हम लोग गंदे होते जा रहे हैं : अरशद वारसी

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अरशद वारसी की फिल्म ‘मि. जो बी कारवाल्हो’ रिलीज होने जा रही है, जिसमें जासूसी भी है और कॉमेडी भी। आइए जानें कि क्या कहते हैं अरशद अपनी फिल्म के बारे में :


क्‍या पहले इस फिल्‍म का नाम “रॉकी मेरा नाम” था ?
जी, पर मुझे लगा कि मेरा जो चरित्र है, वह कुछ अलग है, चरित्र की कार्यशैली के अनुसार नाम रखा जाए तो दर्शक जल्‍दी इत्‍तेफाक कर लेता है, मि. जो बी कारवाल्हो मेरे पास था, तो मैंने यह नाम रख दिया। यह पूरी तरह से एक कॉमेडी फिल्‍म है इसके संवाद रोचक और सुनने लायक हैं, इसमें कहीं भी लाउडपन नहीं है। इस फिल्‍म को परिवार का हर सदस्‍य एक साथ बैठकर देख सकता है।

फिल्‍म “मि. जो बी कारवाल्हो” में जासूसी क्‍या है?
वास्‍तव में यह बहुत ही गंभीर किस्‍म का जासूस है, वह दिल से काम करता है पर सब कुछ उल्‍टा हो जाता है। वह अपने पिता की तरह बड़ा और सफल जासूस बनना चाहता है, नेक दिल इंसान है मोहल्‍ले में हर इंसान का काम कर देता है। वह अपने आपको स्‍मार्ट समझता जरूर है पर वह स्‍मार्ट नहीं है। ऊपर वाला उसकी शराफत पर तरस खाकर उसे उसके मकसद में कामयाबी दिला देता है।

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कई तरह की जासूसी फिल्‍में आ रहीं हैं, तो आपको क्‍या लगता है कि एक दौर चलता है और फिर उसी तरह की फिल्‍में बनती हैं?
जी हां, अक्‍सर ऐसा होता है, एक्‍शन फिल्‍मों का दौर आता है, फिर कॉमेडी का आ जाता है। वास्‍तव में एक फिल्‍म को सफलता मिलती है, तो सारे लोग उसी तरह की फिल्‍में बनाने लगते हैं।

इस फिल्‍म की शूटिंग कहां-कहां की है?
दो माह बैंगलोर में, दस-बारह दिन गोवा में, थोड़ी सी शूटिंग मुंबई में भी की है। बैंगलोर में शूटिंग करने में बड़ा मजा आया। वहां सारे प्रोफेशनल लोग हैं।

क्‍या शुरू में आप लोग इसे सिरियस बनाना चाह रहे थे?
नहीं। गंभीर जासूसी फिल्‍में अलग प्रकार की होती हैं, शरलॉक होम्‍स को ले लें या जेम्‍स बॉड को ही ले लें, इनमें जरा सा भी आपने तार छोड़ा तो यह थ्रिलर बन जाती है और तब लोगों को मजा न आता। यह कॉमेडी हो तो लोगों को मजा आएगा। यह जिस तरह की कॉमेडी फिल्‍म है, उस तरह की फिल्‍म मैं लंबे समय से करना चाह रहा था, मुझे हमेशा वही कहानियां और किरदार पसंद आते हैं, जो कुछ अलग हों, फिल्‍म की संजीदगी अलग हो, मुझे अलग संजीदगी वाली फिल्‍में पसंद आती हैं। मैंने कभी भी आम फिल्‍में नहीं की, इसलिए मैं इश्किया या जॉली एलएलबी या सहर जैसी फिल्‍में करता हूं। यदि मैं सच कहूं कि आज के जमाने में “अंगूर” फिल्‍म बनती, तो वह मि. जो बी कालवाल्हो जैसी होती।

आज अंगूर जैसी फिल्‍म बनती कहां है?
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि साफ-सुथरी हास्‍य फिल्‍म लिखना बहुत कठिन होता है। चश्‍मेबद्दूर, जाने भी दो यारों या हृषिकेश मुखर्जी की जो फिल्‍में हुआ करती थी, उन्‍हें लिखना बहुत मुश्किल होता है। अब इस तरह की फिल्‍में नहीं लिखी जा रही हैं। इसमें लेखकों का कोई दोष नहीं है, सारा दोष बिजनेस का है। आज की तारीख में लोग कहते हैं कि डबल मिनिंग वाले जोक्‍स चल रहे हैं, वो लिख दो, कोई रिस्‍क नहीं लेना चाहता। मैं चाहता हूं कि मि. जो बी कारवाल्हो जैसी फिल्‍म चले, जिससे साफ सुथरी फिल्‍में लिखने वाले लेखकों को काम मिले। आज की तारीख में कमाल के लेखक बेरोजगार हैं। उनकी भी रोटी चलने लगेगी। सिनेमा की संजीदगी भी बदलेगी। हम लोग बहुत गंदे होते जा रहे हैं। अंगूर से हम चले थे और कहां ग्रैंड मस्‍ती तक पहुंच गए। ग्रैंड मस्‍ती ने भले ही सौ करोड़ कमा लिए हों पर इसकी एक अलग जगह है। मैं चाहूंगा कि साफ सुथरी फिल्‍में बने।

तो क्‍या आप चाहते हैं कि ग्रैंड मस्‍ती जैसी फिल्‍में न बने ?
मैंने ऐसा नहीं कहा। मैं तो चाहता हूं कि हर तरह की फिल्‍में बने। मैंने तो ग्रैंड मस्‍ती के निर्देशक को बधाई दी थी कि उन्‍होंने ऐसी फिल्‍म बनाने का साहस किया। पर होता यह है कि जब इस ढंग की एक फिल्‍म चल जाती है फिर इसी तरह की बुरी फिल्‍मों का दौर शुरू हो जाता है।

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सोहा अली खान के साथ पहली बार काम करने का अनुभव कैसा रहा?
बहुत अच्‍छे अनुभव रहे। वह बेहतरीन अदाकारा है। कुछ लोगों की परवरिश के इतने मायने होते हैं कि आप सोच भी नहीं सकते। यह बात तब समझ आती है, जब हम सोहा अली जैसे लोगों से मिलते हैं। वह तमीजदार हैं। इज्‍जतदार हैं। छोटे-बड़़े का अदब करती हैं। एक अच्‍छी अदाकारा हैं। मुझे तो ऐसे कलाकारों के साथ काम करने में ही आनंद मिलता है। वैसे मैं उन कलाकारों के साथ भी काम कर चुका हूं, जो कि बहुत बतमीज और बिगड़ैल हैं।

इस फिल्‍म में तो सोहा अली गुंडों को मारते पिटते व एक्‍शन करते नजर आएंगी और आप हीरो होते हुए सिर्फ देखते रहेंगे?
सिनेमा बदल रहा है, अब हीरोइनों को भी एक्‍शन करना चाहिए। फिर यह कॉमेडी फिल्‍म है, इस फिल्‍म में मेरा जिस तरह का किरदार है, यदि वह मारधाड़ करेगा, तो अच्‍छा नहीं लगेगा। बड़ा बेवकूफ सा किरदार है। यदि कोई इसे मार दे तो वह रो रोकर अपनी मम्‍मी के पास चला जाए। पर क्‍लाइमेक्‍स में उसकी मां उसे याद दिलाती है कि तूने जो अपने पिता के साथ चाइनीज फिल्‍में देखी थी, उसका कमाल दिखा।

किसी किरदार में घुसने के लिए किस तरह से होमवर्क करते हैं?
मैं होमवर्क नहीं करता। मैं किरदार की तैयारी के लिए निर्देशक के साथ बैठकर बातचीत करना पसंद करता हूं। कोशिश करता हूं कि अपने दिमाग में उठने-बैठने, बात करने के तरीके को बैठा सकूं, तो मेरी तैयारी दिमागी तौर पर होती है। मेरा मानना है कि एक अच्‍छा कलाकार होने के लिए समझदार इंसान होना जरूरी है।

चर्चा है कि आपने इस फिल्‍म में नृत्‍य निर्देशन भी किया है?
जी नहीं। मैनें एक गाने में नृत्‍य निर्देशक की थोड़ी मदद कर दी है। दो गाने जास्‍मीन और दो गाने राजू ने किए हैं। हमारे पास समय कम था, दो दिनों में गाना खत्‍म करना था, यदि मैं नृत्‍य निर्देशन करता तो चार दिन लग जाते, क्‍योंकि मेरे नृत्‍य निर्देशन करने का तरीका अलग है।

आप जावेद जाफरी की बड़ी तारीफ करते हैं।
हमारी फिल्‍म मि. जो बी कारवाल्हो में जावेद जाफरी करीबन 12 अलग-अलग लुक में नजर आएंगे। जावेद ने इस फिल्‍म में जिस तरह का किरदार निभाया है, दूसरा कोई कलाकार नहीं निभा सकता। यह बात मैं दूसरे कलाकारों का सम्‍मान करते हुए ही कह रहा हूं, उनकी कॉमेडी और मिमिक्री की टाइमिंग बहुत जबरदस्‍त है, उनका सैंस ऑफ ह्यूमर भी कमाल का है।

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