वरदानों को शाप बनाने वाला : माइकल जैक्सन

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कुछ बच्चे जन्मजात विकृत पैदा होते हैं, किसी का होंठ कटा होता है, तो किसी में दूसरी खराबी होती है। ऐसे बच्चों के लिए प्लास्टिक सर्जरी वरदान है। कुछ महिलाएँ अपने होंठों का आकार ठीक कराती हैं, तो कुछ अपने फिगर को ठीक कराती हैं, चेहरे की झुर्रियाँ भी सर्जरी से मिटवाई जाती हैं। ऐसे मामलों में प्लास्टिक सर्जरी उपयोगी है। मगर माइकल जैक्सन जैसे धुनी लोगों के लिए यही प्लास्टिक सर्जरी जान का सौदा बन जाती है।

माइकल जैक्सन जबसे मशहूर हुए (कहना चाहिए जब से धनी हुए), तबसे लगातार अपने शरीर में बदलाव करा रहे थे। होंठ, नाक, चमड़ी, आँखों का रंग...। ऐसी क्या चीज़ थी, जो उन्होंने नहीं बदलवाई? उनका शरीर एक ऐसी इमारत था जिसके ढहने तक उसमें कुछ न कुछ अनावश्यक काम चलता ही रहा। अंत में इमारत ढही भी इसीलिए, क्योंकि उसमें मूल डिज़ाइन से ज्यादा संशोधन हो चुके थे।

माइकल जैक्सन जैसा कुदरत से नाराज आदमी पैदा नहीं हुआ। उन्हें कुदरत द्वारा दी गई कोई भी चीज़ पसंद नहीं थी। कहा तो यहाँ तक जाता है कि उन्होंने अपना सेक्स भी चेंज करा लिया था। पता नहीं यह बात कहाँ तक सच है। पर जिस तरह कुछ महिलाओं को खरीददारी की लत लग जाती है, जैक्सन को अपने शरीर में बदलाव कराने की लत लग गई थी।

अपने आपको, अपने रंग-रूप को ऐसा नापसंद करने वाला आदमी कितना ही बड़ा कलाकार क्यों न हो, इंसान के रूप में वह दुखी रहता है, और माइकल जैक्सन दुखी आत्मा थे। उन्हें अपने आसपास रहस्य का एक पर्दा डाले रखना पसंद था। इस्लाम की शरण में जाने से लेकर बच्चों के यौन शोषण में बदनाम होने तक वे लगातार आत्मनिंदित और दुखी थे।

वे गोरे होना चाहते थे, वे चाहते थे उनकी नाक अँगरेजों जैसी तीखी हो। गोरे होने के लिए अपने शरीर की काली चमड़ी तक उन्होंने उखड़वाई और उसकी जगह गोरी चमड़ी (डिपिगमेंटेशन) चिपकवाई। पर इंसान और मिट्टी की मूर्ति में अंतर होता है। उन्होंने खुद को मिट्टी की तरह बरता। मन के दुखों का साथ देने के लिए अब उनके पास तन के दुख भी थे। दर्द दबाने के लिए वे बहुत सारी दवाइयाँ खाते थे और कुछ लोगों का मानना है कि उन्हें दर्द निवारक दवा की भी लत लग गई थी।

पचास की उम्र में वे पच्चीस साल वाले की तरह उड़ना-फुदकना चाहते थे और इसकी दवाएँ अलग ले रहे होंगे। माइकल जैक्सन की ज़िंदगी को देखकर एक बार फिर याद आता है कि सुख से जीने के लिए पैसा बहुत ज़रूरी है, पर साथ ही विवेक और मन की शांति भी ज़रूरी है। जैसा कुदरत ने हमें बनाया, वैसा ही कबूल करना भी ज़रूरी है। अजीब-अजीब ख्वाहिशें आदमी को पागल कर देती हैं।

माइकल जैक्सन कर्ज में भी थे। खर्च के मामले में एक बार मन को मनमानी करने के लिए छोड़ दिया जाए, तो मुश्किल से काबू में आता है। माइकल जैक्सन ने बहुत पैसा कमाया, पर लुटाया भी बहुत, और बर्बाद भी बहुत किया। कुल मिलाकर वे अपने आप से दुखी थे। उनके तमाम चाहने वाले उनके जैसा बनना चाहते थे और वे बस, एक गोरा आदमी बनना चाहते थे। जैसी मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक तकलीफें माइकल जैक्सन ने भोगीं, वे किसी को भी न भोगनी पड़ें।

( नईदुनिया)

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