कल्याणजी-आनंदजी वाले 'आनंद जी'

(जन्मदिन 2 मार्च के अवसर पर)

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' जिंदगी तो बेवफा है एक दिन ठुकराएगी, मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी...।' जिंदगी के अनजाने सफर से बेहद प्यार करने वाले हिन्दी सिने जगत के मशहूर संगीतकार आनंदजी का जीवन से प्यार उनकी संगीतबद्ध इन पंक्तियों में समाया हुआ है। आनंदजी का जन्म 2 मार्च 1933 को हुआ जबकि उनके बड़े भाई कल्याणजी वीरजी शाह का जन्म 30 जून 1928 को हुआ था। बचपन के दिनों से ही कल्याणजी और आनंदजी संगीतकार बनने का सपना देखा करते थे। हालांकि उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए कल्याणजी मुंबई आ गए, जहां उनकी मुलाकात संगीतकार हेमंत कुमार से हुई।

कल्याणजी, हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर काम करने लगे। बतौर संगीतकार सबसे पहले 1958 में प्रदर्शित फिल्म 'सम्राट चंद्रगुप्त' में उन्हें संगीत देने का मौका मिला लेकिन फिल्म की असफलता के कारण वे कुछ खास पहचान नहीं बना पाए। अपना वजूद तलाशते कल्याणजी को बतौर संगीतकार पहचान बनाने के लिए लगभग 2 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पड़ा। इस दौरान उन्होंने कई बी और सी ग्रेड की फिल्में भी कीं। वर्ष 1960 में उन्होंने अपने छोटे भाई आनंदजी को भी मुंबई बुला लिया। इसके बाद कल्याणजी ने आनंदजी के साथ मिलकर फिल्मों में संगीत देना शुरू किया।

वर्ष 1960 में ही प्रदर्शित फिल्म 'छलिया' की कामयाबी से बतौर संगीतकार कुछ हद तक कल्याणजी-आनंदजी अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। फिल्म 'छलिया' में उनके संगीत से सजे गीत 'डम-डम डिगा-डिगा...', 'छलिया मेरा नाम...' श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय हैं।

वर्ष 1965 में प्रदर्शित संगीतमय फिल्म 'हिमालय की गोद में' की सफलता के बाद कल्याणजी-आनंदजी शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे। सिने करियर के शुरुआती दौर में उनकी जोड़ी निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार के साथ बहुत जमी। मनोज कुमार ने सबसे पहले इस संगीतकार जोड़ी से फिल्म 'उपकार' के लिए संगीत देने की पेशकश की। इस फिल्म में इंदीवर रचित गीत 'कस्मे-वादे प्यार वफा...' के लिए दिल को छू लेने वाला संगीत देकर कल्याणजी-आनंदजी ने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया।

इसके अलावा मनोज कुमार की ही फिल्म 'पूरब और पश्चिम' के लिए भी कल्याणजी-आनंदजी ने 'दुल्हन चली, वो पहन चली तीन रंग की चोली...' और 'कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे...' जैसा सदाबहार संगीत देकर अलग ही समां बांध दिया।

वर्ष 1970 में विजय आनंद निर्देशित फिल्म 'जॉनी मेरा नाम' में 'नफरत करने वालों के सीने में प्यार भर दूं...', 'पल भर के लिए कोई मुझे प्यार कर ले...' जैसे रुमानी गीतों को संगीत देकर कल्याणजी-आनंदजी ने श्रोताओं का दिल जीत लिया।

मनमोहन देसाई के निर्देशन में फिल्म 'सच्चा-झूठा' के लिए कल्याणजी-आनंदजी ने बेमिसाल संगीत दिया। 'मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनियां...' को आज भी शादी के मौके पर सुना जा सकता है।

कल्यणजी-आनंदजी के उनके पसंदीदा निर्माता-निर्देशकों में प्रकाश मेहरा, मनोज कुमार, फिरोज खान आदि प्रमुख रहे हैं। कल्याणजी-आनंदजी के सिने करियर पर नजर डालने पर पता लगता है कि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन पर फिल्माए उनके गीत काफी लोकप्रिय हुआ करते थे।

वर्ष 1989 में सुल्तान अहमद की फिल्म 'दाता' में उनके कर्णप्रिय संगीत से सजा यह गीत 'बाबुल का ये घर बहना, एक दिन का ठिकाना है...' आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है।

वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म 'सरस्वतीचन्द्र' के लिए कल्याणजी-आनंदजी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के नेशनल अवॉर्ड के साथ-साथ फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। इसके अलावा 1974 में प्रदर्शित 'कोरा कागज' के लिए भी उन्हे सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।

कल्याणजी-आनंदजी ने अपने सिने करियर में लगभग 250 फिल्मों को संगीतबद्ध किया। वर्ष 1991 में प्रदर्शित फिल्म 'प्रतिज्ञाबद्ध' इन दोनों की जोड़ी वाली आखिरी फिल्म थी।

24 अगस्त 2000 को कल्याणजी इस दुनिया को अलविदा कह गए। अपने जीवन के 80 बसंत देख चुके आनंदजी इन दिनों बॉलीवुड में सक्रिय नहीं हैं। (वार्ता)

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