सीन एक
कबीर सिंह सेक्स करने के लिए बैचेन है। जब लड़की राजी नहीं होती तो वह चाकू दिखा कर उसके कपड़े उतरवाने की कोशिश करता है।
सीन दो
कबीर सिंह के घर काम करने वाली महिला जब गिलास फोड़ देती है तो वह उसे बेहद डराता है और तब तक उसका पीछा करता है जब तक कि वह बिल्डिंग कैम्पस से बाहर नहीं हो जाती।
सीन तीन
कबीर सिंह के कॉलेज में जब प्रीति नामक लड़की प्रवेश लेती है तो कबीर कॉलेज के एक-एक लड़के को कह देता है कि प्रीति सिर्फ उसकी है और उसकी ओर कोई आंख उठा कर नहीं देखेगा।
सीन चार
कबीर सिंह जब चाहता है प्रीति को क्लास से ले जाता है। उसे छूता है। किस करता है और अपने रूम तक लेकर जाता है।
ये तो हुईं कबीर सिंह की हरकत। अब बात करते हैं हीरोइन की। मासूमियत की आड़ में उसे मूर्ख दिखाया गया है। उसकी कोई सोच और समझ ही नहीं है। कबीर जो कहता है वह फौरन मान जाती है। कबीर उसे प्यार करता है तो यह उसके लिए आवश्यक है कि वह भी उसे प्यार करे।
कबीर सिंह फिल्म पुरुषवादी नजरिये से बनाई गई है और घोर स्त्री विरोधी है। आश्चर्य की बात तो यह है कि युवा इस फिल्म को पसंद कर रहे हैं और इस तरह के दृश्यों पर लड़कियां भी तालियां पीट रही हैं।
निर्देशक और लेखक संदीप रेड्डी वांगा ने ऐसी चतुराई से फिल्म का जाल बुना है कि दर्शक मनोरंजन की आड़ में यह बात देख ही नहीं पाते हैं कि स्त्री के प्रति यह फिल्म कैसी सोच दर्शाती है? किस तरह से उनके मान-सम्मान को चोट पहुंचाती है? कैसे किसी का अपमान कर आप हंस सकते हैं? कैसे इन बातों में आप मनोरंजन ढूंढ सकते हैं?
अभी भी ऐसे लोगों का प्रतिशत कहीं ज्यादा है जो महिलाओं को पैर की जूती समझते हैं। इस तरह की फिल्में उन लोगों की सोच को बढ़ावा देती है और नाजुक दिमाग वालों में इस तरह की सोच को ठूंसती है कि महिलाएं तो महज एक टॉय हैं।
इस फिल्म में एक लड़की को एक वस्तु की तरह ट्रीट किया गया है। फिल्म से गलत मैसेज निकल कर आता है कि जो लड़की आपको पसंद आए उसे जागीर मान लो। घोषणा कर दो कि यह मेरी है और फिर उसके पीछे पड़ जाओ। धीरे-धीरे वह मान ही जाएगी। कबीर सिंह तो गुंडागर्दी कर लड़की को हासिल करता है।
मजे की बात यह कि शराब, सिगरेट और ड्रग्स के नशे के में चूर रहने वाला वूमैनाइजर कबीर को अंत में वो सब चीजें मिल जाती हैं जो वह चाहता था।
एक लड़की ने फिल्म देख कर कहा 'मैं कबीर सिंह को 2 तमाचे मार कर कहना चाहती हूं कि औरत मर्दों के पैर की जूती नहीं है।' इस फिल्म का इससे बेहतर वन लाइनर रिव्यू और भला क्या हो सकता है?