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फिल्मों में फुफकारते ना‍ग-नागिन

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समय ताम्रकर

भारत को सांपों का देश भी कहा जाता है। नाग-नागिन को लेकर तमाम तरह के किस्से, अंधविश्वास और आस्थाएं जुड़ी हुई हैं। भगवान शंकर के गले में भी सांप लिपटा हुआ नजर आता है, इसलिए सांप की पूजा भी की जाती है। 
 
लोगों की इस भावनाओं को फिल्म वालों ने खूब भुनाया है और कई फिल्में सुपरहिट साबित हुई हैं। सांप को लेकर सबसे प्रचलित कहानी है उसका इच्छाधारी होना। वह चाहे तो सांप बन जाता है और चाहे तो मनुष्य। मणि को भी नाग-नागिन से जोड़ा गया है। नाग को किसी ने मारा तो नागिन अपना बदला जरूर लेती है। इस बात को भी फिल्मों में अक्सर दिखाया जाता है। 
 
वर्तमान में भारतीय फिल्मों में काफी बदलाव आए हैं, लेकिन अभी भी कभी-कभी ‘हिस्स’ जैसी फिल्मों में इच्छाधारी नागिन नजर आती है। नागिन से मनुष्य में बदलने की प्रक्रिया के दौरान इसमें मल्लिका शेरावत से जमकर अंगप्रदर्शन करवाया गया और इसी बात ने आस्थावान दर्शकों के दिलों को चोट पहुंचाई और फिल्म बुरी तरह पिटी। 
 
भारत में जब सिनेमा का आगमन हुआ तब पौराणिक कथाओं पर आधारित फिल्में ज्यादातर देखने को मिलती थीं। दर्शक कहानियों के बारे में पहले से ही जानते थे, लेकिन सुनी हुई कहानियों को परदे पर देखने का रोमांच उन्हें मजा देता था। उस दौर में नाग-नागिन पर भी फिल्में बनी। 
 
1954 में प्रदीप कुमार और वैजयंतीमाला को लेकर बनी ‘नागिन’ को हम इस विषय की बेहतरीन फिल्म मान सकते हैं। इस फिल्म को देखने के लिए दर्शक टूट पड़े और हेमंत कुमार के संगीतबद्ध गाने गली-गली गूंजे। 
 
भेड़चाल के लिए प्रसिद्ध बॉलीवुड में ‘नागिन’ की कामयाबी के बाद इस तरह की फिल्मों की बाढ़ आ गई और शेषनाग (1957), नागमणि (1957), नाग पद्मिनी (1957), नाग लोक (1957), नाग चम्पा (1958), नाग देवता (1962), नाग ज्योति (1963), नाग मोहिनी (1963), नाग पूजा (1971) बनीं। 
 
इसके बाद समय-समय पर नाग-नागिन स्टार बनकर सिल्वर स्क्रीन पर फुंफकारते रहे। उन्हें हीरो-हीरोइन की तरह पेश किया जाता था और वे खलनायकों को अंत में डस लेते थे। 
 
राजकुमार कोहली द्वारा निर्देशित ‘नागिन’ एक मल्टीस्टारर फिल्म थी। जीतेंद्र, सुनील दत्त, रीना रॉय, रेखा, योगिता बाली, फिरोज खान, कबीर बेदी, संजय खान, रंजीत सहित कई नामी ‍कलाकार इस फिल्म में हैं। फिल्म में दिखाया गया है दोस्तों का एक समूह नाग-नागिन से दुश्मनी ले लेता है और फिर नागिन एक-एक कर अपने दुश्मनों का खात्मा करती है। यह फिल्म सुपरहिट रही थी। 
 
इसके बाद की उल्लेखनीय फिल्म रही ‘नगीना’ (1986)। श्रीदेवी ने इसमें नागिन का रोल निभाया था और उनकी सपेरे बने अमरीश पुरी से टक्कर यादगार रही थी। उस समय बॉलीवुड में सीक्वल का दौर नहीं था, लेकिन नगीना का सीक्वल निगाहें नाम से बनाया गया था। निगाहें, नगीना वाला जादू नहीं दिखा पाई। ‘शेषनाग’ नामक भव्य बजट की फिल्म भी बनाई गई थी जो असफल रही। 
 
बाद में फिल्मकारों ने नाग-नागिन के साथ सेक्स का तड़का लगाया और जंगल की नागिन, प्यासी नागिन जैसी फिल्में आईं, जो दर्शकों की बदलती रूचि के कारण उन्हें आकर्षित नहीं कर पाई।
 
अब बड़े परदे पर दर्शक नाग-नागिन के चमत्कार भले ही कम हो गए हों, लेकिन छोटे परदे के धारावाहिक 'नागिन' की सफलता दर्शाती है कि अभी भी इस विषय में दम और दर्शकों की रूचि कायम है।  

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