रंगमंच से पेट नहीं भरा जा सकता : सुशील जौहरी

- माहीमीत

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स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक साथिया के जीतु भाई और मैंने प्यार किया, हम साथ साथ हैं सहित कई फिल्मों एवं टीवी सीरियल में अपनी अदाकारी के जौहर दिखा चुके ख्यात रंगमंच कलाकार सुशील जौहरी ने वेबदुनिया से अंतरंग चर्चा की। इस दौरान उन्होंने फिल्म, टीवी सीरियल के अलावा कला, साहित्य और राजनीति पर अपनी बेबाक राय रखी। उन्होंने बताया कि वह अब भी अपने काम से संतुष्ट नहीं है। यदि भविष्य में उन्हें मौका मिलता है तो वह डायरेक्शन करने की इच्छा रखते है।


आपने रंगमंच, टीवी सीरियल और फिल्मों का सफर तय करने के बाद एक बार फिर से टीवी सीरियल की और रूख क्यों किया है?
कॉलेज के दौरान मैंने कुछ नाटकों में शौकिया तौर पर काम किया था। इसके बाद से ही अभिनय में करियर बनाने का विचार आया। इसी समय मैंने ख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी की रचनाओं पर आधारित नाटक किए। इन नाटकों में शरद जोशी मेरे अभिनय से बेहद प्रभावित हुए। इसी के चलते जब दूरदर्शन के लिए धारावाहिक बनाने वाले डायरेक्टर मंजुल सिन्हा को उन्होंने मेरे बारे में बताया। यही कारण है कि बिना स्ट्रगल किए ही मुझे ये जो है जिन्दगी में रोल मिल गया। बाद मैंने कई सीरियलों में काम किया। टीवी सीरियल में काम देखकर बाद में राजश्री प्रोडक्शन की मैंने प्यार किया, हम साथ साथ हैं और जियो यो तो ऐसे जियो में काम करने का अवसर मिला। चूंकि टीवी सीरियल मैंने अपने अभिनय की पारी शुरू की थी यही कारण है कि दोबारा से टीवी सीरियल करने का मौका मिला तो मना नहीं कर सका।

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इस समय रंगमंच की दयनीय स्थिति है। टीवी सीरियल और फिल्मों की तुलना में रंगमंच को किस तरह देखते हैं?
रंगमंच पर एक ही कलाकार द्वारा अलग-अलग रोल कर अभिनय की भूख तो मिटाई जा सकती है, लेकिन पेट नहीं भरा जा सकता है। यही कारण कि रंगमंच के कलाकार टीवी और फिल्म की ओर आते हैं। पैसो के लिहाज से देखा जाए तो फिल्मों के ए ऑर्बिट कलाकार ही संतुष्ट रहते है। बाकी बी और सी ऑर्बिट में काम करने वाले कलाकार पैसों के मामले में संतुष्ट नहीं रहते हैं। वहीं टीवी सीरियल में पैसा मिल जाता है, लेकिन रोल छोटे होने के कारण ज्यादातर समय व्यर्थ ही जाता है। सप्ताह के एक दो बार ही एक दो घंटे का शूट होता है।

साइंस के स्टूडेंट थे, अचानक थिएटर से कैसे जुड़े? पहला नाटक कौन सा किया?
1976 में सबसे पहले कॉलेज के वार्षिक समारोह में नाटक देखे और बाद में प्रोफेसर सतीश मेहता की संस्था प्रयोग के साथ जुड़कर कुछ नाटक किए। इस दौरान एक था गधा, अंधा युग, दुलारी बाई सहित कई नाटकों में अभिनय किया। इसी दौरान ज्यादतर समय नाटक की रिहर्सल करने और नाटक पढऩे में ही बीतता था। यही कारण है कि पढ़ाई में फिर ज्यादा मन नहीं लगा और अभिनय में ही रम गए।

एक कलाकार के तौर पर कला और साहित्य को राष्ट्र निर्माण में कितना अहम मानते हैं? अभिनय के अलावा और कौन से शौक हैं?
वास्तव में देखा जाए तो कला एक आनंद की चीज है, लेकिन यह आनंद तब तक ही देती है जब तक इसे मनोरंजन के हिसाब से की जाए। परंतु बहुत दुख होता है कि आज के नवोदित कलाकारों का लक्ष्य कला नहीं बल्कि धन उपार्जन करना है। मेरे हिसाब से जब कला उपार्जन का जरिया बन जाती तब वह आनंददायक के साथ ही दुखदायक भी बन जाती है। जहां तक साहित्य की बात की जाए तो मैं अभिनेता नहीं होता तो एक साहित्यकार होता। जब मैं मंदसौर जिले के नगरी गांव में पढ़ता था तब मेरे गुरु राजमल दांगी साहित्य पढऩे का कहते थे। ऐसे में धीरे-धीरे कहानी और कविताएं पढऩे लगा।

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फिल्म और टीवी सीरियल के कौन से कलाकार की अदाकारी से आप प्रभावित हैं?
युवा पीढ़ी के कलाकारों में रणबीर कपूर की अदाकारी बहुत पसंद है। वह बहुत आगे तक जाएंगे। वहीं इरफान खान की एक्टिंग को बहुत एंजॉय करता हूं। इनके अलावा नसरूद्दीन शाह और सतीश शाह की एक्टिंग देखना सुकूनदायक है। दोनों ही उम्दा कलाकार हैं।

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और शाहरुख सहित अन्य अभिनेताओं की अदाकारी को किस तरह देखते हैं?
अमिताभ बच्चन स्टार होने के साथ-साथ एक अच्छे परफॉर्मर एक्टर हैं। वह हर एक कैरेक्टर को जीते हैं और बेहतर तरीके से परफॉर्म करते हैं। यही कारण है कि उनकी एक्टिंग में एक ताजगी होती है। वहीं उनके समकालीन कलाकार जैसे धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना और बाद की पीढ़ी के कलाकार शाहरूख खान व सलमान खान बहुत बड़े स्टार हैं। वे अपना जलवा दिखाते हैं और चले जाते हैं। वास्तव में देखे तो अमिताभ के अभिनय में वेरीएशन है और यह उन्हें कुदरत ने दी। जो उनके समकालीन किसी कलाकार में नहीं है। यही कारण है कि अमिताभ आज भी अपनी अदाकारी का जलवा दिखा रहे हैं।

मौजूदा देश की राजनीति को किस रूप में देखते हैं?
वर्तमान राजनीति में राजा के न होने के बावजूद राजतंत्र घुस गया है। लोकतंत्र खत्म हो गया है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने इसे तोड़ा। वह जनता के विश्वास पर कितने खरे उतरते हैं यह देखना बाकी है। जहां तक 2014 की बात है मोदी सरकार के आसार है, लेकिन उनसे भी गणतंत्र शासन की उम्मीद नहीं की जा सकती। देश की राजनीति को आज गणतंत्र शासन की बहुत जरूरत है।

सबसे बड़ा अवॉर्ड किसे मानते हैं। कोई खास इच्छा जो अब तक पूरी नहीं हुई है?
पिछले दिनों बाइबल को हिन्दी में ईसा मसीह की आवाज में रिकॉर्ड किया। यही मेरे जीवन का सबसे बड़ा अवॉर्ड है। डायरेक्शन करने की इच्छा है। मौका मिलेगा तो जरूर करूंगा।

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