शैलेन्द्र : सजनवां बैरी हो गए हमार...

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- संजय सिन्हा 

गीतकार स्वर्गीय शैलेन्द्र की पुण्यतिथि 14 दिसम्बर पर विशेष
 
वर्ष 1951 में रिलीज़ हुई राजकपूर की फिल्म 'आवारा' का शीर्षक गीत-'आवारा हूं या गर्दिश में हूं......' सुनकर आज भी मन रोमांचित हो उठता है। भले ही लोगों ने राज कपूर और मुकेश को याद रखा होगा, लेकिन इस गीत के रचयिता शैलेन्द्र क्या आपको याद हैं? 
 
सन 1948  में पहली बार शैलेन्द्र ने फिल्म 'बरसात' के लिए गीत लिखे। शंकर-जयकिशन की धुनों ने फिल्म के गीतों को संवारा। लता मंगेशकर और मुकेश ने जब आवाज़ दी तो सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो गए। 'बरसात' से लेकर 1970 में रिलीज़ हुई राजकपूर द्वारा निर्मित लगभग सभी फिल्मों के थीम-सांग शैलेन्द्र ने ही लिखे। 



 
शैलेन्द्र को शब्दों की बाज़ीगरी में महारत हासिल थी। उन्होंने जिस भी सिचुएशन पर गीत लिखे, सुनने वालों ने उसे सराहा। शैलेन्द्र के बारे में सबसे ख़ास बात ये थी क़ि वे हमेशा धुनों पर गीत लिखते थे। संगीतकार पहले धुन बनाकर सुनाते थे, फिर धुन सुनकर उनके मुताबिक गीत लिखते थे शैलेन्द्र। 
 
धुन पर गीत लिखना मुश्किल होता है, मगर शैलेन्द्र को कभी परेशानी नहीं हुई। उनके काम करने का अंदाज़ बिलकुल जुदा था। सरल और सही शब्दों का चयन करके दिल को छू लेने वाले गीत लिखते थे वे। जो भी लिखते, दिल से लिखते। उनके गीतों में आत्मा होती थी। यही वजह है क़ि उनके लिखे गीत आज भी सुनने वालों को मदहोश करते हैं। 
 
1966 में बनी फिल्म 'तीसरी कसम' शैलेन्द्र के लिए 'माइल स्टोन' साबित हुई। इस फिल्म को राष्ट्रपति स्वर्ण पदक से नवाज गया। बंगाल जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने इस फिल्म के कर्णप्रिय गीतों के लिए शैलेन्द्र को सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए फिल्म-फेयर अवार्ड दिया गया। इतने सम्मान के बाद भी शैलेन्द्र में लेशमात्र भी घमंड नहीं आया, बल्कि उनकी लेखनी और सुदृढ़ हुई।  
 
एक बार शैलेन्द्र राजकपूर क़ी एक फिल्म के लिए गीत लिख रहे थे। राज कपूर को थोड़ी जल्दी थी। उन्होंने शैलेन्द्र से कहा- 'लिखने क़ी रफ़्तार बढ़ा दीजिए।' इस पर शैलेन्द्र ने कहा- 'अगर जल्दबाज़ी है तो, किसी और से गीत लिखवा लीजिए, मैं अपनी शर्तों पर ही लिखूंगा। जल्दबाज़ी होगी तो गीतों क़ी आत्मा मर जाएगी।' ऐसे थे शैलेन्द्र, जो राज कपूर जैसे बड़े शोमैन से भी यह कहने का माद्दा रखते थे। 
 
शैलेन्द्र ने कुछ फिल्मों में एक्टिंग भी की थी, मसलन-'नया घर', बूट पालिश', 'श्री 420 ', 'मुसाफिर 'और 'तीसरी कसम'। पचास और साठ के दशक में बनी इन फिल्मों में शैलेन्द्र ने अपनी अदाकारी से सबको मोह लिया। 1966 में शैलेन्द्र नें 'तीसरी कसम' फिल्म बनाई थी। अपने फ़िल्मी करियर में उन्होंने एक ही फिल्म का निर्माण किया। 
 
अपने जीवन काल में शैलेन्द्र ने कुल 171 हिंदी और 6 भोजपुरी फिल्मों के लिए गीत लिखे। उन्होंने 28 अलग-अलग संगीतकारों के साथ काम किया, जिनमें शंकर-जयकिशन, सचिन देब बर्मन, रोशन, हेमंत कुमार, सलिल चौधरी, शैलेश मुख़र्जी, चित्रगुप्त, कल्याण जी-आनंद जी, पंडित रविशंकर और अनिल विश्वास जैसे दिग्गज शामिल हैं। शंकर-जयकिशन के साथ उन्होंने सबसे ज़्यादा फ़िल्में कीं। 
 
सन 1960 में निर्मित फिल्म 'परख' के लिए उन्होंने डॉयलाग्स भी लिखे, हालाँकि यह फिल्म हिट नहीं हो पाई, मगर फिल्म के डॉयलाग्स सराहे गए। 
 
शैलेन्द्र ने हर मूड, हर मिज़ाज़ और हर सिचुएशन के गीत लिखे। रोमानी गीतों ने जहाँ एक और लोगों को मदहोश किया, वहीँ सैड सांग्स ने आँखों में आंसू ला दिए। 30  अगस्त 1923 को जन्मे शंकर सिंह शैलेन्द्र  ने 14  दिसम्बर 1966 को मुम्बई में अंतिम सांसें लीं। 
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