नौशाद : सुरीले गीत देने वाले संगीतकार

पाँच मई पुण्यतिथि पर विशेष

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दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा..., नैन लड़ जई हैं..., मोहे पनघट पे नंदलाल... जैसे एक से एक सुरीले गीत देने वाले संगीतकार नौशाद ने अपने लंबे फिल्मी करियर में हमेशा कुछ न कुछ नया देने का प्रयास किया और उनके हर गाने में भारतीय संगीत की मिठास झलकती है।

हिन्दी फिल्मों में 1930 के दशक से संगीत दे रहे नौशाद ने कभी भी अपने गीतों में संगीत से समझौता नहीं किया। उन्होंने अपने गीतों में जहाँ लोकगीत और लोक संगीत की मधुरता को पिरोया वहीं उन्होंने शास्त्रीय संगीत का दामन भी नहीं छोड़ा।

नौशाद ने पहली बार उस्ताद बड़े गुलाम अली खान, उस्ताद अमीर खान और पंडित डीवी पलुस्कर जैसी हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की महान विभूतियों से फिल्म के लिए गायन करवाया। हिन्दी फिल्म उद्योग आज भी शास्त्रीय संगीत की इन महान विभूतियों द्वारा गाए गए गीतों पर गर्व करता है।

लखनऊ में 25 दिसंबर 1919 को जन्मे नौशाद के परिवार में संगीत की विरासत नहीं थी। उन्हें संगीत के संस्कार कव्वाली और भक्तिपूर्ण संगीत से मिले। उन्होंने उस्ताद गुरबतसिंह, उस्ताद यूसुफ अली, उस्ताद बब्बन साहब आदि से संगीत की शिक्षा ली। शुरुआत में उन्होंने लखनऊ के थिएटरों में मूक फिल्म के प्रदर्शनों के दौरान हारमोनियम और तबला बजाने का काम किया।

फिल्मों के प्रति प्रेम के कारण नौशाद 1937 में बंबई पहुँच गए। उन्होंने शुरुआत में कई फिल्म कंपनियों और संगीतकारों के साथ सहायक के रूप में काम किया। बाद में 1942 में एआर कारदार की 'नई दुनिया' पहली ऐसी फिल्म थी जिसमें उनका नाम संगीतकार के रूप में दिया गया। उन्होंने 'शारदा' फिल्म में पहली बार 13 वर्ष की सुरैया को गाने का मौका दिया।

नौशाद के जीवन में 'रतन' फिल्म बड़ी सफलता लेकर आई और इस फिल्म ने उन्हें एक बडे़ संगीतकार के रूप में स्थापित कर दिया। इसके बाद उनकी फिल्म 'अनमोल घड़ी' आई जिसमें नूरजहाँ के भी गीत थे। इसके बाद अगले दो दशक तक नौशाद की संगीत वाली तमाम फिल्मों ने सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली और डाइमंड जुबली मनाई।

उन्होंने 'मदर इंडिया' फिल्म के लिए भी यादगार संगीत बनाया। यह पहली ऐसी भारतीय फिल्म थी जिसे ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया। नौशाद ने एक संगीतकार के रूप में हमेशा प्रयोग किए और उनके प्रयोगों के कारण हिन्दी फिल्मों को कुछ अनूठे तोहफे मिले।

हिन्दी फिल्मों में वे साउंड मिक्सिंग तथा संगीत और गायन को अलग-अलग रिकॉर्ड करने वाले पहले संगीतकार थे। यही नहीं उन्होंने 'आन' फिल्म में 100 वाद्य वृंदों वाले ऑर्केस्ट्रा का इस्तेमाल किया था। मुगले आजम फिल्म के एक गाने में उन्होंने सौ लोगों के समूह से गायन करवाया था। यही नहीं प्यार किया तो डरना क्या... गाने के कुछ अंश को उन्होंने लता मंगेशकर से बाथरूम में गाने को कहा क्योंकि वहाँ लगे विशेष टाइल की गूँज को रिकॉर्ड कर उन्होंने गाने में प्रयोग किया था।

समीक्षकों के अनुसार नौशाद के गानों में भारतीय संगीत की आत्मा बसती है। 'गंगा जमुना' फिल्म में उन्होंने अवधी भाषा की लोकधुनों का खूबसूरती से प्रयोग किया है। इस फिल्म का मेरे पैरों में घुँघरू बँधा दे... गाने में उनके संगीत की मधुरता स्पष्ट तौर पर महसूस की जा सकती है।

नौशाद संगीतकार ही नहीं एक अच्छे शायर थे और उनकी रचनाओं का संग्रह 'आठवाँ सुर' नाम से प्रकाशित हुआ। नौशाद ने 'पालकी' फिल्म के लिए पटकथा भी लिखी थी। उन्हें 1981 में हिन्दी फिल्मों के शीर्षस्थ सम्मान दादा साहब फालके पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उनके बनाए गए 'रतन' फिल्म के गीत अँखिया मिला के..., 'मेला' फिल्म का ये जिंदगी के मेले..., 'अनमोल घड़ी' का आवाज दे कहाँ है..., 'दर्द' फिल्म का अफसाना लिख रही हूँ..., 'बैजू बावरा' का तू गंगा की मौज... और 'मदर इंडिया' का ओ गाडीवाले... आज भी श्रोताओं के पसंदीदा गीत हैं। नौशाद ने प्रेम गीत, शोक गीत, भजन, देशभक्ति गीत सहित विभिन्न अंदाजों वाले गानों को संगीत में पिरोया था।

इस महान संगीतकार को भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया था। इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी, लता मंगेशकर पुरस्कार, फिल्म फेयर पुरस्कार, अमीर खुसरो पुरस्कार आदि कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। संगीत की दुनिया की इस महान शख्सियत का 86 वर्ष की उम्र में पाँच मई 2006 को निधन हुआ।

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