संजय दत्त की पाँच सर्वश्रेष्ठ फिल्म (स्लाइड शो)

समय ताम्रकर
रॉकी (1981) से बतौर हीरो अपने करियर की शुरुआत करने वाले संजय दत्त ने अपने लंबे सफर में कई सफल फिल्में दी हैं। नकारात्मक भूमिकाओं में वे बेहद प्रभावी लगे। यदि वे व्यर्थ के विवादों से अपने को दूर रखते तो हो सकता है कि वे आज और आगे होते हैं। 29 जुलाई 1959 को जन्मे संजू बाबा का आज जन्मदिवस है। उन्हें बधाई देते हुए बात करते हैं उनकी पाँच श्रेष्ठ फिल्मों की।
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लगे रहो मुन्नाभाई (2006)

मुन्नाभाई श्रंखला में संजू की यह दूसरी फिल्म है। इसमें मुन्नाभाई और गाँधीजी के अद्‍भुत मेल को निर्देशक राजकुमार हीरानी ने रचा है। कैसे एक टपोरी पर गाँधी‍जी के सिद्धांतों का असर होता है और वह बदल जाता है। संजय दत्त के अभिनय को काफी सराहना मिली। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान बापू के विचारों का असर संजय दत्त पर भी पड़ा।

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मुन्नाभाई एमबीबीएस (2003)

इस फिल्म ने संजय दत्त को ऐसी लोकप्रियता दिलवाई कि उनका नाम ही ‘मुन्नाभाई’ पड़ गया। एक गुंडे की डॉक्टर बनने की जिद को इस फिल्म में दिखाया गया है। टपोरी की भूमिका में संजय दत्त स्वाभाविक लगते हैं। लगता ही नहीं कि वे अभिनय कर रहे हैं। पहले यह भूमिका शाहरुख खान करने वाले थे, लेकिन पीठ दर्द की वजह से वे हट गए। शायद यह भूमिका संजय के भाग्य में ही लिखी थी।

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वास्तव (1999)

‘वास्तव’ में रघुनाथ नामदेव शिवालकर की भूमिका संजय दत्त ने इतनी विश्वसनीयता के साथ निभाई थी कि उन्हें कई पुरस्कार मिले। यह एक ऐसे युवक की कहानी थी जो संघर्ष के दिनों में मुंबई में पावभाजी का स्टॉल लगाता है। दुर्घटनावश वह मुंबई के अंडरवर्ल्ड का हिस्सा हो जाता है। पुलिस से तो वह बच जाता है, लेकिन अंत में अपनी माँ के हाथों मारा जाता है। नकारात्मक किरदार निभाने के मामले में संजय का जवाब नहीं, यह बात उन्होंने इस फिल्म के जरिए साबित फिर साबित की।

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सड़क (1991)

‘सड़क’ का लंबे बालों वाला संजय दत्त कई लोगों को अब तक याद होगा। महेश भट्ट ने संजय को लेकर यह फिल्म उस समय बनाई थी, जब उनकी कई फिल्में लगातार फ्लॉप हो गई थीं। ‘सड़क’ ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल की और संजय दत्त स्टार कलाकार की श्रेणी में आ खड़े हुए। संजय के अभिनय को उनके प्रशंसकों ने बेहद पसंद किया।

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नाम (1986)

’नाम’ फिल्म का निर्माण राजेन्द्र कुमार ने अपने बेटे कुमार गौरव को स्थापित करने के लिए किया था। संजय की भूमिका ग्रे-शेड लिए हुई थी और उस दौर में नायक इस तरह की भूमिका नहीं निभाते थे। संजय ने अपनी भूमिका इतने प्रभावी तरीके से निभाई कि दर्शक बंटी (कुमार गौरव) को भूल गए और संजय का किरदार उन्हें याद रहा।
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