मां-बाप ने छोड़ा पर सफलता ने अपनाया

Webdunia
शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011 (12:29 IST)
BBC
स्टीव जॉब्स ने ऐपल को एक के बाद एक सफल उत्पाद दिए। अपनी संपत्ति और कॉरपोरेट जगत में सफलता के बावजूद स्टीव जॉब्स सिलिकन वैली के एक विद्रोही नायक से बने रहे।

उनके काम करने का तरीका ऐसा था कि उनके साथ कई बार काम करना मुश्किल हो जाता मगर लोगों के बीच कौन सा उपकरण लोकप्रिय होगा इसकी समझ ने ऐपल को दुनिया के सबसे जाने-माने नामों में से एक बना दिया।

स्टीवन पॉल जॉब्स का जन्म 24 फरवरी 1955 को सैन फ्रांसिस्को में हुआ था और उनके माता-पिता विश्वविद्यालय के अविवाहित छात्र-छात्रा थे। मां जोआन शिबल थीं और सीरियाई मूल के पिता का नाम अब्दुलफ़तह जंदाली था।

उनके मां-बाप ने बेटे को एक कैलिफ़ोर्नियाई युगल पॉल और क्लारा जॉब्स को गोद दे दिया।

उन्हें गोद देने के कुछ ही महीनों बाद स्टीव के असली मां-बाप ने शादी कर ली और उनकी एक बेटी मोना भी हुई। मगर मोना को अपने भाई के जन्म के बारे में तब तक नहीं पता चला जब तक वह वयस्क नहीं हुईं।

वह सिलिकन वैली में जॉब्स दंपती के यहां पले-बढ़े।

भारत यात्रा
एक स्थानीय हाइ स्कूल में युवा जॉब्स को गर्मियों के दिनों में ह्युलेट पैकार्ड के संयंत्र में पालो आल्टो में काम करने का मौका मिला और उन्होंने वहां एक साथी छात्र स्टीव वोजनियाक के साथ मिलकर काम किया।

फिर एक ही साल बाद उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया और वीडियो गेम बनाने वाली कंपनी अटारी के साथ काम किया क्योंकि वह भारत जाने के लिए पैसे जमा करना चाहते थे।

स्टीव जॉब्स
जॉब्स जब भारत से लौटे तो उन्होंने बाल घुटवा लिए थे, वह भारतीय वेशभूषा में थे और नशीले पदार्थ एलएसडी का सेवन कर चुके थे। मगर उसके बाद भी वह बौद्ध जीवन पद्धति में यकीन रखते थे और आजीवन शाकाहारी रहे।

उन्होंने फिर से अटारी में काम शुरू किया और अपने दोस्ट स्टीव वोजनियाक के साथ मिलकर एक स्थानीय कंप्यूटर क्लब में जाना शुरू किया। वोजनियाक खुद का कंप्यूटर डिजाइन कर रहे थे।

जॉब्स ने 1976 में वोजनिया की 50 मशीनें एक स्थानीय कंप्यूटर स्टोर को बेच दीं और उस ऑर्डर की कॉपी के साथ एक इलेक्ट्रॉनिक्स डिस्ट्रीब्यूटर को कहा कि वह उन्हें कलपुर्जे दे दें जिसकी रकम अदायगी कुछ समय बाद हो पाएगी।

जॉब्स ने ऐपल-1 नाम से एक मशीन लॉन्च की और ये पहली ऐसी मशीन थी जिससे उन्होंने किसी से धन उधार नहीं लिया और न ही उस बिजनेस का हिस्सा किसी को दिया।

उन्होंने अपनी कंपनी का नाम अपने पसंदीदा फल पर ऐपल रखा। पहले ऐपल से हुआ लाभ एक बेहतर संस्करण का ऐपल-टू बनाने में लगा दिया गया जो कि 1977 के कैलिफोर्निया के कंप्यूटर मेले में दिखाया गया।

नई मशीनें महंगी थीं इसलिए जॉब्स ने एक स्थानीय निवेशक माइक मारकुला को मनाया कि वह ढाई लाख डॉलर का कर्ज दें और वोजनियाक को साथ लेकर उन्होंने ऐपल कंप्यूटर्स नाम की कंपनी बनाई।

ऐपल से अलग राह
उस समय के कई और कंप्यूटर से अलग ऐपल-टू छोटे-छोटे हिस्सों में नहीं आता था जिसे एकसाथ मिलाकर कंप्यूटर बनाना पड़ता।

ये नया मॉडल सफल रहा और 1993 में इसका उत्पादन बंद होने से पहले 60 लाख से ज़्यादा सेट बने।


जॉब्स ने 1984 में मैकिंटॉश बनाया मगर उसके जोर-शोर से प्रचार के पीछे ऐपल में वित्तीय मुश्किलें चल रही थीं।

बिक्री कम हो रही थी और कई लोग जॉब्स के तानाशाही रवैये से परेशान थे। इसके चलते कंपनी में एक सत्ता संघर्ष हुआ और जॉब्स को कंपनी से निकाल दिया गया।

मगर तब तक उन्होंने और चीजें सोच ली थीं और 1985 में उन्होंने नेक्स्ट कंप्यूटर नाम से कंपनी बनाई। इस कंपनी ने एक साल बाद ग्राफ़िक ग्रुप को खरीद लिया।

लोकप्रिय फ़िल्म स्टार वॉर्स के निदेशक जॉर्ज लुकास से खरीदकर जॉब्स ने उसे नया नाम पिक्सर दिया। इस कंपनी ने ऐसा महँगा कंप्यूटर एनिमेशन हार्डवेयर बनाया जिसका इस्तेमाल डिज्नी सहित कई फ़िल्म निर्माण कंपनियों ने किया।

जॉब्स ने कंप्यूर निर्माण से ध्यान हटाकर कंप्यूटर के एनिमेशन वाली फ़िल्में बनानी शुरू कर दीं।

इस क्षेत्र में बड़ी सफलता मिली 1995 में टॉय स्टोरी नाम की फ़िल्म से जिसने दुनिया भर में 35 करोड़ डॉलर बनाए। इसके बाद अ बग्स लाइफ़, फाइंडिंग नीमो और मॉन्स्टर्स इंक जैसी फ़िल्में भी आईं।

कंपनी में वापसी
एक साल बाद ऐपल ने 40 करोड़ डॉलर में नेक्स्ट को ख़रीद लिया और जॉब्स उस कंपनी में वापस लौटे जिसकी उन्होंने स्थापना की थी।

जॉब्स ने बिना समय गंवाए उस समय के ऐपल के मुख्य कार्यकारी को हटा दिया और ऐपल के नुकसान को देखते हुए कई उत्पादों का निर्माण बंद कर दिया। कंपनी ने उसके बाद उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ार का रुख़ किया।

साल 2001 में लॉन्च हुआ आइपॉड एक स्टाइल का प्रतीक बन गया। इसके सफेद इयर-फोन और पतला डिजाइन एक पहचान बन गए।

ऐपल के उपकरण स्टाइल का प्रतीक बन गए
इस मशीन को आगे बढा़ने के लिए जॉब्स ने आई ट्यून्स भी लॉन्च किया जिससे लोग अपना संगीत इंटरनेट से डाउनलोड कर सकते थे।

साल 2003 में जॉब्स को पता चला कि उन्हें अग्न्याशय यानी पैंक्रियस का कैंसर है। मगर सर्जरी कराने के बजाए उन्होंने वैकल्पिक चिकित्सा के रास्ते खोजे।

उन्होंने इस बीमारी की जानकारी सार्वजनिक नहीं की थी और ऐपल में कुछ ही लोगों को इस बारे में पता था। इसके बाद 2004 में उनका ऑपरेशन हुआ।

स्वास्थ्य
साल 2005 में डिज्नी ने सात अरब डॉलर देकर पिक्सर को खरीद लिया और इस तरह जॉब्स वॉल्ट डिज्नी की कंपनी के सबसे बड़े शेयर धारक बन गए।

दो साल बाद एक बार फिर जॉब्स का डंका गूंजा जब उन्होंने आईफ़ोन लॉन्च किया। उसके लिए लोग दुनिया भर में घंटों-घंटों ऐपल के शोरूम के बाहर लाइन लगाकर खड़े रहे।

जॉब्स काले रंग के गोल गले वाले जंपर और रंगहीन सी हो रही जीन्स में ही नए-नए उपकरण लॉन्च करते रहे और ये उनकी एक पहचान सी बन गई।

एक बार फिर जॉब्स की सेहत को लेकर 2009 में अटकलों का बाज़ार गर्म हुआ और तब घोषणा की गई कि जॉब्स छह महीने की छुट्टी लेकर आराम करने जा रहे हैं।

अगले साल अप्रैल में उनका लिवर प्रतिरोपण हुआ और डॉक्टरों ने कहा कि उनकी सेहत सुधर रही है।

मगर जनवरी 2011 में ऐपल की ओर से घोषणा हुई कि स्वास्थ्य कारणों से जॉब्स छुट्टी लेंगे।

माइक्रोसॉफ़्ट के बिल गेट्स से बिल्कुल उलट स्टीव जॉब्स ने लोकहित के कामों में निजी धन का इस्तेमाल नहीं किया।

साथ ही उन्होंने पर्यावरण की चिंता को भी नहीं अपनाया। ऐपल अक्सर ग्रीनपीस के निशाने पर रहता था क्योंकि उसके उत्पाद आसानी से फिर से इस्तेमाल हो सकने वाले नहीं होते।

स्टीव जॉब्स अपने आप में अनोखे किस्म के व्यक्ति थे जिनका अपनी क्षमताओं में भरोसा था पर अगर उनसे कोई असहमत हुआ तो उसके प्रति उनमें धैर्य ज़्यादा नहीं था।

मगर हां वो उपभोक्ताओं की जरूरतों पर नजर रखते थे और कहते थे, 'आप उपभोक्ताओं से ये नहीं पूछ सकते कि आपको क्या चाहिए और फिर उन्हें वो बनाकर देने की कोशिश हो क्योंकि जब तक आप वो बनाएंगे लोगों को कुछ और नया चाहिए होगा।'

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