नीलू फुले- लोकनाट्य को जीने वाला अदाकार

Webdunia
- ज्योत्सना भोंडवे

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उन्होंने सालों तक नाटकों व फिल्मों में मगरूर व कपटी बदमाश नेताओं के किरदार अदा किए, लेकिन निजी जिंदगी में वे बेहद सामान्य लेकिन खास थे। इस अदाकार का नाम था-नीलू फुले। जयवंत दळवी के "सूर्यास्त" के अप्पाजी हों चाहे "प्रेमाची गोष्ठ" के तात्या। इन किरदारों के लिए उन्होंने कभी भी नेताओं का मेकअप नहीं किया लेकिन बावजूद इसके वे कभी भी "नीलूभाऊ" जैसे नजर नहीं आए।

1945-46 में नीलू फुले ने लोकनाट्य समूह की स्थापना की, जिसका आधार समाजवाद था। वे हमेशा साहूकारों और शोषक वर्ग के विरोध में रहे। उनके नाटकों की प्रस्तुति गणेशोत्सव के वक्त होती थी। आगे चलकर लोक नाट्य समूह का राष्ट्र सेवादल के अधिकृत कलादल में रूपांतरण हो गया।

इस दल द्वारा "पुढारी पाहिजे", "कुणाचा कुणाला मेळ नाही", "बिन बियांचे झांड" जैेसे लोकनाट्य रंगमंच पर प्रस्तुत किए गए। इन नाटकों के लेखक थे पुल देशपांडे, वसंत बापट, व्यंकटेश माडगूळकर और शंकर पाटिल।

इसके कुछ साल बाद शंकर पाटिल ने "लवंगी मिरची कोल्हापुरी" नामक ख्यात लोकनाटक लिखा। इस नाटक को नीलू फुले सही मायनों में अपना नाटक मानते थे जिसमें उनका साथ दिया था अरुण सरनाइक व ऊषा चव्हाण ने।

शंकर पाटिल की "कथा अकलेच्या कांद्याची" जयवंत वालावलकर के "भानगडीशिवाय गांव नाही" और आत्माराम सावंत के "राजकारण गेले चुलीत" व बाबूराव गोखले और वसंत कानेटकर के "मास्तर एके मास्तर" में भी नीलू फुले लाजवाब रहे।

पुणे में हिन्दू-मुस्लिम दंगों की जो ज्वाला भड़की उसके बाद के दौर में नीलू फुले ने राम मनोहर लोहिया की तकरीरों को सुना, जिनका उनके दिल पर गहरा असर रहा। इसी दौरान उन्होंने "सखाराम बाइंडर" नाटक किया। वे अक्सर कहा करते थे कि मेरा नाम "सखाराम बाइंडर" के लिए सुलभा देशपांडे ने सुझाया था। मुफलिस इंसान मैंने नजदीक से देखे हैं उन्हीं में से एक था सखाराम। उसे अपनी जिंदगी में किसी का भी हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं होता। सखाराम के लिए सभी इंसान समान थे।

बाद के दौर में नीलू फुले ने "जंगली कबूतर" व "सूर्यास्त" जैसे कामयाब व्यावसायिक नाटकों में काम किया। सूर्यास्त के अप्पाजी को पेश करते वक्त उनके जेहन में १९४२ के आंदोलन की छाप रही।

फिल्मों में काफी समय बीत जाने के बाद उन्होंने जब्बार पटेल के "सामना" में हिंदूराव धोंडे पाटिल जैसा किरदार डॉ. श्रीराम लागू के साथ अदा किया। जिसकी कामयाबी को वे पटकथा लेखक विजय तेंडुलकर की लेखकीय कुशलता मानते थे।

नीलू फुले के भीतर का इंसान हमेशा ही सजग रहा। जो हमेशा जरूरतमंदों के लिए बेचैन रहता था। लेकिन इन तमाम खासियतों के बावजूद वे याद किए जाएँगे अपने नाममात्र के मेकअप में अदा किए किरदारों के लिए।

अमिताभ बच्चन की सुपरहिट फिल्म कुली के अलावा अनुपम खेर की सारांश ने उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचा दिया। सामाजिक कार्यों में रुचि रखने वाले नीलू ने कोई उच्चस्तर की शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। परंतु, उन्हें सभी विषयों की किताबें पढ़ने का शौक था। नीलू के जाने से अभिनय के एक ऐसे एपिसोड का अंत हो गया जिसमें खलनायकी के लिए किसी पंचलाइन या किसी अन्य साधन की जरूरत नहीं होती थी। वे अपने खालिस अभिनय के बल पर डर पैदा करने में कामयाब होते थे।

( नईदुनिय ा)


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