"मुझे लगता था कि चुंबक की खोज मैंने की है। एक दिन मैंने अपने पिता को बुलाया और एक चीज़ को हमारी पुरानी लोहे वाली अलमारी की तरफ फेंक कर कहा देखो पापा मैंने क्या खोज की है। वो चीज़ अलमारी को चिपक गई थी। मैंने डैडी को कहा देखो मैंने इस चीज़ (चुंबक) की खोज की है। मेरे पिता ने ये सब देख कहा कि ये चुंबक है। कहां से मिला?"
उस समय मैं कक्षा 4 या 5 का स्टूडेंट था, लेकिन यह मेरे जीवन की एकमात्र खोज है।- हंसते-गुदगुदाते अक्षय ने वेबदुनिया को बताया- ''पिताजी मेरे लिए 175 रुपये का छोटा-सा ट्रांजिस्टर ले आए। मैं भी बड़े मज़े से कानों में उसे लगाए गाने सुनता रहता था। ट्रांजिस्टर उस समय बहुत शान वाली चीज होती थी। जब ये मेरी डिस्कवरी हो गई तो पापा को मैंने बताया कि इसी ट्रांजिस्टर को तोड़फोड़ कर मैंने चुंबक का आविष्कार किया था।''
बात साइंस और अविष्कार की चल रही है तो बता दें कि अक्षय कुमार की 'मिशन मंगल' 15 अगस्त को रिलीज हो रही है।
स्पेस साइंस हर किसी को समझ में आने वाला विषय नहीं है। दिक्क्त तो नहीं बन जाएगी यह बात?
नहीं। हमने 'मिशन मंगल' से जुड़ी कहानी या बातें बहुत ही साधारण तरीके से समझाने की कोशिश फिल्म में की है। विज्ञान समझ में आ सके इस बात की ध्यान रखा है। चाहे दर्शक विज्ञान पढ़ने वाला रहा हो या नहीं इससे खास फर्क नहीं पड़ेगा। कुछ टर्म होती हैं जिन्हें आप बदल नहीं सकते हैं, तो उन्हें वैसे ही रखा गया है। अब मैं अर्थ को पृथ्वी भी कह सकता हूँ या कुछ और भी शब्दों को बदल सकता हूँ, लेकिन थ्रस्ट या ऑर्बिट को तो नहीं बदल सकता। ज़्यादा बदलने जाऊंगा तो यह डॉक्यूमेंट्री लगेगी। ज़्यादा विषय को सरल किया तो विश्वसनीयता नहीं रहेगी, इसलिए सोच-समझ कर बीच का रास्ता अपनाया है।
क्या इस फिल्म का टारगेट ऑडियंस बच्चे भी हैं? शायद वे इस विषय को ज्यादा ठीक से समझेंगे?
बच्चों में इस विषय को लेकर हमेशा से जिज्ञासा रही है, लेकिन 'मिशन मंगल' को लेकर भी जिज्ञासा है ये मुझे वेबदुनिया के ज़रिये ही मालूम पड़ा था, जब मैंने इस फिल्म के ट्रेलर को लांच किया था। मैं यह फिल्म बच्चों से देखने की अपील करूंगा, साथ ही मैं उनके माता-पिता को भी कहूंगा कि वे भी फिल्म देखें और सोचें कि बच्चों को इंजीनियर या डॉक्टर के अलावा वैज्ञानिक भी बनाया जा सकता है। यह फ़ील्ड भी बहुत अच्छी है। वैसे भी दुनिया में भारतीय वैज्ञानिकों को बहुत पसंद किया जाता रहा है। नासा में लगभग 30 प्रतिशत भारतीय वैज्ञानिक काम करते हैं।
आपकी फ़िल्में शिक्षाप्रद भी होती हैं।
हां, 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' को अब भी कई गाँवों और क़स्बों में सफ़ेद पर्दा लगा कर या ट्रकों में व्यवस्था कर दिखाया जाता है, ताकि लोग सफाई के बारे में समझ सकें। 'पैडमैन' भी जगह-जगह मुफ्त में दिखाई जा रही है। अब तो मुझे लगता है कि पीरियड जैसी बातें शहरों में टैबु नहीं रही है। अब एक बेटी भी अपने पिता से कहती है कि मेरे पीरियड्स आ गए हैं, बाज़ार से आते समय पैड ले आना।
आप थोड़े बदले-बदले से दिख रहे हैं?
मैंने अपनी दोनों फिल्म 'सूर्यवंशी' और 'बच्चन पांडे' के लिए वज़न 7 किलो कम किया है। वैसे भी मैं वज़न कम करने के लिए मैं खाना कम नहीं करता। वर्कआउट बढ़ा लेता हूँ या कुछ और तरीके इजाद कर लेता हूँ। मैं तो आज भी दबा कर पराठे खाता हूं।