इसलिए फन्ने खान का निर्देशन राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने नहीं किया

रूना आशीष
'रंग दे बसंती और 'दिल्ली 6' को म्यूजिकल बनाने का मेरे पास ऑफर आया है और जल्द ही अगर सब ठीक रहा तो आप मेरी इन दोनों फिल्मों को म्यूजिकल रूप में देखेंगे। जब किसी भी फिल्म का म्यूजिकल बनता है, तो आपकी फिल्म सिर्फ एक फिल्म न रहकर कुछ और भी बड़ी बात बन जाती है। अब किस कंपनी ने इसकी पेशकश की है, वो मैं अभी नहीं बता सकता। हाल ही में 'रंग दे बसंती' पर एक डॉक्यूमेंट्री बनी है जिसे बनने में 7 साल की मेहनत लगी है। रूबरू नाम की ये डॉक्यूमेंट्री अब आप देख सकते हैं।'
 
'अक्स', 'रंग दे बसंती' और 'भाग मिल्खा भाग' जैसी फिल्में बनाने वाले राकेश ओमप्रकाश मेहरा अब बतौर निर्माता 'फन्ने खान' जैसी फिल्म लोगों के सामने ला रहे हैं। उनसे बात की 'वेबदुनिया' संवाददाता रूना आशीष ने।
 
निर्माता या निर्देशक कौन सा काम आसान लगा?
दोनों की अपनी-अपनी कहानी है। निर्देशक बनना यानी कहानी की मां बनना और निर्माता बनना यानी कहानी का पिता बनने के समान है। कभी ये जिम्मेदारी निभाइए, तो कभी वो। लेकिन मेरी इस कहानी को अतुल ज्यादा न्याय दे पाते इसीलिए उन्हें निर्देशन दिया। वो मेरे साथ सालों से काम कर रहे हैं। पिछली फिल्मों में भी उन्होंने एडिट किया है। फिर मैं जब इस फिल्म को बनाने बैठा तो ये एक बेल्जियन फिल्म 'एवरीबडी इज फेमस' पर आधारित है, तो उसका हिन्दी अनुवाद मुझसे नहीं हो रहा था इसीलिए अतुल को बुला लिया। वो मुझसे बेहतर फिल्म बनाने वाला है।
 
सुना है असली फिल्म से जुड़े लोग आपको राइट्स नहीं दे रहे थे?
मैंने ये फिल्म 10 साल पहले देखी थी। मेरे एक दोस्त ने मुझे इसकी डीवीडी दी थी और कहा था देखने को। ये फिल्म ऑस्कर में विदेशी भाषा की कैटेगरी में शीर्ष की 5 फिल्मों में गई थी। मुझे इस फिल्म का विषय बहुत अच्छा लगा था और लगा कि ये फिल्म हिन्दी में भी बने। फिर फिल्म के निर्देशक से राइट्स को लेकर बातें हुईं। वे पहले तैयार नहीं थे। शायद झिझक रहे थे। फिर मैंने उन्हें अपनी फिल्में भेजीं तब जाकर उन्हें लगा कि यहां पर भी फिल्मों पर इतना काम होता है। तो 5 साल बाद राइट्स मिले फिर कोई 3 साल पहले हमने इस पर काम करना शुरू किया और अब 3 अगस्त को ये फिल्म रिलीज होने वाली है।
 
आपकी फिल्म 'फन्ने खान' में बॉडी शेमिंग जैसे मुद्दे पर बात की गई है?
मैंने एक बार इंटरनेट पर पढ़ा था कि दुनिया में 92% लड़कियां बॉडी शेमिंग यानी अपने शरीर से नाखुश हैं। मेरी बेटी भी इन्हीं सबसे गुजर रही थी। जहां आपको परखा जाता है या जज किया जाता है कि आपने क्या पहना है या कैसे मेकअप किया है? ऐसे में फिर हमारी फिल्में या एड फिल्में भी ऐसी हैं कि ये बताती हैं कि खूबसूरत दिखो। कभी बताया जाता है कि ये फेयरनेस क्रीम लगाओ तो 7 दिन में गोरे हो जाओगे या ये परफ्यूम लगाओ तो बहुत कुछ हो जाएगा। ये सब बताना ही क्यों है? मेरी फिल्म में ये बात मैं लोगों और खासकर लड़कियों को जताना चाहता हूं। लड़कियों पर तो जैसे सारा समय तलवार लटकी होती है। जरूरी नहीं है कि रोक-टोक करने वाले बाहर वाले हों, वे घर वाले भी हो सकते हैं। तो बॉडी शेमिंग को लेकर मैं समाज में थोड़ी जागरूकता लाना चाहता हूं।

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