कंडोम से कामयाब होने की कवायद

रवींद्र व्यास
IFM
आरती छाबड़िया अब कंडोम का एड करेंगी। उनकी तमन्ना है कि इस एड के जरिये वे कामयाब हो जाएँ। वे अभिनेत्री बनने बॉलीवुड में आई हैं। उन्हें दो-एक फिल्में मिली भी, लेकिन उनमें वे कोई अपनी खास अदाकारी नहीं दिखा पाईं। ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ में वे बार डांसर बनी थीं। वे इसमें नाचीं, थोड़ा-सा देह प्रदर्शन किया, लेकिन अभिनय नहीं कर सकीं। बहुत सारी लड़कियाँ बॉलीवुड में आती हैं, लेकिन बहुत कम अभिनेत्री बन पाती हैं। ज्यादातर लटके-झटके दिखाकर गायब हो जाती हैं। जो गायब नहीं होना चाहतीं, वे कंडोम के जरिये कामयाब होना चाहती हैं। आरती उनमें से एक हैं।

यह होता है। कई बार होता है कि जब आप में प्रतिभा नहीं होती, जब आप उसके जरिये अपने को बेहतर ढंग से अभिव्यक्त नहीं कर पाते, तो दूसरे हथकंडे अपनाते हैं। यह ताबड़तोड़ कामयाबी हासिल करने के हथकंडे हैं। इन हथकंड़ों का जबरदस्त चलन है। इसे बाआसानी हर कहीं देखा जा सकता है।

यदि दिमाग पर थोड़ा जोर डालें तो याद आएगा कि इसके पहले भी कुछ मॉडलों ने ऐसे ही कामयाब होने की तमन्ना पाली थी। उस विज्ञापन को याद करिए जिसमें मॉडल मधु सप्रे और मिलिंद सोमण एक अजगर से लिपटे हुए एक-दूसरे से भी लिपटे हुए हैं। इस विज्ञापन को लेकर हंगामा हुआ था और कुछ दिनों के लिए ये दोनों मॉडल्स खासे प्रसिद्ध हो गए थे। अब शायद इन्हें कोई याद नहीं करता क्योंकि इनमें उतनी ही प्रतिभा थी कि वे रैम्प पर कैटवॉक करते हुए किसी उत्पाद को लोकप्रिय करने में अपनी भूमिका निभा सकें। लेकिन बड़े परदे पर कोई भूमिका बेहतर ढंग से नहीं निभा सके।

इसी तरह से पूजा बेदी भी फिल्मों में कुछ खास नहीं कर सकीं और बाद में वे भी एक कंडोम के विज्ञापन से खासी चर्चित हुईं थी, लेकिन उसके बाद वे भी गायब हो गईं क्योंकि उनमें प्रतिभा नहीं थी। अनु अग्रवाल का भी यही हश्र हुआ । वे महेश भट्ट की ‘आशिकी’ में आईं, हिट हुईं लेकिन उसके बाद क्या हुआ? वे भी एक कंडोम के विज्ञापन में आईं औऱ फिर गायब हो गईं। अब लोग शायद उनका नाम भी भूल गए होंगे।

लेकिन ऐसा नहीं है कि प्रतिभाहीन लोग कामयाब होने के लिए ही इस तरह के हथकंडे अपनाते हैं। यह समाज में भी देखा जा सकता है और राजनीति में भी। वरूण गाँधी को एकाएक लोकप्रियता इसलिए नहीं मिल गई कि उनके पास भारत की तस्वीर को अधिक उजला करने का कोई विचार था या कि उनमें राजनीति में गुणात्मक परिवर्तन कर कुछ बेहतर करने की तमन्ना थी। वे तो बस यकायक कामयाब होना चाहते थे। चूँकि उनमें कोई प्रतिभा नहीं है, लिहाजा उन्होंने भी वही हथकंडा अपनाया जिससे उन्हें तुरत-फुरत कामयाबी मिले। वे एक उत्तेजना का सहारा लेकर ही राजनीति में लोकप्रिय होना चाहते थे। यह ठीक वैसा ही जैसा आरती छाबड़िया चाहती हैं। कंडोम के जरिये कामयाबी की कवायद। इस तरह के लोग आपको सिर्फ बॉलीवुड में ही नहीं, हर कहीं मिलेंगे।

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