अदालत से कैसे बरी हुए वरुण गांधी?

- राजेश जोशी

Webdunia
शनिवार, 9 मार्च 2013 (12:34 IST)
BBC
हिंदुओं की तरफ उठे हाथ को काट देने और मुसलमानों को बीमारी बताने के आरोपों के कारण भारतीय जनता पार्टी के सांसद वरुण गांधी को जेल जाना पड़ा था।

सन 2009 के आम चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के पीलीभीत क्षेत्र में कथित तौर पर दिए वरुण गांधी के उस भाषण को सबने टेलीविजन पर देखा और सुना पर आखिरकार तीन साल तक मुकद्दमा चलने के बाद वो अदालत से बरी कर दिए गए।

तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी ने कहा वरुण गांधी के भाषणों के टेप देखने के बाद कहा था, 'हमें ऐसा महसूस नहीं हुआ कि हमें जो टेप मिला है, उसमें कोई छेड़छाड़ हुई है।' उन्हीं के आदेश पर वरुण गांधी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हुआ।

अदालती दस्ताव ेजो ं के मुताबिक वरुण ने पीलीभीत की चुनाव सभाओं में कहा था, 'हिंदू पर हाथ उठा या कार्यकर्ता को डराने धमकाने एवं हक छीनने के लिए सिकायत मिलती है तो वरुण गांधी हाथ काट देगा। कमल***(मुसलमानों के लिए अपमानजनक शब्द) के गले काट देगा। मुस्लिम एक बीमारी है, चुनाव के बाद खत्म हो जाएगी।'

इसके बावजूद 5 मार्च 2013 को पीलीभीत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अब्दुल कैयूम ने वरुण गांधी को बाइज्जत बरी कर दिया। उत्तर प्रदेश का एक संगठन आवामी काउंसिल अब इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने पर विचार कर रहा है।

पुलिस ने वरुण गांधी पर लगे आरोपों को सिद्ध करने के लिए कुल 34 गवाह पेश किए, लेकिन फैसले के मुताबिक सभी गवाह अपने बयान से पलट गए और 'किसी साक्षी ने घटना का समर्थन नहीं किया है।' अदालत के फैसले पर नजर डालने पर कई तरह के सवाल उभरते हैं-

गवाहों के बयानों का विरोधाभास : गवाह नंबर दो बालक राम ने अदालत को बताया कि 8 मार्च, 2009 को पीलीभीत के बरखेड़ा कस्बे में 'न कोई रैली हुई...न ही वह किसी रैली में गया था। न ही किसी रैली के बारे में मुझे बताया गया था, न ही वरुण गांधी ने कोई भड़काऊ भाषण दिया और न ही कोई चुनावी रैली हुई।'

लेकिन गवाह नंबर दस, पुलिस कांस्टेबल रामेंद्र पाल ने अदालत से कहा कि 8 मार्च, 2009 को कस्बा बरखेड़ा में उनकी शांति व्यवस्था में ड्यूटी लगी थी। आने जाने वाले लोग चर्चा कर रहे थे कि वरुण गांधी ने अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित किया पर क्या कहा ये मैंने नहीं सुना।

एक गवाह कहता है कि कोई रैली नहीं हुई, दूसरा गवाह कहता है कि शांति व्यवस्था में उसकी ड्यूटी उसी जगह पर लगी थी और लोग वरुण गांधी के बारे में बातें कर रहे थे।

पर दोनों गवाहों के इन विरोधाभासी बयानों पर अदालत के फैसले में सवाल नहीं उठाए हैं।

गवाह नंबर 13, कांस्टेबल किशोर पुरी ने ये तो स्वीकार किया कि 8 मार्च को उनकी ड्यूटी कस्बा बरखेड़ा में सुरक्षा के लिए लगी थी, पर 'उस दिन कोई अप्रिय घटना नहीं हुई थी। किसी रैली आदि की जानकारी नहीं है।'

कांस्टेबल रामेंद्र पाल ने 'आने जाने वालों' से वरुण गांधी के अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करने वाली बात सुनी। पर उसी थाने के दूसरे पुलिसकर्मी किशोर पुरी को किसी रैली की जानकारी नहीं थी। ऐसा क्यों?

अदालत के फैसले में भी इस विरोधाभास का भी कोई जवाब नहीं मिलता।

गवाह नंबर 20, पुलिसकर्मी शिवकुमार मिश्रा ने स्वीकार किया है कि 3 अप्रैल 2009 को उन्होंने इंस्पेक्टर मनीराम राव के साथ जाकर मोहम्मद तारीक का एक हैंडीकैम कब्जे में लिया, जिसमें कथित तौर पर वरुण गांधी के भाषण की रिकॉर्डिंग थी।

गवाह नंबर 31 के तौर पर पेश हुए मोहम्मद तारीक ने स्वीकार किया कि वीडियो कैमरा लेकर वो बरखेड़ा गए थे और उसी की रिकॉर्डिंग चिप पुलिस को सौंपी गई। पर उन्होंने कहा कि उन्होंने वरुण गांधी का भाषण नहीं सुना।

जांच अधिकारी इंस्पेक्टर मनीराम राव ने अदालत में स्वीकार किया कि 'वीडियो कैमरा वरुण गांधी के मुकद्दमे से संबंधित है।' पर उस कैमरे में किसकी फिल्म थी? क्या ये सवाल इंस्पेक्टर मनीराम से पूछा गया? अदालत के फैसले में इसका कोई जिक्र नहीं है। अलबत्ता, इंस्पेक्टर मनीराम के साथ कैमरा कब्जे में लेने गए शिवकुमार मिश्र ने कह दिया कि उन्हें ये मालूम नहीं कि कैमरे में किसकी फ़िल्म थी।

पुलिस के एक और सब इंस्पेक्टर ललित हरीशचंद्र ने अदालत से कहा कि कस्बे में लोगों ने उन्हें बताया कि वरुण गांधी ने 'मुसलमानों के विरुद्ध कुछ कटु शब्द भी कहे।' पर अदालत ने उनकी गवाही को ये कहते हुए नहीं माना कि वो 'घटना के प्रत्यक्षदर्शी साक्षी नहीं हैं और यह लोगों द्वारा कही गई बात बता रहे हैं।'

वरुण गांधी की आवाज : जांच अधिकारी के बयान के मुताबिक वो ऐटा जेल गए और जेल अधीक्षक वीरेश राज शर्मा की अनुमति से वरुण गांधी की आवाज का नमूना लेने पहुंचे, लेकिन वरुण ने आवाज का नमूना देने से इंकार कर दिया।

पर जेल अधीक्षक वीरेश राज शर्मा ने अदालत में दिए अपने बयान में कहा कि इंस्पेक्टर मनीराम राव ने वरुण गांधी से आवाज का नमूना उनके सामने नहीं मांगा।

आवामी काउंसिल के के महासचिव असद हयात ने बीबीसी हिंदी से एक बातचीत में कहा, 'हमने अदालत में अर्जी दी थी कि वरुण गांधी से पूछे कि वो अपनी आवाज देते हैं या नहीं। अगर नहीं तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।'

लेकिन ये अर्जी खारिज कर दी गई।

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