बारिश के मौसम में बीमारियों का खतरा अधिक होता है। इसलिए अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होती है। बारिश में आपको गंभीर चोट भी लग जाती है तो खतरा बढ़ जाता है। घाव भरने में भी टाइम लगता है। वहीं अगर आप पियर्सिंग कराने की सोच रहे हैं तो तो थोड़ा ठहर जाएं। जी हां, बारिश के मौसम में पियर्सिंग कराने से संक्रमण का खतरा रहता है। इसके लिए ठंड या गर्मी का मौसम अनुकरणीय है। तो आइए जानते बारिश के मौसम पियर्सिंग कराने से क्या खतरा होता है।
1. पस पढ़ना - दरअसल बारिश के मौसम में फोड़े फुंसी होना आम बात है। इस मौसम में बैक्टीरिया के संक्रमण बहुत तेजी से फैलते हैं। ऐसे में संक्रमण के कारण पस होने लग जाता है और घाव अंदर ही अंदर होता जाता है। गर्मी या सर्दी में धूप में बैठकर उस घाव को सूखा दिया जाता है। लेकिन बारिश में नमी बनी रहती है जिससे घाव सूख नहीं पाता है।
2 खुजली होना - अगर आपकी स्किन शुष्क, पपड़ीदार है तो आपको अधिक खुजली चल सकती है। दरअसल मौसम परिवर्तन होने पर किसी को खुजली की समस्या होती है। और जहां आप पियर्सिंग करा रहे हैं उस जगह पर खुजली अधिक होती है तो आप मानसून में नहीं कराएं। ऐसे में आप खुजाल कर परेशान हो जाएंगे। सही मौसम का चुनाव बहुत जरूरी है।
3. चकत्ते - अगर पसीना अधिक आता है तो पियर्सिंग वाले क्षेत्र में आपको खुजली अधिक हो सकती है। अधिक पसीने के कारण उस जगह पर बारिक - बारिक दाने हो जाते हैं। और उन्हीं दानों को खुजालने पर वह अधिक संक्रमित हो जाते हैं। इस वजह से संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है।
4. सूजन आना और दर्द होना - बारिश का मौसम हीट और ह्यूमिडिटी का होता है। इस मौसम में 3 से 4 दिन तक सूजन भी रह सकती लेकिन उसके साथ दर्द भी अधिक होता है। वहीं बारिश के मौसम में सूजन से खतरा भी बढ़ जाता है। क्योंकि ह्रम्यूड क्लाइमेट सही मौसम नहीं होता है।
5 लाल रेशैज होना - दरअसल, पियर्सिंग कराने पर कुछ दिनों तक लगातार खुजली होती है लेकिन गर्म और नमी वाली जगह पर बैक्टीरिया ल्दी पनपते हैं। साथ ही उस जगह पर पसीना आने से बारीक पोर्स गंदगी और नमी से भर जाते हैं। यह बहुत रिस्की हो जाता है।
तो अब आप जान गए होंगे पियर्सिंग कराने के लिए कौन-सा समय सबसे अनुकूल है। और मानसून के सीजन में क्यों नहीं करवाना चाहिए।