उन्हें कई आवाज का जादूई मिश्रण कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। वे चंचलता में किशोर से कम नहीं थे (इक चतुर नार करके सिंगार-पड़ोसन), रोमांटिक गानों में रफी के साथ थे,(ये रात भीगी-भीगी-श्री 420), शास्त्रीय गानों में उनके गाने बेमिसाल हैं (लागा चुनरी में दाग -दिल ही तो है) वहीं देशभक्ति के गानों में उनकी आवाज दिल गहराइयों में उतर कर सुप्त तार झनझनाती सी लगती है-ऐ मेरे प्यारे वतन (काबुलीवाला)।
एक बार संगीतकार अनिल विश्वास ने किसी साक्षात्कार में कहा था कि 'मन्ना हर वह गीत गा सकते हैं जो मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या मुकेश ने गाए हों। लेकिन इनमें कोई भी मन्ना के हर गीत को नहीं गा सकता।'
' यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी..,'ना तो कारवां की तलाश है'... 'ओ मेरी जोहरा जबीं' और 'ए भाई जरा देख के चलो'...जैसे गीत गाकर उन्होंने उस समय प्रचलित इस तथ्य को झुठला दिया कि वे मात्र शास्त्रीय गीत ही गा सकते हैं।
महान गायक मोहम्मद रफी ने अपने प्रशंसकों से एक बार कहा था- 'आप लोग मेरे गीत सुनते हैं, लेकिन यदि मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूंगा कि मैं मन्ना डे के गीतों को सुनता हूं।'
उनकी आवाज में साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन की मधुशाला को सुनना एक अलौकिक अनुभव है।
वर्ष 2005 में 'आनंदा प्रकाशन' ने बांग्ला में उनकी आत्मकथा 'जिबोनेर जलासोघोरे' प्रकाशित की। इसी आत्मकथा को अंग्रेजी में पैंगुइन बुक्स ने ' Memories Alive' के नाम से छापा जब कि यही पुस्तक हिन्दी में इसी प्रकाशन से 'यादें जी उठी' नाम से आई। मराठी संस्करण साहित्य प्रसार केंद्र, पुणे द्वारा प्रकाशित किया गया। मन्ना डे के जीवन पर आधारित एक अंग्रेजी डॉक्यूमेंट्री 'जिबोनेरे जलासोघोरे' 30 अप्रैल 2008 को कोलकाता में रिलीज़ हुई थी।
मन्ना दा का जाना निश्चित तौर पर संगीत जगत की अपूरणीय क्षति है। फिल्म 'सीमा' में गाए गीत 'तू प्यार का सागर है' का एक-एक शब्द जैसे उनके ही व्यक्तित्व के लिए गुंथा गया हो... सचमुच उनकी अमृतमयी आवाज की बूंद के प्यासे हम थे और रहेगें।