सुस्त रफ्तार से चलती एक सड़क

Webdunia
- विनोद वर्मा (हाइवे हिंदुस्तान से)

BBC
एक ओर स्वर्णिम चतुर्भुज है। दस साल में देश के चार बड़े महानगर इस शानदार सड़क से जुड़ गए और अब उस पर गाड़ियाँ दौड़ रही हैं। दूसरी ओर एक सड़क है बंगलुरु से मैसूर जाने वाली।

बंगलुरु यानी कर्नाटक की वर्तमान राजधानी और मैसूर यानी बीते जमाने में टीपू सुल्तान के राज्य की राजधानी। इस सड़क को ठीक करने की एक परियोजना पिछले पंद्रह सालों से चल रही है, लेकिन अभी भी सामने ढेरों रुकावटें हैं।

सरकार किसानों की जमीनें लेना चाहती है, लेकिन किसान अपनी जमीन नहीं देना चाहते। किसी भी कीमत पर नहीं। ऐसा नहीं है कि वे सड़क के खिलाफ हैं वो तो सरकार की उस परियोजना के खिलाफ हैं जिसे वह एक निजी कंपनी के साथ मिलकर पूरा कर रही है।

एक किसान रंगनाथ कहते हैं, 'सरकार को सड़क बनानी है तो उचित मूल्य देकर जमीन ले, लेकिन हम किसी टाउनशिप के लिए अपनी जमीन हरगिज नहीं देंगे।'

ये बात आपको थोड़ा चौंका सकती है कि सड़क की परियोजना का टाउनशिप से क्या लेना देना, लेकिन यह कर्नाटक सरकार की पहली पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप परियोजना का हिस्सा है.

1995 में शुरू हुई इस परियोजना में सरकार ने वादा किया था कि वह इस कंपनी को सड़क को चौड़ा करने के लिए जमीन दिलवाएगी ही साथ ही सवा सौ किलोमीटर लंबे इस मार्ग पर पाँच टाउनशिप के लिए भी जमीन दिलवाएगी।

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा उस समय कर्नाटक के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और उन्होंने यह समझौता किया था। अब वे कहते हैं कि अब किसानों की हालत देखकर बहुत पीड़ा होती है।

उन्होंने बीबीसी से कहा, 'मुझे बहुत खेद है कि मैंने यह परियोजना शुरू की। मैं खुद भी किसान हूँ और आज जब किसानों की हालत देखता हूँ तो मुझे बहुत दुख होता है।'

देवेगौड़ा के बाद से राज्य में चार मुख्यमंत्री और आ गए लेकिन परियोजना का विवाद चल रहा है। अब कई मामले अदालत में हैं, लेकिन किसी ने इस परियोजना को रोकने की कोशिश नहीं की।

देवेगौड़ा इसके पीछे भ्रष्टाचार देखते हैं, लेकिन बंगलुरु के अखबार डेक्कन क्रॉनिकल के ब्यूरो प्रमुख भास्कर हेगड़े मानते हैं कि यह तो सरकारों के लिए कर्नाटक की विश्वसनीयता का प्रश्न है।

वे कहते हैं, 'यह परियोजना कर्नाटक सरकार की पहली पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप परियोजना थी। अब अगर सरकार इससे हटेगी तो निवेशकों में यह संदेश चला जाएगा कि कर्नाटक सरकार निजी भागीदारी वाली योजना के प्रति गंभीर नहीं है। इसलिए यह चल रही है।'

हो सकता है कि सरकार एक कंपनी के साथ अपनी भागीदारी पर ईमानदार रहे और अपनी विश्वसनीयता को बचा ले जाए लेकिन किसानों का भरोसा सरकारों से उठने लगा है।

बंगलुरु से बमुश्किल बीस किलोमीटर दूर पाँच गाँव के लोगों को फिर से नोटिस मिला है कि वे गाँवों को खाली कर दें।

गोंडीपुरा गाँव के एक बुजुर्ग किसान चेन्नप्पा पूछते हैं कि उन्हें किसके लिए बेदखल किया जा रहा है, 'अगर हम लोगों को हटना है तो किसके लिए टाउनशिप का निर्माण होगा? अंग्रजों और अमरीकन लोगों के लिए? क्यों उनके लिए हम जमीन खाली कर दें?'

धोखा : किसानों को लगता है कि सड़क के नाम पर उन्हें ठगा जा रहा है। किसान रंगनाथ कहते हैं, 'हमसे पहले कहा गया था कि सड़क बनाने के लिए जमीन दी जानी है, लेकिन अब पता चल रहा है कि हमें धोखा दिया जा रहा है।'

गोंडीपुरा के पास ही तिपूर गाँव के पूर्व फौजी बीजी चंद्रशेखर कहते हैं कि सरकार ने साजिश करके अच्छी खेती वाली जमीनों को बंजर जमीन बता दिया है जिससे कि टाउनशिप के लिए जमीन ली जा सके।

उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इसके खिलाफ पत्र भी लिखा है। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा को लगता है कि इस परियोजना से जुड़ी कंपनी नंदी इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर इंटरप्राइस यानी नाइस की जाँच हो तो यह मामला भी एनरॉन या सत्यम की तरह निकलेगा।

देवेगौड़ा के या किसानों के इन आरोपों का जवाब देने के लिए नाइस की ओर से कोई अधिकारी इस समय बात करने को तैयार नहीं। जब हमने कोशिश की तो बताया गया कि चूँकि मामला अदालत में है वे इस समय कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते।

कंपनी और सरकार के बीच चाहे जो हो, इस समय तो किसानों की जान साँसत में है। अभी सरकार उनकी जमीनों की नई कीमत तय करने वाली है, लेकिन वे जाएँगे कहाँ यह नहीं पता।

एक किसान पूछते हैं, 'अभी बताया नहीं है कि गाँव खाली करके हम कहाँ जाएँगे। क्या पता हमें गुजरात या पश्चिम बंगाल जाने को कह दिया जाए।'

किसान कहते हैं कि सरकार उनकी जमीन कौड़ियों के मोल लेना चाहती हैं। पत्रकार भास्कर हेगड़े कहते हैं कि सरकार को किसानों को ध्यान में रखकर कुछ सोचना चाहिए।

उन्होंने कहा, 'सरकार किसानों से नए सिरे से बात कर रही है। हो सकता है कि इस बार किसानों को लाखों रुपयों का प्रस्ताव दिया जाए लेकिन वह पर्याप्त नहीं है। सरकार को किसानों के बारे में कुछ सोचना चाहिए।'

लेकिन सरकारें तो इस परियोजना पर पिछले 15 सालों से सोच रही है। किसानों के इस मुद्दे पर अब राजनीतिक रोटियाँ भी सिक रही हैं।

इस बीच पता नहीं किसान क्या करेंगे क्योंकि वे इस समय तो जान देने तक की बात कर रहे हैं। इस सवा सौ किलोमीटर लंबी सड़क को चलते हुए 15 बरस बीत गए पता नहीं अभी इसे और कितना चलना होगा।

Show comments

जरूर पढ़ें

PM Modi UK Visit : PM मोदी की ब्रिटिश प्रधानमंत्री स्टार्मर से मुलाकात, FTA पर दोनों देशों के हस्ताक्षर, क्या होगा सस्ता

Extra marital affairs के कारण एक और पाकिस्तानी क्रिकेटर का निकाह टूटने की कगार पर

कौन हैं अजय सेठ, जो संभालेंगे IRDAI की कमान?

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उपराष्ट्रपति चुनाव में INDIA गठबंधन की एकता की अग्निपरीक्षा!

बिहार SIR : चुनाव आयोग ने दी बड़ी राहत, 1 माह में जुड़वा सकेंगे वोटर लिस्ट में नाम

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

iQOO Z10R 5G : 5,700mAh और 50MP कैमरे वाला सस्ता स्मार्टफोन

Apple iphone 17 pro price : लॉन्च से पहले ही आईफोन 17 प्रो की चर्चाएं, क्या होगी कीमत और फीचर्स, कैसा होगा कैमरा

iPhone 16 को कड़ी टक्कर देगा Vivo का सस्ता फोन, 6500mAh की दमदार बैटरी धांसू फीचर्स

Samsung Galaxy Z Fold 7 : सैमसंग का धांसू फ्लिप स्मार्टफोन, कीमत सुनेंगे तो हो जाएंगे हैरान

OnePlus Nord 5 : 20 घंटे चलने वाली बैटरी, 50 MP कैमरा, वन प्लस का सस्ता स्मार्टफोन लॉन्च