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देशभक्ति का जज्बा अब युवाओं में पनपने लगा है : परिणीति चोपड़ा

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रूना आशीष

, रविवार, 24 मार्च 2019 (19:38 IST)
'हमारी फिल्म सारागढ़ी की लड़ाई पर बनाई हुई फिल्म है। मैं जानती हूं कि फिल्म ऐसे समय में आई है, जब देश ने हाल ही में बहुत कुछ देखा और झेला है। ये बहुत विकट समय रहा है। लेकिन अगर इस समय की सीख को देखें तो जानेंगे कि इस समय ने ही युवा पीढ़ी को जगाने का काम कर दिया है।
 
आज का युवा देश के बारे में जागरूक हो रहा है और अपनी जड़ों को पहचान रहा है। वर्ना कई बार लगता था कि देश के बारे में वो ही लोग जज्बाती रह गए हैं जिसका कोई इतिहास रहा है, जैसे मेरे पिता आर्मी में रहे हैं या मेरे दादा-दादी या नाना-नानी, जो पाकिस्तान से यहां आए थे। ये बहुत अच्छी बात है कि देशभक्ति का जज्बा अब युवाओं में पनपने लगा है। लेकिन दुखद बात भी है वो ये कि इसकी कीमत भी हमें अपने लोगों की जान गंवाकर चुकाना पड़ी है।
 
'वेबदुनिया' से बात करते हुए परिणीति ने आगे बताया कि पानीपत की लड़ाई हो या सारागढ़ी की या कुरुक्षेत्र की बात ही क्यों न हो, मैं अंबाला की लड़की हूं और ये सब अंबाला के आसपास की कहानियां हैं, तो मैं इनके बारे में जानती थी। लेकिन जब आप ऐसी फिल्में करते हों तो आप थोड़ा और भी जानना चाहते हैं और फिर पढ़ लेते हैं इस बारे में।
 
कितना समय लगा स्क्रिप्ट को हां बोलने में?
जब ये फिल्म मेरे पास आई तो मैंने महज 3 मिनट में हां कह दिया। मुझे पहले से ही करण ने बता दिया था कि ये लड़कों की कहानी है जिसका मैं बहुत छोटा सा हिस्सा हूं। लेकिन मेरे लिए 'केसरी' से जुड़ना ज्यादा जरूरी था बजाय इसके कि मैं इसमें अपने रोल की लंबाई नापूं। करण के ऑफिस में मैं आई। उसने मुझे मेरा रोल समझाया, मुझे पर फिल्माया जाने वाला गाना सुनाया। मैंने भी झट से बोल दिया कि शूट पर कब पहुंचना है?
 
आप सैनिक परिवार से हैं और फिल्म भी देशभक्ति की बात करती है। आपको आपके जीवन में कब लगा कि मुझ में ये जो जज्बा है और इसे ही देशभक्ति कहते हैं?
मेरे लिए देशभक्ति से ज्यादा वो है, जो मैंने जिया है। बचपन में और बचपन से। हमारा घर अंबाला कैंट में था, जहां मेरे मम्मी-पापा अभी भी रहते हैं। मैंने हाल ही में ये वाकया अक्षय को भी बताया था कि जब कारगिल की लड़ाई हुई थी तो मैं कुछ 11 साल की थी और स्कूल से लौटते वक्त हर दूसरे दिन अपने घर से वो ट्रक देखती थी जिसमें पेटियों में बंद डेड बॉडी आया करती थी। जैसे कोई सामान डिलीवर होता है, वैसे ही ये पेटियां घर-घर में डिलीवर होती थीं।
 
मैं सोचती थी कि अंबाला से थोड़ी दूरी पर ये आलम है कि हर दूसरे दिन ये ट्रक आते हैं और वहीं हम और हमसे थोड़ी और दूरी पर बसे लोगों के घर आराम से चल रहे हैं। ये तो मैं हूं, जो ये मंजर देखकर समझ सकती थी। लेकिन कई लोग हैं जिन्हें इस बारे में पता ही नहीं है तो वो जब कभी कोई युद्ध की बात करता है तो मुझे बहुत बुरा लगता है कि कुछ लोग आसानी से कह देते हैं कि अब आरपार की लड़ाई हो जाए। लेकिन आपकी इस बात की वजह से शायद मेरे पापा या बेटे या पति या भाई को युद्ध करने जाना पड़ेगा तो ऐसा न हो!

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