अब्बास-मस्तान : रेस के बाजीगर

समय ताम्रकर
बाजीगर फिल्म के लिए शाहरुख खान को जब फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला तो देर रात तक जश्न मनाने के बाद उन्होंने घर लौटने के बजाय निर्देशक अब्बास-मस्तान के घर जाकर उनसे खुशी बांटने की सोची। अब्बास-मस्तान समारोह में नहीं आए थे। आधी से ज्यादा रात गुजर चुकी थी और शाहरुख खान एक बस्ती में पहुंचे।

पुराने से मकान की घंटी बजाने के पहले उन्होंने जरूर सोचा होगा कि ये निर्देशक कैसे घर में रहते हैं। दरवाजा खुलते ही शाहरुख घर के अंदर पहुंचे तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि अब्बास-मस्तान यहां रहते हैं।

दरअसल अब्बास-मस्तान को उनकी फिल्मों से जज करना बेहद मुश्किल है। उनकी फिल्म लार्जर देन लाइफ होती हैं। उनके द्वारा ‍प्रस्तुत किए गए किरदारों की लाइफस्टाइल देख आंखें फटी रह जाती हैं। महंगी शराब और सिगरेट फूंकते हुए वे करोड़ों-अरबों रुपयों की वे बातें करते हैं। ग्रे शेड्स लिए रहते हैं।

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इसके उलट अब्बास-मस्तान एक छोटे से मकान में रहते थे और ऐसी कोई चीज उनके घर नहीं थी जो भव्यता प्रदान करती थी। अब्बास-मस्तान के उदाहरण से समझा जा सकता है कि जरूरी नहीं है कि कोई भी फिल्म उसके निर्देशक की विचारधारा को दर्शाती है। अब्बास-मस्तान के जीवन में सादगी का जोर है, लेकिन उनकी फिल्में ग्लैमरस होती हैं। जरूरी नहीं है कि रोमांटिक फिल्म बनाने वाला फिल्मकार दिल हथेली पर लिए घूमता हो।

अब्बास-मस्तान का बचपन गरीबी में बिता। बर्मा में रहने वाले अब्बास बर्मावाला और मस्तान बर्मावाला के दादा वहां फर्नीचर का व्यापार करते थे। वहां से वे मुंबई आ गए। मुंबई में इनके पिता ने भी यही व्यवसाय किया। अब्बास-मस्तान के एक रिश्तेदार फिल्म एडिटर थे और यही कारण रहा कि ये फिल्मों की ओर आकर्षित हो गए। इनका एक और भाई हुसैन बर्मावाला फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा है, जो फिल्मों को संपादन करता है।

दोनों भाई साथ मिलकर फिल्म निर्देशित करते हैं। उनमें कई बार क्रिएटिव डिफरेंस होते हैं, लेकिन वे बात दिल पर नहीं लेते हैं। इतने घुलमिल कर रहते हैं कि सुबह उठकर सबसे पहले एक-दूसरे का चेहरा देखना ही उन्हें पसंद है। उनके साथ वर्षों से काम कर रहे लोग भी नहीं जानते हैं कि अब्बास कौन है और मस्तान कौन।

अब्बास-मस्तान ने कभी महान फिल्म बनाने का दावा नहीं किया। वे उस तरह की फिल्म बनाते हैं जिसमें हर दर्शक और वर्ग का मनोरंजन हो। विदेशी फिल्मों से प्रेरणा लेकर उन्होंने कई फिल्म और सीन रचे हैं। बाद में जब दर्शक जागरूक हो गए तो अब्बास-मस्तान ने ये बताना शुरू कर दिया कि उन्हें प्रेरणा कहां से मिली।

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थ्रिलर बनाने में उन्हें महारत हासिल है और ‘खिलाड़ी’ (1992), बाजीगर (1993), सोल्जर (1998), अजनबी (2001) और ऐतराज (2004) जैसी फिल्में उन्होंने बनाई है। शाहरुख खान, काजोल, अक्षय कुमार और काजोल के करियर में उन्होंने महत्वूपर्ण भूमिका निभाई है। इन कलाकारों की सफलता की सीढ़ी के पहले पायदान अब्बास-मस्तान ही थे।

अब्बास-मस्तान ने अपनी पिछली कुछ फिल्मों के जरिये दर्शकों को निराश किया है। 36 चाइना टाउन, नकाब, प्लेयर्स जैसी फिल्मों में उनका थ्रिल और टच नदारद था। ऐसा लगने लगा कि या तो उन पर उम्र हावी हो रही है या वे दर्शकों के बदलते स्वाद के मुताबिक मनोरंजन नहीं परोस पा रहे हैं। अब वे अपनी हिट फिल्म ‘रेस’ का सीक्वल लेकर आ रहे हैं और ये उनके लिए कड़ा इम्तिहान है। ‘रेस 2’ की सफलता निर्धारित करेगी कि मनोरंजन की रेस के इन बाजीगरों में अभी भी दम बचा है या नहीं।

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