हकीकत के बनने की कहानी : कैसे बनी ये कालजयी फिल्म?

सीमान्त सुवीर
देवानंद के बड़े भाई फिल्म निर्माता चेतन आनंद के बारे में एक ऐसी सनसनीखेज जानकारी सामने आई है, जिसके बारे में अंगुलियों पर गिने जाने वाले लोग ही जानते थे... 1965 में बनी फिल्म 'हकीकत' को भारतीय सिनेमा में युद्ध पर बनी सबसे कालजयी मूवी माना जाता है। इस फिल्म को बनाने से पहले चेतन आनंद महज 25 हजार रुपए का इंतजाम न होने के कारण बेहद परेशान थे और फिर कैसे उनकी परेशानियां दूर हुईं और हकीकत में उनका सपना कैसे सच हुआ, ये तमाम बातें बेहद दिलचस्प हैं...
 
 
बिग एफएम रेडियो पर आने वाले कार्यक्रम 'सुहाना सफर विद अनु कपूर' में जब इस दिलचस्प किस्से का पिटारा खुला तो रोंगटे खड़े हो गए...अनु कपूर ने बताया कि बात 1962 के आखिरी महीने में 'क्रिसमस' के बाद की है। चेतन आनंद को एक फिल्म के लिए 25 हजार रुपए की जरूरत थी और तब उनके बैंक खाते में 25 रुपए भी नहीं थे...वे बेहद परेशान थे, क्योंकि कोई फाइनेंसर उनकी मदद नहीं कर रहा था। कई जगह हाथ-पैर मारे, लेकिन हर जगह से नाउम्मीद ही हाथ लगी...
 
 
चेतन आनंद की पत्नी उमा की एक सहेली थी, जो अमेरिकन एंबेसी में काम करती थी। कार से चंडीगढ़ जाते वक्त उमा की परेशानी सहेली के कानों तक पहुंची कि पतिदेव को 25 हजार रुपए एक फिल्म को पूरी करने के लिए चाहिए। सहेली बोली, मेरे मामा प्रताप सिंह कैरो पंजाब के मुख्यमंत्री हैं, हम उनसे मदद ले सकते हैं...अगले दिन चेतन आनंद मुख्यमंत्री कैरो के सामने थे और मदद की गुहार कर रहे थे...

मुख्यमंत्री ने चेतन आनंद से कहा, 'पुत्तर, 1962 के चीन युद्ध में हमारे पंजाब के कई जवान शहीद हो गए हैं, तुम इन शहीदों पर क्यों नहीं फिल्म बनाते?' चेतन ने कहा, 'शहीदों पर बनी फिल्म को कौन देखेगा और इसमें कौन पैसा लगाएगा?' मुख्यमंत्री ने कहा, 'यदि शहीदों पर फिल्म बनाई तो पूरा पंजाब तुम्हारे साथ खड़ा रहेगा। बोलो, फिल्म का बजट कितना होगा?' इसके बाद चेतन वहां से अगले दिन मुलाकात करने का कहकर चले आए।

दूसरे दिन चेतन ने मुख्यमंत्री कैरो को फिल्म 'हकीकत' की कहानी संक्षेप में सुनाई और यह भी कहा कि इसमें पैसा बहुत सारा लगेगा। मुख्यमंत्री ने पूछा कि कितना बजट? कुछ देर सोचने के बाद चेतन ने कहा कि मोटे तौर पर 10 लाख रुपए...मुख्यमंत्री ने कहा, बस..फौरन उन्होंने पंजाब के वित्त सचिव को आदेश दिया कि इन्हें 10 लाख रुपए का चैक दे दो...थोड़ी देर बाद चेतन के हाथों में 10 लाख का चैक था और यह तारीख थी 1 जनवरी 1963। चेतन को तो मानो नए साल का सबसे हसीन तोहफा मिल गया...

जो इंसान 25 हजार रुपए के लिए परेशान हो रहा हो, उसके हाथों में उस रोज 10 लाख का चैक था और यह एक तरह से उनका सपना हकीकत में बदल चुका था। यही कारण है कि चेतन ने भी फिल्म 'हकीकत' इतनी शिद्दत के साथ बनाई कि वह आज तक पसंद की जाती है। इस फिल्म से बलराज साहनी, धर्मेन्द्र, विजय आनंद, प्रिया राजवंश, अमजद खान के पिता जयंत, शेख मुख्तार, सुधीर आदि कलाकारों की अदायगी कालजयी हो गई।

फिल्म में गीत लिखे कैफी आजमी ने और संगीत दिया मदन मोहन ने। 1965 में बनी फिल्म 'हकीकत' के कई गीत सुपर हिट हुए। मसलन, होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा.., जरा सी आहट होती है तो दिल सोचता है, कहीं वो तुम तो नहीं..., मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था..।

लेकिन इन तमाम गीतों में भी सबसे ज्यादा लोकप्रिय गीत 'कर चले हम फिदा जाने तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों' वाला हुआ। इस गीत की भी बेहद रोचक कहानी है...चेतन आनंद को कैफी साहब ने ये गीत सुनाया और कहा कि जब फिल्म खत्म हो जाएगी, उसके बाद ये गीत बजेगा...

चेतन ने कैफी साहब को कहा कि फिल्म खत्म होने के बाद तो दर्शक सिनेमा हॉल से चले जाएंगे, तब वे बोले नहीं...ये गीत ही फिल्म की असली जान है और जब दर्शक घर जाने के लिए खड़े हो जाएंगे, जब हॉल में आवाज गूंजेगी...'कर चले हम फिदा जाने तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों।' असल में दर्शक उन तमाम शहीदों के सम्मान में खड़े रहेंगे...

...और वाकई फिल्म खत्म होने के बाद जब ये गीत हॉल में गूंजता है तो आंखें नम हो जाती हैं। हकीकत फिल्म की पूरी यूनिट को नहीं मालूम था कि कैफी आजमी साहब का ये प्रयोग चमत्कार करेगा। हिंदी सिनेमा में ये शायद पहला ऐसा गीत है जो फिल्म खत्म होने के बाद बजता है। 1965 में इस फिल्म को दूसरी सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के पुरस्कार से भी नवाजा गया। आज भी यह फिल्म अपने आप में अनूठी और भारतीय सिनेमा जगत की युद्ध पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानी जाती है...और जाती रहेगी। 

 
* फिल्म का निर्माण : 1965 
* बलराज साहनी : मेजर रंजीत सिंह 
* धर्मेन्द्र : केप्टन बहादुर सिंह 
* विजय आनंद : मेजर प्रताप सिंह 
* प्रिया राजवंश : अंगमो 
* शेख मुख्तार : कमांडिंग ऑफिसर 
* सुधीर : राम सिंह 
 
हकीकत फिल्म के गीत
1. होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा...(मोहम्मद रफी, तलत मेहमूद, मन्ना डे, भूपिंदर सिंह) 
2. कर चले हम फिदा जाने तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों...( मोहम्मद रफी) 
3. जरा सी आहट होती है तो दिल सोचता है, कहीं वो तुम तो नहीं... (लता मंगेशकर) 
4. मस्ती में छेड़कर तराना कोई दिल का.. (मोहम्मद रफी) 
5. खेलों ना मेरे दिल से ओ मेरे साजना (लता मंगेशकर) 
6. आई अबकी साल दिवाली मुंह पर अपने कौन मेले.. (लता मंगेशकर) 
7. मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था.. (मोहम्मद रफी) 

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