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ऑस्ट्रेलियाई युवक को महामंडलेश्वर की पदवी

Webdunia
- शालिनी जोशी (हरिद्वार से)

BBC
एक ऑस्ट्रेलियाई युवक को वैदिक श्लोकों का धाराप्रवाह पाठ करते हुए देखना आश्चर्यजनक लगता है। ऑस्ट्रेलिया के शहर सिडनी के निवासी जेसन 15 साल पहले भारत आए थे और कठोर साधना, ज्ञान और तप के बल पर जेसन को हरिद्वार के महाकुंभ में महामंडलेश्वर की पदवी मिली है।

यह विदेशी मूल के किसी संन्यासी के लिए एक दुर्लभ उपाधि है. जेसन का नाम बदलकर अब महामंडलेश्वर जसराज गिरी कर दिया गया है। उन्हें यह पदवी महानिर्वाणी अखाड़े से मिली है।

दुर्लभ अवसर : यूँ तो हरिद्वार में चल रहे महाकुंभ में आश्रमों और अखाड़ों में विदेशियों की धूम है, लेकिन हिंदू धर्म के 13 प्रमुख अखाड़ों के महंतों की श्रेणी में किसी विदेशी को महामंडलेश्वर बनाकर शामिल करना दुर्लभ अवसर है। महामंडलेश्वर का पद हिंदू महंतों के सर्वोच्च पद शंकराचार्य से दो पद नीचे माना जाता है।

महामंडलेश्वर जसराज गिरी बन चुके जेसन कहते हैं, 'मैं महामंडलेश्वर न भी बनता तो भी जो आंतरिक आनंद, संतोष और शांति मुझे हिंदू धर्म और संन्यास के इस मार्ग में मिल रही है, उसका शब्दों में बखान नहीं किया जा सकता है।'

महामंडलेश्वर बनने के लिए जरूरी योग्यताएँ हैं, संन्यासी का जीवन, वेदपाठी होना और धर्म प्रचार में महत्वपूर्ण योगदान।

महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत रवींद्र पुरी ने बताया कि जसराज पुरी ने 15 साल से भारत में रहते हुए वेदों का गहरा अध्ययन किया है और संन्यासी के धर्म का बखूबी निर्वाह किया है।

हालाँकि महानिर्वाणी अखाड़े में स्वामी विश्वदेवानंद ने जब उन्हें महामंडलेश्वर के पद पर सुशोभित किया तो वो ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रहे हमलों की ओर संकेत करना नहीं भूले।

भारत-ऑस्ट्रेलिया रिश्ते : उन्होंने कहा, 'एक ऑस्ट्रेलियाई युवक को महमंडलेश्वर बनाकर हिंदू साधु-संत ऑस्ट्रेलिया के नागरिकों को विश्व-बंधुत्व का संदेश देना चाहते हैं।'

जब यही सवाल स्वामी जसराज गिरी से पूछा गया तो उनका कहना था कि जो लोग ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हमले कर रहे हैं वे सही मायने में ऑस्ट्रेलिया के भी दुश्मन हैं।

उन्होंने बताया कि वे ऑस्ट्रेलिया जाकर दोनों देशों के बीच दोस्ती बढ़ाने का प्रयास करेंगे।

जसराज गिरी की ही तरह हिंदू धर्म, आश्रमों और संन्यास से प्रभावित होने वाले दूसरे विदेशियों की संख्या भी बहुतायत है।

अमेरिका से आए जेफ दॉनाविन और लीमा की आयाफा दोनों पति-पत्नी हैं। उनका कहना था, 'भारत की संस्कृति और हिंदू धर्म में असीम शांति है और यह महान है। कुंभ एक अमूल्य अवसर है जहाँ भारत के सभी बड़े धार्मिक आचार्यों के ज्ञान और विचारों से लाभ मिलता है। हम कर्म और मोक्ष के सिद्धातों के बारे में और जानने के लिए ही यहाँ आए हैं।'

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