राजपाल यादव : संपूर्ण कलाकार, नेक इंसान

दीपक असीम
राजपाल यादव को हास्य कलाकार गलत कहा जाता है। असल में वो संपूर्ण कलाकार हैं। वे सब तरह की एक्टिंग कर सकते हैं। "वास्तुशास्त्र" में वे हास्य कलाकार नहीं एक ऐसे पागल हैं, जो भूतों का सच जानता है और भुतहा घर में रहने वालों को आगाह करने की कोशिश करता है। ज्योति और मनीष नाम के भूतों का जब राजपाल यादव द्वारा जिक्र किया जाता है, तो रीढ़ की हड्डी में एक सिहरन सी दौड़ जाती है। "जंगल" में बच्चे के माथे पर बंदूक रख के उससे मौत का मजाक करने वाला पात्र मूल खलनायक पर भारी रहा है। "मैं मेरी पत्नी और वो" में राजपाल ने ऐसे पति का रोल किया है, जो अपनी लंबी और सुंदर पत्नी के सामने नाटेपन की हीन भावना से ग्रस्त है। ये हास्य भूमिका नहीं थी। "मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूँ" में प्रेमिका के लिए त्याग करने वाले प्रेमी की भूमिका राजपाल यादव ने बढ़िया निभाई थी। हास्य और करुणा का मेल करने में कोई और सक्षम हो न हो, राजपाल यादव जरूर हैं। "प्यार तूने क्या किया" में कॉमेडी ट्रेक अलग चलता है और मूल कहानी अलग। राजपाल यादव का ट्रेक फरदीन खान पर भारी पड़ा है। इसमें वे ऐसे घरेलू नौकर हैं, जो अपने मालिक को गुंडे के नाम से डराता है और धन ऐंठकर वापस गाँव चला जाता है। ये बहुत कठिन रोल था। इसमें कई जगह ऐसी एक्टिंग करनी थी कि एक्टिंग ही लगे सचाई नहीं।

आइए अब उनके हास्य की बात करें। हर हास्य फिल्म में उनका रोल अलग शेड में होता है। हर किरदार को वे पिंचिस से पकड़ते हैं। "भागम-भाग" में टैक्सी वाले का रोल छोटा है, पर बहुत विश्वसनीय है। "चुप-चुपके" में तो वो हीरो-हीरोइन से बाजी मार ले गए हैं। मछली पकड़ने वाली नाव पर नौकरी करने वाला बंड्या। लोग कहते हैं कि जॉनी वॉकर और केश्टो मुखर्जी शराबी की एक्टिंग बहुत अच्छी करते थे। मगर "चुप-चुपके" में शराब का एक लंबा घूँटभर कर जिस तरह का मुँह राजपाल यादव बनाते हैं, वैसा तो पीने वाला भी नहीं बना सकता। उस एक सीन में ही इतनी एक्टिंग है, जितनी दूसरे हास्य कलाकार जिंदगी भर नहीं कर पाए। "एक और एक ग्यारह" में वे घरेलू नौकर बने हैं, पर शेड एकदम अलग है। राजपाल यादव लाउडनेस का भरपूर इस्तेमाल करने वाले हास्य कलाकार हैं। वे जानते हैं कि कहाँ कितना लाउड होना पड़ेगा। जैसे ही जरूरत खत्म होती है, वे अपनी लाउडनेस को बारीक अभिनय में बदल देते हैं।

राजपाल यादव ने बहुत बुरा समय भी देखा है। रामगोपाल वर्मा की ही फिल्म "रोड" में उनका रोल महत्वहीन-सा है। ये रोल देखकर कोफ्त होती है और गुस्सा आता है कि रामगोपाल वर्मा ने ऐसे बेहतरीन कलाकार से ऐसा घटिया रोल क्यों कराया? राजपाल के व्यक्तित्व का दूसरा पहलू यह है कि वे बहुत धार्मिक हैं। उनके एक गुरु हैं जिनके कहने पर वे पवित्र नदी के किनारे मिट्टी के शिवलिंग बनाने भी पहुँच जाते हैं। फिलहाल वे मध्यप्रदेश के एक सरकारी अभियान से जुड़ रहे हैं, जिसका मकसद है ज्यादा से ज्याादा बच्चों को स्कूल भेजना। राजपाल यादव के पास काम की कमी नहीं है। मगर वे यहाँ आ रहे हैं अपने सामाजिक सरोकारों के कारण। मिट्टी से जुड़ा हुआ आदमी ही मिट्टी में पैदा होने वाले बच्चों का दर्द जान सकता है। राजपाल यादव संपूर्ण कलाकार ही नहीं नेक इंसान भी हैं।

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