जैसे फिल्म रिलीज पास में आती है वैसे वैसे ही फिल्म स्टार शेड्यूल टाइट होजाता है। प्रमोशन के लिए शहर दर शहर जाना, इंटरव्यू देना, लेकिन सलमान खान ने इसे बहुत अच्छे से हैंडल किया। वह अपनी फिल्म टाइगर का शूट कर रहे थे और एक्शन सीक्वेंस शूट करते-करते धूल और मिट्टी से दो-चार होने के बाद भी मीडिया के सामने पेश हो गए अपनी फिल्म 'अंतिम: द फाइनल ट्रूथ' के इंटरव्यू के लिए। जहां पर सलमान ने मीडिया को बताया," मैं इतनी धूल में काम कर रहा था कि सारी धूल मेरे नाक में चली गई। सीन में कहीं ब्लास्ट था तो कही कोई दूसरा एक्शन था। अब वापस तैयार होकर आ रहा हूं, चलिए शुरू करते हैं।"
आपकी फिल्म 'अंतिम: द फाइनल ट्रूथ' मराठी फिल्म 'मुलशी पैटर्न' पर आधारित है। क्या खास बात थी उस फिल्म में?
मैं एक लेखक का बेटा हूं। मेरे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कहानी और स्क्रिप्ट है। मैंने जब 'मुलशी पैटर्न' फिल्म देखी थी तो पसंद आई। उसमें एक पुलिस वाले का किरदार है जो सात या आठ सीन से ज्यादा का नहीं था। जब मैंने इस फिल्म को हिंदी में बनाने के बारे में सोचा तो आइडिया आया कि पुलिस वाले के रोल को बढ़ाया जा सकता है। फिल्म में राहुल्या यानी कि आयुष का जो किरदार है, वह एक किसान का बेटा है, जो अपनी जमीन गिरवी रखता है और फिर बाद में आगे बढ़ कर वह गुंडागर्दी पर उतर आता है। मुलशी पैटर्न में जो मेन लीड है, वह अंडरवर्ल्ड में चला जाता है या फिर भाईगिरी में चला जाता है, लेकिन मुझे ऐसा लगा कि पुलिस के किरदार को और बड़ा किया जा सकता है क्योंकि यह पुलिस वाला भी जो है, वह है एक किसान ही। लेकिन आगे चलकर वह पुलिस में भर्ती हो जाता है।
हम पहले इसे पंजाब-हरियाणा इस पृष्ठभूमि पर शूट करना चाह रहे थे। फिर कोरोना या लॉकडाउन के चलते बात कुछ जमी नहीं। मैंने सोचा यह कहानी तो किसी भी गांव की हो सकती है। हमारे देश में हर गांव में ऐसी कई कहानियां मिल जाएंगी कि आपके पास जमीन का एक टुकड़ा है जिसे घर की किसी जरूरत या बेटी के ब्याह के लिए आप उसे बेच देते हैं और फिर उसी जमीन की चौकीदारी या रखवाले की तरह काम करते हैं या फिर मजदूर बन उसी जमीन पर काम करते हैं। तो हमने इसकी शूटिंग महाराष्ट्र में शुरू कर दी।
यह रोल निभाते समय कुछ बातों का ध्यान भी रखना पड़ा होगा?
बहुत जरूरी है कि जब भी कोई रोल निभाया जा रहा हो तो संस्कृति की खूबसूरती को सामने लाया जाना चाहिए। जब मैंने अंतिम में सिख किरदार को निभाने का फैसला लिया तो सोचा कि ऐसा कौन है जो पगधारी, सिख, सरदार है और पुलिस में भी है तो मुंबई के डीजीपी एस पसरिचा साहब की याद आ गई मुझको। रोल कि अगर मैं बात करता हूं तो मैंने एक गाना भी पिक्चराइज किया था। मेरे सामने एक हीरोइन भी थी। हमने गाना शूट किया, लेकिन फिर बाद में जब मैं देख रहा था गाने को तब लगा कि अगर यह गाना रख लूंगा तो मेरे रोल का शायद वजन थोड़ा कम हो जाए। तो फिर मैंने बहुत सारी माफी मांगी और गाने को हटाना पड़ा।
सूर्यवंशी के बाद बड़े बजट की फिल्म यानी आपकी फिल्म थिएटर में रिलीज हो रही है। उम्मीद आप पर टिकी हुई है।
हमारे देश में थिएटर कभी भी बंद नहीं होने वाले। दूसरे देश की बात करूं तो वहां पर पारिवारिक मनोरंजन के लिए कई विकल्प हैं। लेकिन हमारे देश में सस्ते और पारिवारिक मनोरंजन के लिए अगर कोई एक जरिया है तो वह सिनेमाहॉल है। सभी लोग अपने घर परिवार वालों के साथ जाते हैं। पर्दे पर फिल्म देखते हैं। साउंड इफेक्ट के साथ उसे इंजॉय करते हैं। मेरा तो यह कहना है कि आप फिल्म ऐसी बना रहे हैं जो आपके दर्शकों की उम्मीद से थोड़ी ऊपर हो या थोड़ी सी नीचे भी हो तो भी वे इसका आनंद लेते हैं। फिल्म लोगों का मनोरंजन करने के लिए बनाई जाती है और यह मनोरंजन सिनेमा हॉल में ही मिलेगा आपको। इसलिए सिनेमा हॉल कभी भी बंद नहीं होने वाले।
महेश मांजरेकर के साथ काम करना क्या इस बार कुछ अलग था?
महेश बहुत ही टैलेंटेड लेखक, निर्देशक और अभिनेता हैं। उसके साथ काम करने में मजा आता है। वह भी शो होस्ट करता है और वह पेंटिंग भी बनाता है।
पेंटिंग तो आप भी करते हैं?
हां, मैं पेंटिंग करता हूं और अच्छा लगता है और शायद कुछ दिनों में मेरी पेंटिंग की एग्जीबिशन भी लगाई जाए। अबू धाबी में लगाई जाएगी। कुछ शूट सीक्वेंसेस हैं उसके बाद हम सिंगापुर जाएंगे और उसके बाद हम आबू धाबी जाने वाले हैं, जहां पर एग्जिबिशन है। जब लॉकडाउन चल रहा था। तब मेरे पास बहुत समय था। तब मैंने एक भी पेंटिंग नहीं बनाई और अब जब मेरे पास काम है तब मैं पेंटिंग
बनाता हूं। 30 या 35 पेन्टिंग बना ली हैं।
आपकी मां सलमा जी भी पेंटिंग करती हैं ?
हां, मेरी मां को भी पेंटिंग का शौक है। उन्होंने 25 साल पहले एक पेंटिंग बनाना शुरू की थी जो अभी तक अधूरी पड़ी है। फिर 10 15 साल पहले उन्होंने एक पेंटिंग शुरू की थी, उस पर उन्होंने पिछले तीन-चार महीने से काम करना शुरू किया है।