फोटोग्राफ खिंचवाने के भी पैसे नहीं थे : नवाजुद्दीन सिद्दीकी

रूना आशीष
मुझे फोटोग्राफी का खास शौक तो नहीं है लेकिन हां, जब मैं मुंबई में अपना करियर बनाने आया था तो तब मुझे अपने फोटो जरूर खिंचवाने पड़े थे। एक्टर्स को ऑडिशन के समय में इन सबकी जरूरत पड़ती है। मैं मुंबई में सन् 2000 में आ गया था लेकिन 2002 में जाकर पोर्टफोलियो शूट कराया। तब तक पैसे ही नहीं थे। जूहू में हरे रामा हरे कृष्ण मंदिर के पास एक फोटोग्राफर है। उस समय सब लोग उसी से पोर्टफोलियो शूट कराते थे। लेकिन अनोखी बात ये कि मुझे मेरे फोर्टफोलियो को किसी को दिखाने की जरूरत ही नहीं पड़ी।


उस समय मैंने 5,000 या 6,000 में ये पोर्टफोलियो बनवाया था। इस हफ्ते रिलीज होने वाली फिल्म 'फोटोग्राफ' के प्रमोशनल इंटरव्यू के दौरान नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने 'वेबदुनिया' संवाददाता रूना आशीष से कहा कि जब मैं ये फिल्म शूट कर रहा था तो मुंबई के गेट वे ऑफ इंडिया पर जितने भी फोटोग्राफर हैं, उनसे मिला था। मैंने उन्हें ऑब्जर्व किया कि कैसे वो सुबह-सुबह एकदम अच्छे और साफ-सुथरे कपड़े पहनकर आते हैं और पूरे जोश के साथ काम में लग जाते हैं। वो कैसे फोटो खींचते हैं, कैसे वो पोज बनाने को कहते हैं और कैसे वो प्रिंटर में से फोटो बनाकर निकालते हैं। सब वो शुरू में तो बहुत अच्छे से कर लेते हैं लेकिन दोपहर आते-आते वो लोग पस्त हो जाते हैं। सब निढाल हो जाते हैं। ये सब बातें मैंने अपनी फिल्म में डालने की कोशिश की है।
 

आपका कोई पुराना फोटो एलबम रहा हो तो कुछ बताएं उस बारे में?
वैसे ऐसा कोई एलबम तो नहीं याद, हां, एक बार बचपन में हमारे गांव में मेला लगता था तो हम 7 भाई और बहन और हमारी अम्मी हम सब मेले में जरूर जाते थे। वहीं एक जगह फोटो खींची जाती थी जिसमें लकड़ी का बना चांद था और दूसरी तरफ लकड़ी की बनी मोटरसाइकल। अब चूंकि परिवार साथ था तो हम चांद की तरफ चले गए। लकड़ी के इस चांद पर बैठने की सुविधा थी। हमारी मम्मी और बहन बैठ गईं और हम सातों भाई उसके आसपास खड़े हो गए और हमारे पीछे कपड़े का बना पर्दा था जिसमें कागज के सितारे चिपकाए हुए थे।

आपकी पिछले 2 सालों में कई फिल्में आईं। आपको ओवर एक्सपोज होने का डर नहीं?
बिलकुल नहीं। मैंने अपनी जिंदगी में 200 नाटक किए हैं मतलब 200 किरदार किए हैं। फिर जब काम नहीं मिला था तो कम से कम 3,000 लोगों को सिर्फ ऑब्जर्व किया है कि किसका हंसने व बोलने का क्या तरीका था। तो मेरी जिंदगी में मैं और 100 साल तक भी एक्टिंग करूं न तो भी पुराना-सा नहीं लगूंगा। मेरे पास इतना मसाला है लोगों तो देने के लिए।

आपने हाल ही में बाल ठाकरे के किरदार को जिया है, कोई कॉम्प्लीमेंट मिला?
मीना ताई ठाकरे के एक करीबी रिश्तेदार थे जिन पर बाला साहेब बहुत भरोसा करते थे। वो उनके साथ साये की तरह रहते थे। जब उन्होंने फिल्म देखी तो वो मुझे बोले कि तुम्हारे रोल में कई ऐसी बातें हैं, जो सिर्फ बाला साहेब और उसने जुड़े करीबी ही जानते थे। तुम्हें ये सब कैसे मालूम पड़ा? यह बात मेरे दिल को छू गई थी। यह फिल्म इतना अच्छा कर लेगी इसका सिर्फ अंदाजा था और 'ठाकरे' फिल्म मेरे अंदाज से भी अच्छा कर गई।
आगे चलकर कोई किताब लिखेंगे अपने जीवन पर?
न तो निर्देशन और न कोई स्क्रिप्ट करूंगा। अभिनेता हूं सिर्फ, अभिनय ही करूंगा।

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