सलमान खान ने बदली अपनी सोच

समझ में आया प्रचार का महत्व

समय ताम्रकर
IFM
इन दिनों कलाकार फिल्म की शूटिंग खत्म करने के बाद बीस-पच्चीस दिन फिल्म के प्रचार को देते हैं। इस दौरान वे विभिन्न शहरों या देशों में घूमते हैं। टीवी के कार्यक्रमों में शिरकत कर फिल्म की तारीफ करते हैं। साक्षात्कार देते हैं। लोगों को सिनेमाघरों में खींचने के लिए वे हर तरीका अपनाते हैं। फिल्म निर्माता भी एक बड़ा बजट प्रचार के लिए आरक्षित रखने लगे हैं।

सलमान खान ने प्रचार को कभी महत्व नहीं दिया। उनकी सोच थोड़ी पुरानी थी। उनका मानना था कि यदि फिल्म अच्छी होगी, उसमें दम होगा तो दर्शक खुद-ब-खुद चले आएँगे। प्रचार से कोई फायदा उन्हें नजर नहीं आता था। वे इसे पैसों की बर्बादी मानते थे। दरअसल सलमान को फिल्म के पहले इंटरव्यू देना, लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं है। बार-बार वही सवाल फिल्म के बारे में उनसे पूछे जाते और इससे वे बोर हो जाते हैं, इसलिए उन्होंने प्रचार में कभी रुचि नहीं दिखाई। लेकिन अब उनकी सोच बदली है। उन्हें प्रचार का महत्व समझ में आने लगा है।

सलमान ने संकल्प लिया कि वे अपनी हर फिल्म का प्रचार जोर-शोर से करेंगे। हर चैनल और पत्र-पत्रिकाओं में वे अपनी फिल्म के बारे में लोगों को बताएँगे। प्रभुदेवा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘वांटेड : डेड एंड अलाइव’ उनकी प्रदर्शित होने वाली अगली फिल्म है। यह फिल्म सलमान के दिल के करीब है। वांटेड के गुणगान करते हुए सलमान नजर आने वाले हैं। वैसे ये भी माना जा सकता है कि सलमान ऐसा मजबूरीवश करें। उनकी फिल्में लगातार पिट रही हैं और दौड़ में वे पिछड़ते जा रहे हैं। लेकिन उनके निर्णय से उनके घर वाले और ‍’वांटेड’ के निर्माता बोनी कपूर बेहद खुश हैं।

शाहरुख खान ने हमेशा प्रचार को महत्वपूर्ण माना और उनका अनुसरण अब अक्षय कुमार और आमिर खान भी कर रहे हैं। ‘ओम शांति ओम’ और ‘सांवरिया’ ने जबरदस्त प्रचार की परंपरा बॉलीवुड में डाल दी। दोनों फिल्मों का धुआँधार प्रचार किया गया। यदि प्रचार के बल पर ही फिल्म चलती तो दोनों फिल्में सफल होतीं, लेकिन साँवरिया फ्लॉप हुई।

‘सिंह इज़ किंग’, ‘गजनी’, ‘रब ने बना दी जोड़ी’ जैसी फिल्मों के बारे में कहा जाता है कि ये प्रचार के बल पर ‍सफल हुई हैं, लेकिन यदि ऐसा होता तो ‘टशन’, ‘लव स्टोरी 2050’ का नाम भी कामयाब फिल्म की सूची में होता। वही फिल्में पैसा कमाने में कामयाब होती हैं जो आम दर्शकों को पसंद आएँ। जिसमें उनका मनोरंजन हो। लेकिन प्रचार के महत्व से भी इनकार नहीं किया जा सकता। महेश भट्ट ने प्रचार का पैसा बचाकर ‘शोबिज’ को बिना किसी शोर-शराबे के प्रदर्शित किया और फिल्म ने पानी भी नहीं माँगा। प्रचार एक सीमा तक जरूरी होता है ताकि लोगों को पता चले कि कौन-सी फिल्म आ रही है और किस तरह की फिल्म है।

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