घटना के मसाले से फिल्म बनाना

अनहद
फिल्मों की व्यावसायिक पत्रिका में एक फिल्म का विज्ञापन छपा है। फिल्म का नाम है "आरडीएक्स।" उक्त विज्ञापन में मुंबई की पहचान बन चुकी एक इमारत का फोटो है। फोटो में इमारत जलती हुई दिखाई गई है। इमारत के आगे एक लड़की का फोटो है, जो शर्तिया मुस्लिम है। हालाँकि इसकी वेबसाइट पर कुछ नाम दिए गए हैं, पर असल में उक्त फिल्म का डायरेक्टर कोई गुमनाम-सा व्यक्ति है। यह लड़की कौन-सी एक्ट्रेस है, यह भी नहीं पता। कहानीकार कौन है, नहीं पता। गीतकार-संगीतकार के बारे में भी उक्त विज्ञापन कुछ नहीं कहता।

साफ जाहिर है कि यह मुंबई पर हुए हमले को भुनाने की कोशिश है। नाम रजिस्टर कराकर विज्ञापन बनाया गया है, जो इत्तिफाक से सुंदर बन पड़ा है। यह विज्ञापन मणिरत्नम की "रोजा" या "बॉम्बे" फिल्म की याद दिलाता है। मगर क्या वाकई मुंबई हमले पर कोई गंभीर फिल्म बनने जा रही है? इसका जवाब है, नहीं। दरअसल उस विज्ञापन के नीचे एक लाइन और लिखी है - व्यापारिक पूछताछ आमंत्रित है। दरअसल विज्ञापन देने वाले ने सिर्फ इतना किया है कि इस विषय पर फिल्म बनाने का आइडिया मुझे आ गया है, प्रोडक्शन का संकल्प भी मेरे भीतर पैदा हो गया है, देखिए मैंने रजिस्ट्रेशन भी करा लिया है। अब आप अगर इस "फायदेमंद विषय" पर फिल्म बनाकर पैसा कमाना चाहते हैं, तो कृपया संपर्क करें।

पैसा लगाने के इच्छुक लोग अब इस फिल्म में पैसा लगाएँगे और लगने वाले पैसे की मात्रा यह तय करेगी कि फिल्म में नायक शाहरुख होगा या भोजपुरी फिल्में कर चुका कोई हीरो। नायिका प्रियंका, बिपाशा वगैरह होंगी या सीडी फिल्मों में काम करने वाली कोई न्यू कमर। यानी सब कुछ पैसे से तय होगा। फिल्म फायदे में रहे या नुकसान में, आइडिया मार्केट में उतारने वाले को लाभ जरूर होगा। फिल्मी दुनिया में हर उस विषय या मुद्दे पर फिल्म बनाने की बेचैनी रहती है, जो लोगों में चर्चित रहा हो, लेकिन अक्सर बेलें मुंडेरों पर नहीं चढ़ पातीं। मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के वक्त कई लोगों ने इस विषय पर टाइटल रजिस्टर्ड कराए थे, मगर मामला ठंडा पड़ गया। फिल्म बनाना कोई मैगी बनाना नहीं है कि गरम पानी डाला और तैयार।

फिल्म बनाने में स्क्रिप्ट पर मेहनत लगती है। फिर शूटिंग बहुत लंबा और उबाऊ काम है। हजार तरह की दूसरी परेशानियाँ रहती हैं। "आरडीएक्स" जब तक बनेगी, तब तक मुंबई का घाव हरा ही रहेगा? क्या तब तक यह घाव सूख नहीं जाएगा? यह भी मुमकिन है कि फिल्म बने ही नहीं, पर फिल्म के शौकीनों को यह तो जानना ही चाहिए कि ऐसा भी होता है।

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