राजकुमार यादवः सच्चा नाम, सच्चा काम

दीपक असीम
सितारे और कलाकार में फर्क होता है। रजनीकांत का अभिनय मत देखिए। आप तो सिर्फ रजनीकांत को देखिए। उनका सिगरेट जलाना, उनका बाल झटकना, उनकी फाइटिंग, उनकी डायलॉग डिलेवरी...। लार्जर देन लाइफ। वे हर फिल्म में एक जैसे हैं।

कुछ सितारे कलाकार भी होते हैं। जैसे आमिर खान। वे सितारे भी हैं और अभिनेता भी हैं। मगर कुछ कलाकार केवल कलाकार होते हैं। वे हर फिल्म में इतने अलग नजर आते हैं कि आपको सूरत तो पहचान में आती है, मगर बहुत जोर डालने पर भी यह नहीं याद आता कि पहले किस फिल्म में देखा था। राजकुमार यादव ऐसे ही कलाकार हैं। कुल जमा तीन फिल्मों में वे दर्शकों के अवचेतन में गहरे उतर गए हैं।

" रागिनी एमएमएस" में जब आप उन्हें देखते हैं, तो पहचान नहीं पाते कि इस कलाकार को आपने "लव सेक्स और धोखा" में देख रखा है। मगर जब आप उन्हें "शैतान" में देखते हैं तो चेहरा याद रहता है, पुरानी भूमिका याद नहीं रहती। आप दिमाग पर जोर डालते रहते हैं। फिल्म खत्म होने पर याद आता है कि हाँ, इसे हमने "रागिनी..." में देखा था।

मात्र तीन छोटी-छोटी फिल्मों से वे अपनी पहचान बहुत गहरे अभिनेता के रूप में बना चुके हैं। एक कलाकार के सामने चुनौती यह रहती है कि वो एक ही जैसे दो किरदारों को अलग-अलग शेड में करे और ऐसा करे कि कोई दोहराव न हो।

" लव सेक्स और धोखा" में भी राजकुमार यादव का किरदार लगभग वही है, जो "रागिनी एमएमएस" में है। मगर देखने पर भी याद नहीं आता कि ये वही बंदा है। "शैतान" में राजकुमार यादव लालची पुलिस इंस्पेक्टर है, जो एक्सिडेंट के मुलजिमों को पकड़ने की बजाय उन्हें ब्लैकमेल करता है।

हमने अकसर ऐसे सपाट पुलिस वाले फिल्मों में देखे हैं, जो बिंदास रिश्वत लेते हैं और जिन्हें अपने वरिष्ठों का कोई डर नहीं है। मगर यहाँ राजकुमार यादव के चेहरे पर डर है, अपराध बोध है, छुपाव है... बहुत कुछ ऐसा है, जिसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता। एक बार वर्दी में दिखने के बाद जब वे सादे कपड़े पहनते हैं, तब भी हाव-भाव और चाल-ढाल से पुलिस वाले ही लगते हैं।

राजकुमार यादव के बारे में फिलहाल इंटरनेट पर भी बहुत जानकारी नहीं है। इतना भी नहीं लिखा कि ये पहले एड फिल्में करते थे (अब भी करते हैं)। नाम से इतना समझ आता है कि उन्हें अपने पुराने ढंग के नाम "राजकुमार" से कोई संकोच नहीं है। साथ ही "यादव" सरनेम भी वे कायम रखे हुए हैं। ये इस बात की पहचान है कि हीरो बनने का कोई कीड़ा उनके दिमाग में नहीं है। वर्ना नाम भी बदल लिया होता और सरनेम भी।

खान, कपूर, खन्ना और कुमार से कम कोई नया हीरो बात ही नहीं करता। नाम की सचाई बताती है कि वे अभिनय करने आए हैं। बहरहाल वे इतने प्रतिभाशाली कलाकार हैं कि उनके पास काम की कमी नहीं रहने वाली। अभी तक के सारे किरदार उन्होंने नकारात्मक किए हैं। कहना चाहिए काले-भूरे रोल। मगर उनमें सभी तरह के रोल करने की क्षमता है।

उनका चेहरा बहुत ही सामान्य है। एकदम सादे पानी के जैसा। उनकी अपार अभिनय क्षमता वो घुलनशीलता है, जिससे उनका चेहरा हर किरदार में घुल जाता है। कामुक, लोभी, रिश्वतखोर, डरपोक, बदतमीज... जैसा किरदार हो, वो वैसा काम कर सकते हैं। ये दो-तीन फिल्में बताती हैं कि वे बहुत लंबी पारी खेलने के लिए मैदान में आए हैं।

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