लेकिन इसमें एक पेंच हैं। कंपनी का कहना है कि ये एकतरफा यात्रा है। यानि आप मंगल पर तो चले जाएंगे, लेकिन वापसी का कोई जुगाड़ नहीं होगा। मार्स वन की योजना मंगल पर मानव बस्ती बसाने की है। ये मिशन 2018 में संपन्न होने की उम्मीद है।
प्रकृति के रहस्यों पर से पर्दा उठाने के लिए मनुष्य हमेशा से बेकरार रहा है। इतिहास की किताबें इस बात की गवाह हैं कि जोखिम उठाने से उसने कभी परहेज नहीं किया।
इसलिए ये बात चौंकाने वाली नहीं है कि मार्स वन को पहले ही हजारों आवेदन मिल चुके हैं। मंगल पर जाने के लिए अभ्यर्थियों को रिएलटी शो की तरह की एक चयन प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा जिसका टीवी पर प्रसारण होगा।
इसलिए ये बात चौंकाने वाली नहीं है कि मार्स वन को पहले ही हज़ारों आवेदन मिल चुके हैं। मंगल पर जाने के लिए अभ्यर्थियों को रिएलटी शो की तरह की एक चयन प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा जिसका टीवी पर प्रसारण होगा।
मार्स वन के सह संस्थापक बैस लैंसडोर्प ने बीबीसी के लंदन कार्यालय पहुंचकर इस बारे में विस्तार से जानकारी दी कि मंगल का टिकट एकतरफा क्यों है।
मुश्किल : उन्होंने कहा कि पृथ्वी से मंगल पर जाने की सात-आठ महीने की यात्रा के दौरान अंतरिक्षयात्री अपनी हड्डियों और मांसपेशियों का वजन खो देंगे। मंगल के बेहद कमजोर गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में समय गुजारने के बाद उनके लिए खुद को पृथ्वी के वातावरण के मुताबिक ढ़ालना संभव नहीं होगा।
सफल अभ्यर्थियों को शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस परियोजना में टीम सभी क्षेत्रों में मौजूदा तकनीक का ही इस्तेमाल करेगी। ऊर्जा सोलर पैनलों से पैदा की जाएगी, पानी रिसाइकिल किया जाएगा और मिट्टी से निचोड़ा जाएगा। अंतरिक्षयात्री खुद अपना खाना तैयार करेंगे। उनके लिए आपात राशन का जुगाड़ होगा और हर दो साल में नए लोग उनसे जुड़ेंगे।
लेकिन क्या वास्तव में लाल ग्रह मानव बस्ती फलफूल सकती है? मंगल सूर्य से निकलने वाली हवाओं के रास्ते में पड़ता है। उसका वायुमंडलीय बेहद छितरा है। माना जाता है कि सौर हवाओं ने मंगल का ये हाल किया है।
पृथ्वी को सौर हवाओं से बचाने के लिए सशक्त चुम्बकीय क्षेत्र मौजूद है। मंगल पर भी चार अरब साल पहले ये व्यवस्था थी लेकिन आज वो इस सुरक्षा कवच से वंचित है।
संशय : एरिजोना विश्वविद्यालय के लूनर एंड प्लेनेटरी लेबोरेटरी की डॉक्टर वेरोनिका ब्रे को मार्श वन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना की सफलता पर संदेह है। उनका कहना है कि मंगल की सतह मानव के रहने के लिए उपयुक्त नहीं है।
उन्होंने कहा कि मंगल पर पानी तरल अवस्था में मौजूद नहीं है, विकिरण का स्तर बहुत ज्यादा है और तापमान बहुत तेजी से बदलता है। डॉक्टर वेरोनिका ने कहा, 'यात्रा के दौरान खासकर विकिरण सबसे बड़ी चिंता है। इससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है और आदमी नपुंसक हो सकता है।'
उन्होंने कहा, 'इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम मानव को मंगल पर भेजने में सफल हो सकते हैं। लेकिन मुझे इस बात पर संदेह है कि लोग वहां लंबे समय तक जिंदा रह पाएंगे।'
मार्स वन की परियोजना के एंबेसेडर और नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर गेरार्ड हूफ्ट भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि इसमें स्वास्थ्य से जुड़े गंभीर जोखिम हैं, लेकिन उन्हें सहनीय स्तर तक रखा जाएगा।
नासा : अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी क्लिक करें नासा के अंतरिक्षयात्री स्टेन लव को अंदाज है कि उनके साथियों को अंतरिक्ष में तकनीक के साथ किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा है।
वो हाल ही में अंटार्कटिका से लौटे हैं। उनका कहना है कि मंगल की तुलना में अंटार्कटिका पिकनिक के समान है। वहां पर्याप्त पानी है, आप बाहर निकलकर टहल सकते हैं और ताजी हवा में सांस ले सकते हैं लेकिन फिर भी कोई स्थाई तौर पर वहां नहीं रहता।'
हालांकि परियोजना के आलोचकों का कहना है कि इतनी बड़ी परियोजना के लिए पैसे का इंतजाम करना एक समस्या है। पहले ग्रुप को भेजने के लिए छह अरब डॉलर का खर्च आने की उम्मीद है।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के डॉक्टर क्रिस लिनटॉट ने कहा कि ये परियोजना तकनीकी तौर पर संभव दिखती है, लेकिन इसके लिए पैसा जुटाना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा, 'इसे संभव बनाने के लिए आपको राजनीतिक इच्छाशक्ति और वित्तीय मजबूती की जरूरत है।'
लैंसडोर्प का कहना है कि फंडिंग कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा, 'ये ऐसी चीज है जो पहली बार हो रही है। अगले 15 सालों तक लोग इसे देखते रहेंगे। ऐसे में मुझे लगता है कि फंडिंग कोई मुद्दा नहीं है।'
ये मिशन अपना लक्ष्य हासिल कर पाएगा या नहीं ये तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन बिग ब्रदर के तरह की चयन प्रक्रिया का मतलब है कि दुनिया इसे जरूर देखेगी।