स्टारकिड होना आसान बात नहीं है। फायदे बहुत है तो नुकसान भी कम नहीं है। वैसे भी बॉलीवुड में स्टारकिड्स बहुत ज्यादा सफल नहीं हुए हैं। सनी देओल, संजय दत्त, रणबीर कपूर, काजोल, रितिक रोशन, करीना कपूर ही ऐसे हुए हैं जिन्होंने फिल्मों में सफलता पाई। दूसरी ओर राजेन्द्र कुमार, हेमा मालिनी, माला सिन्हा, अमिताभ बच्चन, देव आनंद, राजकुमार, राजेश खन्ना जैसे कई सितारे हैं जिनके बच्चों ने असफलता का मुंह देखा। सीधी-सी बात है असफलता के पाले में खड़े स्टारकिड्स की संख्या ज्यादा है।
स्टारकिड की परेशानी बचपन से ही शुरू हो जाती है। स्कूल-कॉलेज से ही उन्हें तीखी बातों का सामना करते हुए चमड़ी को मोटी करना पड़ता है। आखिर किस-किस से लड़ें? किस-किसका मुंह बंद करे? संजय दत्त जब स्कूल में थे तब उनके साथ पढ़ने वाले साथी संजय दत्त की मां नरगिस और राज कपूर के रोमांस को लेकर उन्हें चिढ़ाया करते थे। अखबारों और पत्रिकाओं की कटिंग्स दिखाते थे। समझा जा सकता है कि संजय दत्त तब कैसी परिस्थितियों से गुजरे होंगे। शायद तभी उनमें बगावती गुण का बीज पड़ा हो।
फिल्म स्टार्स की सोशल और प्राइवेट लाइफ खुली किताब की तरह होती है। उनके बारे में सही-गलत चटपटे किस्से हवाओं में रहते हैं और इन्हीं को आधार पर बनाकर स्टारकिड्स को स्कूल में परेशान किया जाता है। चूंकि स्टारकिड थोड़ा स्पेशल होता है इसलिए ईर्ष्यावश उनके साथी ताने मार अपनी भड़ास निकालते हों। संभव है कि इसी कारण स्टारकिड पार्टी और नशे के आदी हो जाते हों। वे इस तरह के माहौल से नशे में गाफिल होकर दूर रहना चाहते हों।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ स्टारकिड्स की परेशानी घटने की बजाय और बढ़ जाती है। जब स्टारकिड्स का स्वाभाविक रुझान फिल्मों की ओर होता है और वह पूरी तैयारी के साथ फिल्मों की चकाचौंध भरी दुनिया में प्रवेश के काबिल होता है तो तुलना का दबाव उसे झेलना पड़ता है। पहली फिल्म अनाउंस होते ही मीडिया सहित तमाम लोग उस पर पिल पड़ते हैं। तुलना शुरू हो जाती है। लुक, स्वभाव, एक्टिंग को लेकर बातें होने लगती हैं। पहली फिल्म से उसके काम की तुलना उसके पिता या माता के काम से शुरू कर दी जाती है जिनको यहां काम करते-करते 25 बरस से भी ज्यादा हो गए हैं। स्टारकिड्स से हिमालय से भी ऊंची अपेक्षाएं की जाती हैं। इतना दबाव झेल पाना आसान बात नहीं है।
स्टारकिड होने का फायदा ये होता है कि फिल्मों में अवसर तुरंत मिल जाता है, लेकिन पहली फिल्म के बाद ये एडवांटेज खत्म हो जाता है। इसके बाद आप अपनी प्रतिभा के बूते पर आगे का सफर तय करते हैं। पब्लिक ही आपको बनाती या बिगाड़ती है। कुमार गौरव, प्रतिभा सिन्हा, ईशा देओल, तुषार कपूर, सुनील आनंद जैसे स्टारकिड्स को गायब होने में ज्यादा देर नहीं लगी।
टीएनज के दौरान स्टारकिड्स बड़े सहमे-सहमे रहते हैं। बड़े नाजों से उन्हें पाला जाता है। अकेले बाहर नहीं जाने दिया जाता है क्योंकि कई तरह के जोखिम होते हैं। देखभाल के लिए कई लोग मौजूद रहते हैं लेकिन उनके व्यस्त स्टार पैरेंट्स के पास उनके लिए टाइम नहीं रहता। हाल ही में आर्यन खान ने कहा है कि उन्हें अपने पिता से मिलने के लिए उनकी मैनेजर से अपॉइंटमेंट लेना पड़ता था। स्टारकिड होने के दबाव और बहुत ज्यादा उनसे अपेक्षा या उम्मीद का होना, उन्हें तोड़ कर रख देता है। ऐसे में कदम का डगमगाना मुश्किल नहीं है। कमजोर तुरंत हार मान लेते हैं।
स्टारकिड से दोस्ती करने के लिए लोगों का हुजूम लगा रहता है। सही-गलत की इन्हें पहचान नहीं होती है। किस पर विश्वास किया जाए और किस पर नहीं, ये तय कर पाना मुश्किल होता है। पार्टी के अलावा करने को कुछ काम नहीं होता। शाहरुख का बेटा 23 का हो गया है, शायद 25 की उम्र में लांच किया जाएगा। तब तक वह पार्टी के सिवाय कुछ नहीं कर पाएगा। स्टार माता-पिता के आगे यह मुश्किल होता है कि उसे व्यस्त कैसे रखा जाए। आम माता-पिता तो अपने बच्चों को फुर्सत की सांस नहीं लेने देते। पढ़ाई होते ही उसके लिए नौकरी का दबाव बनाने लगते हैं।
अमीरों की पार्टियों में ड्रग का मिलना बहुत आम बात है क्योंकि इन पार्टियों में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है जिसके कारण वे लोग भी आंख मूंद लेते हैं जिन पर गलत को रोकने की जवाबदारी होती है। आर्यन जिस जहाज पर पार्टी करने गए थे उसकी एंट्री फीस ही 80 हजार रुपये से ज्यादा थी। जाहिर सी बात है कि इतनी रकम चुकाना अमीरजादों के बस की बात है। इस समय ज्यादातर बॉलीवुड कलाकार या निर्देशक वो स्टारकिड हैं जिनके परिवार की जड़े वर्षों से फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी है। इनके मन में चाह थी इसलिए आगे बढ़ गए। कुछ को नशे ने लील लिया तो कुछ प्रतिभाहीन होने के कारण चलन से बाहर हो गए।