Exclusive Interview: हर उम्र में बदला लेने का तरीका अलग होता है- तापसी पन्नू

इस इंटरव्यू में सशक्त अभिनेत्री तापसी पन्नू बात कर रही हैं अपने गुस्से के बारे में। अमिताभ के साथ अभिनय के बारे में। पति पत्नी और वो नामक फिल्म में रिप्लसेस होने के बारे में।

Exclusive Interview: हर उम्र में बदला लेने का तरीका अलग होता है- तापसी पन्नू
रूना आशीष
शनिवार, 9 मार्च 2019 (13:50 IST)
"हर उम्र में बदला लेने का तरीका अलग हो जाता है। जब आप दस साल के होते हैं तो आप सीधे लड़ लेते हैं। फिर आप बड़े हो जाते हैं तो आप अलग तरीके से लड़ते हैं और आज जब मुझे बदला लेना होता है तो मैं कुछ नहीं कहती। बस, अपने आप को इतना मज़बूत बना लेती हूँ कि सामने वाले को सोचने पर मजबूर कर देती हूँ। कभी किसी फिल्म से मुझे किसी समय निकाला गया हो तो मैं अपने आप पर इतनी मेहनत करती हूं कि वही लोग मेरे पास आकर फिल्म करने की गुजारिश करें। फिर मैं तय करूं कि मुझे उन लोगों की फिल्म करना है या नहीं।" इस सप्ताह रिलीज़ होने वाली फिल्म 'बदला' में मुख्य किरदार निभाने वाली तापसी पन्नू ने प्रमोशनल इंटरव्यू के दौरान ये बात वेबदुनिया संवाददाता रूना आशीष से साझा की। 
 
तापसी, कहीं ये बात हाल ही में फिल्म 'पति पत्नी और वो' के संदर्भ में तो नहीं कही है आपने? 
ये तो मैंने सिर्फ एक बात कही है कि मुझे कैसा लगा। फिल्म शुरू होने के एक महीने पहले आपको मालूम पड़े कि आप फिल्म में नहीं हैं तो बुरा लगना स्वाभाविक है। वो भी आपको किसी बाहर वाले से पता चले तो और बुरा लगता है। सच कहूं तो फिल्म इंडस्ट्री में एक्ट्रेस के लिए रिप्लेस होना या रिजेक्ट होना आम बात है। ये तो हमारे साथ होता रहता है, लेकिन बात किस तरह से मुझे मालूम हुई यह महत्वपूर्ण है।



यानी आपको इस तरह से रिप्लेस होने की वजह से गुस्सा आया? 
मैं भी इंसान हूँ। मुझे भी बुरा लगता है और गुस्सा आता है। ये तो मैं इतनी सारी फ़िल्मों को करने के बाद कहने या सुनने की हालत में हूँ वरना मेरी जगह कोई और अभिनेत्री होती तो क्या वह इतनी बात बोल भी पाती? 
 
'पिंक' के अमिताभ और 'बदला' के अमिताभ के रोल में कितना अंतर है? 
बहुत अंतर है। 'पिंक' के दीपक सहगल एक बीमारी से लड़ते-लड़ते लड़कियों को न्याय दिलाने के लिए धीरे-धीरे केस के साथ अपने फ़ुल फ़ॉर्म में पहुँचते हैं, जबकि इस बार 'बदला' में तो वे शुरू से ही फ़ॉर्म में हैं। वे बहुत ही मंझे हुए वकील हैं जिन्हें कई बातें परत दर परत समझ आती हैं। 'पिंक' में मैं इसी बात पर राहत महसूस करती हूँ कि कोई तो है जो मेरा केस लड़ रहा है, जबकि 'बदला' में मैं बादल गुप्ता को पैसे दे कर अपना केस लड़ने को कहती हूँ। 

अमिताभ बहुत रिहर्सल करते हैं और आप?
नहीं, मैं रिहर्सल नहीं करती। मुझे लगता है कि मैं ख़र्च हो जाऊंगी। बच्चन सर, तो हर सीन की कई बार रिहर्सल करते हैं। मैं सुजॉय को कहती थी कि जब वो सेट पर आ जाएं बुला लेना। बच्चन सर को भी मेरी आदत मालूम है। एक बार वे बोले भी कि मोहतरमा एक बार मेरे साथ सीन की रिहर्सल कर लीजिए। मैंने रिहर्स किया, लेकिन पूरे जोश के साथ नहीं किया। मुझे डर लगता है कि कहीं मेरी एनर्जी ऐसे ही खत्म ना हो जाए। 
 
जब भी कोर्टरूम होता है वहां आप होती हैं। 
आप मेरा नाम कोर्ट रूम रख दो। 'पिंक' से कोर्ट रूम का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वो खत्म नहीं हुआ है। 'पिंक' के बाद फिर बच्चन सर के 'बदला' में वकील होने से किसी को भी लग सकता है कि यह कोर्ट रूम ड्रामा होगी, लेकिन इसमें मैं कोर्ट तक पहुंचती ही नहीं हूँ। मामला पहले ही निपटा लेती हूं। 

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