया तहलका

फोन हैकिंग के हैं ये 5 संकेत, जानिए कैसे पहचानें और बचें साइबर खतरे से

NXTPAPER डिस्प्ले वाला स्मार्टफोन भारत में पहली बार लॉन्च, जानिए क्या है यह टेक्नोलॉजी

Samsung Galaxy S25 Edge की मैन्यूफैक्चरिंग अब भारत में ही

iQOO Neo 10 Pro+ : दमदार बैटरी वाला स्मार्टफोन, जानिए क्या है Price और Specifications

अगला लेख