उनके बीच हो रही अनौपचारिक चर्चा में खुलकर कहा जा रहा है कि बस एक और झटके का इंतजार है और वो झटका लगना भी लगभग तय हो चुका है। उनके मुताबिक गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किए जाने में जितना वक़्त लगेगा बस उतनी ही उम्र बची है इस गठबंधन की।
यह भी साफ दिखने लगा है कि रिश्ता तोड़ने और आगे की रणनीति बनाने में ये दोनों दल जुट चुके हैं। यह सवाल नहीं रहा कि पहल किसकी तरफ से होगी क्योंकि जदयू ने पहल कर दी है।
प्यार और तकरार का कॉकटेल : हाल ही दिल्ली में जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को संबोधित करते समय नरेन्द्र मोदी को लेकर नीतीश कुमार का संयम जिस तरह टूटा, उसे एक भाजपाई गुट से ही प्रेरित माना जा रहा है।
भाजपा-जदयू गठबंधन की सरकार पिछले साढ़े सात साल से बिहार की सत्ता पर काबिज है। इस दौरान दोनों पार्टियों का रिश्ता प्यार और तकरार का अजूबा कॉकटेल नजर आता रहा है।
कई बार लगा है कि यह गठबंधन अब टूटा कि तब टूटा। ऐसा खासकर तब होता है, जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का जिक्र आते ही दोनों तरफ से तल्ख बयानों का सिलसिला शुरू हो जाता है।
फिर यही गरम रुख अचानक नरम पड़ने लगता है। इसकी वजह है कि गठबंधन टूट जाने से मौजूदा संयुक्त जनाधार में बिखराव और सत्ता-सुख छिन जाने का ख़तरा इन्हें गांठों के बावजूद बंधे रहने को विवश कर देता है।
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प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी' : लेकिन इस बार भाजपा-जदयू की सत्ता-राजनीति में कूटनीति का घालमेल हो जाने से तालमेल ज्यादा बिगड़ गया है। दोनों पक्षों के तेवर ऐसे दिखने लगे हैं, जैसे आर-पार की लड़ाई लड़ने का वक्त आ गया है।
जो स्थिति अब तक थोड़ी दबी-छिपी थी, वह बिलकुल सामने उभर आई है। जदयू की यह जिद बेअसर हो चुकी है कि नीतीश कुमार को जोड़े रखने के लिए भाजपा नरेन्द्र मोदी को 'प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी' बनाने का इरादा छोड़ दे।
इन दिनों यह सवाल भी ज्यादा उभरा है कि क्या नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपाई अन्तःपुर में छिड़े अडवाणी-नरेन्द्र युद्ध में महज एक हथियार की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं?
नीतीश खेमे की तरफ से लालकृष्ण आडवाणी के समर्थन में दिए गए बयानों ने इस सवाल को काफी बल दिया है। बाद में यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे प्रमुख भाजपा नेताओं ने भी इसी सुर में सुर मिलाए।
मोदी का बदला हुआ रुख : लेकिन बिहार में भाजपा के जितने भी नेता या कार्यकर्त्ता इस सिलसिले में मुखर हुए हैं, वे सभी नीतीश कुमार के नरेन्द्र मोदी विरोधी हालिया बयानों की सख्त मजम्मत कर रहे हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे विश्वस्त और तरफदार माने जाने वाले भाजपा नेता और उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का भी रुख अब बदला हुआ दिख रहा है।
उन्होंने दिल्ली में हाल ही नीतीश कुमार की नरेन्द्र मोदी विरोधी टिप्पणियों को अनर्गल और आपत्तिजनक माना है। भाजपा कोटे के अन्य मंत्रियों ने जदयू की धर्मनिरपेक्षता वाली बात को ढोंगी राजनीति कहा है।
उधर जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता और सांसद शिवानंद तिवारी ने खुली चुनौती कुछ इन शब्दों में दी है, 'भाजपा को जो भी निर्णय लेना हो, ले सकती है। उसे किसी ने बांध के तो रखा नहीं है। लेकिन इतना तय है कि जदयू को नरेन्द्र मोदी बतौर पीएम उम्मीदवार कतई कबूल नहीं होगा।'
तनातनी के माहौल में गठबंधन का अस्तित्व : जदयू प्रवक्ता के इस तीखे तेवर के जवाब में भाजपा प्रवक्ता ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि शिवानंदजी को खुद भी पता नहीं होगा कि कल वो दल बदलकर किस पार्टी में जाएंगे।
शिवानंद तिवारी पहले लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल में थे। इस तू-तू मैं-मैं के बीच बिहार के सूचना और जनसंपर्क मंत्री वृषिण पटेल ने तो ये भी कह दिया, 'यहां गठबंधन जैसा कुछ बचा हो, ऐसा लगता नहीं है क्योंकि जदयू अपने उसूल को भाजपा के हवाले नहीं कर सकता।'
जाहिर है कि यहां सत्ताधारी गठबंधन के दोनों ख़ेमों के बीच तनातनी के माहौल में गठबंधन का अस्तित्व सिर्फ नाम के लिए कायम है। नीतीश कुमार 'नो रिटर्न' की हद तक जा पहुंचे हैं।
जब नरेन्द्र मोदी को आगामी चुनावी जरूरतों के मद्देनजर अपने शीर्ष पर बिठाना भाजपा की विवशता सी होती जा रही है तो फिर नीतीश कुमार को अपना रास्ता बदलना ही होगा। यह उन्हीं का बहुचर्चित ऐलान है।
वैसे जदयू अगर चाहे तो इस गठबंधन के बिना भी वह अपने मौजूदा विधायक संख्या बल के बूते बिहार की सत्ता में बने रह सकता है। उसे बहुमत के लिए सिर्फ छह विधायक जुटाने होंगे। कुछ दल बदलू तो इसी इंतजार में बैठे हैं।