फिल्म उद्योग फिल्म निर्माता, फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर और फिल्म प्रदर्शक (सिनेमाघर वाले) के इर्दगिर्द घूमता है और तीनों ही परेशानी में हैं, लेकिन सिनेमाघर वाले सबसे ज्यादा मुसीबत में हैं। फिल्म निर्माता वालों को ओटीटी प्लेटफॉर्म मिल गया है और कई फिल्में इस माध्यम के जरिये दिखाई जा रही हैं। वितरकों के पास फिल्म रिलीज के लिए नहीं है तो न तो उन्हें फायदा हो रहा है और न ही नुकसान।
सबसे ज्यादा मुश्किल में सिनेमाघर वाले हैं। उनके पास दिखाने के लिए फिल्में नहीं हैं और सिनेमाघर को मैंटेन करने का खर्चा लग रहा है। सिनेमाघर खोलने की इजाजत मिल गई है, लेकिन बड़े सितारों की फिल्मों के अभाव में दर्शक सिनेमाघर आने के लिए तैयार नहीं हैं इसलिए अभी भी देश में कई सिनेमाघर नहीं खुले हैं।
दिवाली पर फिल्म 'सूरज पे मंगल भारी' का प्रदर्शन हुआ था और फिल्म का व्यवसाय अत्यंत ही निराशाजनक रहा। एक दिन भी यह फिल्म एक करोड़ का आंकड़ा पार नहीं कर पाई। लाखों में ही इसके कलेक्शन सिमटे रहे। दर्शकों के अभाव में कई शो कैंसल करने की खबरें भी सुनाई दीं।
11 दिसंबर को इंदू की जवानी फिल्म सिनेमाघर में रिलीज हो रही है। इसमें किआरा आडवाणी ने लीड रोल निभाया है। सूरज पे मंगल भारी की असफलता से घबराए सिनेमाघर मालिक इस फिल्म को ज्यादा भाव नहीं दे रहे हैं। उनका मानना है कि इस फिल्म की ओपनिंग 50 लाख रुपये से ज्यादा की नहीं हो सकती है। वे बहुत कम शो इस फिल्म को दे रहे हैं क्योंकि वे ऑपरेशन लॉस उठाने के मूड में नहीं हैं।
कई सिनेमाघर वाले अपने थिएटर मात्र इस फिल्म के लिए फिर से खोलने के लिए राजी नहीं है। उनका मानना है कि सूरज पे मंगल भारी बुरी तरह से असफल रही है और इंदू की जवानी से उन्हें ज्यादा उम्मीद नहीं है। उन्हें तो इंतजार है अक्षय कुमार की सूर्यवंशी और सलमान खान की राधे जैसी बड़ी फिल्मों का।
उनका मानना है कि इन फिल्मों में इतना दम है कि कोराना काल में भी इन फिल्मों को देखने के लिए दर्शक आ सकते हैं। पर 50 प्रतिशत सीटिंग कैपेसिटी के साथ इन बड़ी फिल्मों के निर्माता अपनी फिल्म को रिलीज नहीं करना चाहते।
कुल मिलाकर विकट स्थिति मनोरंजन उद्योग के आगे खड़ी हुई है और किसी को समाधान नहीं सूझ रहा है।