उत्तराखंड: बाढ़ के बीच कैसे बचा केदारनाथ मंदिर?

- डॉ. खड्ग सिंह वल्दिया (मानद प्रोफेसर, जेएनसीएएसआर)

Webdunia
सोमवार, 24 जून 2013 (14:17 IST)
आखिर उत्तराखंड में इतनी सारी बस्तियां, पुल और सड़कें देखते ही देखते क्यों उफनती हुई नदियों और टूटते हुए पहाड़ों के वेग में बह गईं? जिस क्षेत्र में भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाएं होती रही हैं, वहां इस बार इतनी भीषण तबाही क्यों हुई?
BBC

उत्तराखंड की त्रासद घटनाएं मूलतः प्राकृतिक थीं। अति-वृष्टि, भूस्खलन और बाढ़ का होना प्राकृतिक है लेकिन इनसे होने वाला जान-माल का नुकसान मानव-निर्मित हैं।

अंधाधुंध निर्माण की अनुमति देने के लिए सरकार जिम्मेदार है। वो अपनी आलोचना करने वाले विशेषज्ञों की बात नहीं सुनती। यहां तक कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों की भी अच्छी-अच्छी राय पर सरकार अमल नहीं कर रही है।

वैज्ञानिक नजरिए से समझने की कोशिश करें तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार नदियां इतनी कुपित क्यों हुईं। नदी घाटी काफी चौड़ी होती है। बाढ़ग्रस्त नदी के रास्ते को फ्लड वे (वाहिका) कहते हैं। यदि नदी में सौ साल में एक बार भी बाढ़ आई हो तो उसके उस मार्ग को भी फ्लड वे माना जाता है। इस रास्ते में कभी भी बाढ़ आ सकती है।

लेकिन इस छूटी हुई जमीन पर निर्माण कर दिया जाए तो खतरा हमेशा बना रहता है।

नदियों का पथ : केदारनाथ से निकलने वाली मंदाकिनी नदी के दो फ्लड वे हैं। कई दशकों से मंदाकिनी सिर्फ पूर्वी वाहिका में बह रही थी। लोगों को लगा कि अब मंदाकिनी बस एक धारा में बहती रहेगी। जब मंदाकिनी में बाढ़ आई तो वह अपनी पुराने पथ यानी पश्चिमी वाहिका में भी बढ़ी। जिससे उसके रास्ते में बनाए गए सभी निर्माण बह गए।

केदारनाथ मंदिर इसलिए बच गया क्योंकि ये मंदाकिनी की पूर्वी और पश्चिमी पथ के बीच की जगह में बहुत साल पहले ग्लेशियर द्वारा छोड़ी गई एक भारी चट्टान के आगे बना था।

नदी के फ्लड वे के बीच मलबे से बने स्थान को वेदिका या टैरेस कहते हैं। पहाड़ी ढाल से आने वाले नाले मलबा लाते हैं। हजारों साल से ये नाले ऐसा करते रहे हैं।

पुराने गांव ढालों पर बने होते थे। पहले के किसान वेदिकाओं में घर नहीं बनाते थे। वे इस क्षेत्र पर सिर्फ खेती करते थे। लेकिन अब इस वेदिका क्षेत्र में नगर, गांव, संस्थान, होटल इत्यादि बना दिए गए हैं।

यदि आप नदी के स्वाभाविक, प्राकृतिक पथ पर निर्माण करेंगे तो नदी के रास्ते में हुए इस अतिक्रमण को हटाने के लिए बाढ़ अपना काम करेगी ही। यदि हम नदी के फ्लड वे के किनारे सड़कें बनाएंगे तो वे बहेंगे ही।
BBC

विनाशकारी मॉडल : मैं इस क्षेत्र में होने वाली सड़कों के नुकसान के बारे में भी बात करना चाहता हूं। पर्यटकों के लिए, तीर्थ करने के लिए या फिर इन क्षेत्रों में पहुंचने के लिए सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है। ये सड़कें ऐसे क्षेत्र में बनाई जा रही हैं जहां दरारें होने के कारण भू-स्खलन होते रहते हैं।

इंजीनियरों को चाहिए था कि वे ऊपर की तरफ से चट्टानों को काटकर सड़कें बनाते। चट्टानें काटकर सड़कें बनाना आसान नहीं होता। यह काफी महंगा भी होता है। भू-स्खलन के मलबे को काटकर सड़कें बनाना आसान और सस्ता होता है। इसलिए तीर्थ स्थानों को जाने वाली सड़कें इन्हीं मलबों पर बनी हैं।

ये मलबे अंदर से पहले से ही कच्चे थे। ये राख, कंकड़-पत्थर, मिट्टी, बालू इत्यादि से बने होते हैं। ये अंदर से ठोस नहीं होते। काटने के कारण ये मलबे और ज्यादा अस्थिर हो गए हैं।

इसके अलावा यह भी दुर्भाग्य की बात है कि इंजीनियरों ने इन सड़कों को बनाते समय बरसात के पानी की निकासी के लिए समुचित उपाय नहीं किया। उन्हें नालियों का जाल बिछाना चाहिए था और जो नालियां पहले से बनी हुई हैं उन्हें साफ रखना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता।

हिमालय अध्ययन के अपने पैंतालिस साल के अनुभव में मैंने आज तक भू-स्खलन के क्षेत्रों में नालियां बनते या पहले के अच्छे इंजीनियरों की बनाई नालियों की सफाई होते नहीं देखा है। नालियों के अभाव में बरसात का पानी धरती के अंदर जाकर मलबों को कमजोर करता है। मलबों के कमजोर होने से बार-बार भू-स्खलन होते रहते हैं।

इन क्षेत्रों में जल निकास के लिए रपट्टा (काज-वे) या कलवर्ट (छोटे-छोटे छेद) बनाए जाते हैं। मलबे के कारण ये कलवर्ट बंद हो जाते हैं। नाले का पानी निकल नहीं पाता। इंजीनियरों को कलवर्ट की जगह पुल बनने चाहिए जिससे बरसात का पानी अपने मलबे के साथ स्वत्रंता के साथ बह सके।

हिमालयी क्रोध : पर्यटकों के कारण दुर्गम इलाकों में होटल इत्यादि बना लिए गए हैं। ये सभी निर्माण समतल भूमि पर बने होते हैं जो मलबों से बना होता है। नाले से आए मलबे पर मकानों का गिरना तय था।

हिमालय और आल्प्स जैसे बड़े-बड़े पहाड़ भूगर्भीय हलचलों (टैक्टोनिक मूवमेंट) से बनते हैं। हिमालय एक अपेक्षाकृत नया पहाड़ है और ये अभी भी उसकी ऊंचाई बढ़ने की प्रक्रिया में है।

हिमालय अपने वर्तमान वृहद् स्वरूप में करीब दो करोड़ वर्ष पहले बना है। भू-विज्ञान की दृष्टि से किसी पहाड़ के बनने के लिए यह समय बहुत कम है। हिमालय अब भी उभर रहा है, उठ रहा है यानी अब भी वो हरकतें जारी हैं जिनके कारण हिमालय का जन्म हुआ था।

हिमालय के इस क्षेत्र को ग्रेट हिमालयन रेंज या वृहद् हिमालय कहते हैं। संस्कृत में इसे हिमाद्रि कहते हैं यानी सदा हिमाच्छादित रहने वाली पर्वत श्रेणियां। इस क्षेत्र में हजारों-लाखों सालों से ऐसी घटनाएं हो रही हैं। प्राकृतिक आपदाएं कम या अधिक परिमाण में इस क्षेत्र में आती ही रही हैं।

केदारनाथ, चौखम्बा या बद्रीनाथ, त्रिशूल, नन्दादेवी, पंचचूली इत्यादि श्रेणियां इसी वृहद् हिमालय की श्रेणियां हैं। इन श्रेणियों के निचले भाग में, करीब-करीब तलहटी में कई लम्बी-लम्बी झुकी हुई दरारें हैं। जिन दरारों का झुकाव 45 डिग्री से कम होता है उन्हें झुकी हुई दरार कहा जाता है।
BBC

कमजोर चट्टानें : वैज्ञानिक इन दरारों को थ्रस्ट कहते हैं। इनमें से सबसे मुख्य दरार को भू-वैज्ञानिक मेन सेंट्रल थ्रस्ट कहते हैं। इन श्रेणियों की तलहटी में इन दरारों के समानांतर और उससे जुड़ी हुई ढेर सारी थ्रस्ट हैं।

इन दरारों में पहले भी कई बार बड़े पैमाने पर हरकतें हुईं थी। धरती सरकी थी, खिसकी थी, फिसली थीं, आगे बढ़ी थी, विस्थापित हुई थी। परिणामस्वरूप इस पट्टी की सारी चट्टानें कटी-फटी, टूटी-फूटी, जीर्ण-शीर्ण, चूर्ण-विचूर्ण हो गईं हैं। दूसरों शब्दों में कहें तो ये चट्टानें बेहद कमजोर हो गई हैं।

इसीलिए बारिश के छोटे-छोटे वार से भी ये चट्टाने टूटने लगती हैं, बहने लगती हैं और यदि भारी बारिश हो जाए तो बरसात का पानी उसका बहुत सा हिस्सा बहा ले जाता है। कभी-कभी तो यह चट्टानों के आधार को ही बहा ले जाता है।

भारी जल बहाव में इन चट्टानों का बहुत बड़ा अंश धरती के भीतर समा जाता है और धरती के भीतर जाकर भीतरघात करता है। धरती को अंदर से नुकसान पहुंचाता है।

इसके अलावा इन दरारों के हलचल का एक और खास कारण है। भारतीय प्रायद्वीप उत्तर की ओर साढ़े पांच सेंटीमीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से सरक रहा है यानी हिमालय को दबा रहा है। धरती द्वारा दबाए जाने पर हिमालय की दरारों और भ्रंशों में हरकतें होना स्वाभाविक है।

( रंगनाथ सिंह से बातचीत पर आधारित)

वेबदुनिया पर पढ़ें

Show comments

जरूर पढ़ें

PM मोदी को पसंद आया खुद का डांस, एक्स पर किया कमेंट

राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को लिखा खुला पत्र, पढ़िए क्या सलाह दी

PM मोदी ने संविधान को बदलने और खत्म करने का मन बना लिया : राहुल गांधी

LG ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ की NIA जांच की सिफारिश, खालिस्तानी संगठन से पैसा लेने का आरोप

Lok Sabha Elections 2024: क्या वाकई 2 चरणों में कम हुई वोटिंग, SBI की Research रिपोर्ट में सामने आया सच

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

Realme के 2 सस्ते स्मार्टफोन, मचाने आए तहलका

AI स्मार्टफोन हुआ लॉन्च, इलेक्ट्रिक कार को कर सकेंगे कंट्रोल, जानिए क्या हैं फीचर्स

Infinix Note 40 Pro 5G : मैग्नेटिक चार्जिंग सपोर्ट वाला इंफीनिक्स का पहला Android फोन, जानिए कितनी है कीमत

27999 की कीमत में कितना फायदेमंद Motorola Edge 20 Pro 5G

Realme 12X 5G : अब तक का सबसे सस्ता 5G स्मार्टफोन भारत में हुआ लॉन्च