सिर्फ खंडहर बाकी रह गए हैं

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- रियाज सुहैल (बीबीसी उर्दू संवाददाता, कराची)

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राजस्थान और गुजरात की सीमा से सटा हुआ सिंध का मरुस्थल थर किसी समय में जैन धर्म के प्रचारकों का बड़ा केंद्र हुआ करता था, लेकिन आज उन लोगों की यादें केवल कुछ लोगों के जेहन में हैं।

इस क्षेत्र में स्थित कुछ प्राचीन मंदिर उन लोगों की मौजूदगी का एहसास दिलाते हैं। यह मंदिर समय बीतने के साथ-साथ खंडहर बनते जा रहे हैं। सिंध के थरपाकर जिले के जनपद मिट्ठी से करीब पाँच सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित वीरा वाह शहर, पारी नगर, बडोसर और नंगरपार्कर के क्षेत्र में प्राचीन जैन मंदिर हैं।

राष्ट्रीय धरोहर की निगरानी करने वाले सरकारी विभाग के एक अधिकारी कलीमुल्लाह लाशारी ने बीबीसी को बताया, 'यह इलाका जैन धर्म के मानने वालों का गढ़ रहा है और इस्लाम आने से पहले 13वीं शताबदी तक जैन समुदाय व्यापार में सब से आगे थे।'

उन्होंने आगे कहा, 'अभी जो मंदिर हैं वह 12वीं और 13वीं शताबदी में बनाए गए थे।'

सिर्फ याद बाकी है : वीरा वाह के पास कच्छ के रण का इलाका है और कहा जाता है कि किसी समय में यहाँ तक समुद्र था और पारी नगर उसका बंदरगाह था और जैन समुदाय इस रास्ते से व्यापार करते थे। कलीमुल्लाह लाशारी के अनुसार समुद्र की दिशा बदलने के साथ-साथ इस इलाके में व्यापार पर भी काफी प्रभाव पड़ा।

नंगरपार्कर में रहने वाले 85 वर्षीय अल्लाह नवाज खोसो ने बताया कि जैन समुदाय के लोग इंसानों के साथ-साथ जानवरों का ध्यान रखते थे और सफाई का बहुत ख्याल रखते थे।

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बीते हुए दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया, 'जैन समुदाय के लोग सूर्यास्त से पहले अपना खाना खा लेते थे और घरों में दिया या बत्ती रोशन नहीं करते थे ताकि कीड़े उससे जल कर मर ना जाएँ।'

विभाजन के समय तक जैन समुदाय के लोग उन इलाकों में मौजूद थ े, लेकिन अब वहाँ कोई भी नहीं है।

नंगरपार्कर में स्थित मंदिर के एक पुजारी चुन्नी लाल भी उन कुछ लोगों में शामिल हैं जिन्होंने जैन समुदाय के आखिरी परिवार को देखा। उन्होंने बताया कि वे वीरा वाह, बडोसर और नंगरपार्कर में बड़ी संख्या में रहते थे।

विभाजन का असर : अल्लाह नवाज के अनुसार पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव और युद्ध ने जैन समुदाय को यह इलाका छोड़ने पर विवश किया।

उन्होंने कहा, 'उन लोगों की पूजा तो काफी समय से बंद हो गई थी और पाकिस्तान बनने के साल यानी 1947 में वह अपनी मूर्तियाँ लेकर यहाँ से चले गए और बाकी कुछ परिवार मौजूद थे वे भी 1971 में भारत और अन्य देशों में चले गए।'

पाकिस्तान सरकार ने जैन मंदिरों को राष्ट्रोय धरोहर करार दिया है, लेकिन उनकी सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है।

भारत में जब बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ तो उसका विरोध नंगरपार्कर तक देखा गया और कुछ लोगों ने मंदिरों को नुकसान पहुँचाया। वहीं वर्ष 2001 में आए भूकंप ने इसको और कमजोर कर दिया।

सरकारी अधिकारी कलीमुल्लाह लाशारी ने बताया कि अब सरकार ने इन मंदिरों की सुरक्षा के लिए एक परियोजना बनाई है और मंदिरों के निर्माण का काम तुंरत शुरू किया जाएगा।

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