'अवतार' को नकारने वाले जूरी

अनहद
यही फर्क है ऑस्कर में और हमारे यहाँ दिए जाने वाले फिल्म पुरस्कारों में। हमारे यहाँ कमाई और कामयाबी से ही सब कुछ तय होता है। अगर किसी फिल्म ने अच्छा बिजनेस किया है, तो उस फिल्म के तकनीशियन तक पुरस्कृत हो जाते हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि "अवतार" जैसी फिल्म अगर अपने यहाँ बनी होती, तो उसे कितने अवॉर्ड मिलते? कमाई के मुकाबले में अवतार बहुत आगे है फिल्म "द हर्ट लॉकर" से। मगर सिर्फ कमाई के मामले में। उसकी पटकथा और फिल्म के मैसेज को लेकर बहुत अच्छी बातें नहीं कही जा सकतीं। ना ही अभिनय के मामले में कोई मीर रहा। सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ निर्देशन सहित छः ऑस्कर "द हर्ट लॉकर" को मिले हैं। अवतार को केवल आर्ट डायरेक्शन, सिनेमेटोग्राफी और विजुअल इफेक्टस के लिए अवॉर्ड दिए गए।

इसमें तो दो राय नहीं कि "अवतार" का तकनीकी पहलू बहुत ताकतवर था। मगर फिल्म कुल मिलाकर औसत थी। दूध का दूध और पानी का पानी ऑस्कर अवार्ड्‌स से हो गया है।

" अवतार" फिल्म के समर्थकों का कहना था कि "अवतार" अगर अच्छी नहीं है तो इतना बिजनेस क्यों कर रही है। बिजनेस के मामले में "शोले" से बेहतर कौन सी फिल्म होगी, मगर क्या "शोले" को ऑस्कर में भेजा जा सकता था? कुछ फिल्में अपनी भव्यता से भ्रम जरूर पैदा कर दें, पर काँइयाँ समीक्षक किसी भी किस्म के झाँसे में नहीं आते।

आइए, अब बात करें सर्वश्रेष्ठ फिल्म "द हर्ट लॉकर" की। इराक युद्ध को मीडिया ने हमेशा अमेरिकी सुविधा के हिसाब से दिखाया था। भारत की तरफ से जो चैनल युद्ध कवर करने गए थे उनके प्रतिनिधि भी अमेरिकी तोपों के साथ (उनकी सुरक्षा में) चला करते थे। जबकि विश्व के कई पत्रकार छः महीने से बगदाद में डेरा डाले पड़े थे कि युद्ध को हमलावर के नजरिए से नहीं तटस्थ ढंग से कवर करना है और तटस्थ तरीके से युद्ध तभी कवर हो सकता था कि जब पत्रकार वहाँ रहें जहाँ तोप का गोला और बम गिरने वाले हैं, न कि उनके साथ जो तोप के गोले और आसमान से बम बरसा रहे थे। भारत से सतीश जैकब नाम के एक पत्रकार भी उन्हीं लोगों में थे। मगर ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं थी।

सो जब मीडिया के बड़े हिस्से ने अपना काम ठीक से नहीं किया, तब किसी न किसी को तो ये काम करना था और ये काम किया "द हर्ट लॉकर" की निर्देशक कैथरीन बिगेलो ने। इराक युद्ध पर बनी इस फिल्म को भारत में शायद अब देखा जाएगा। युद्ध से मिलने वाले दुख और तकलीफें कोई महिला ही महसूस करके दिखा सकती थी। सो कैथरीन वो पहली महिला हैं, जिन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए ऑस्कर मिला है।

मूल प्रश्न पर हम फिर लौटते हैं। क्या "अवतार" जैसी फिल्म हमारे यहाँ बनी होती तो उसे किसी भी फिल्म समारोह के कितने अवॉर्ड मिलते? जाहिर है सारे। शर्मा-साटी में किसी और को कुछ दे दिया जाता तो बात और थी मगर हमारे यहाँ तो कमाने वाला ही सर्वश्रेष्ठ होता है भले ही वो चोरी करके क्यों न लाए।

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