मेहमूद : द किंग ऑफ कॉमेडी

जन्म : 29 सितंबर 1932 * मृत्यु : 23 जुलाई 2004

समय ताम्रकर
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दे दे खुदा के नाम से देदे! दिनार नहीं, तो डॉलर चलेगा। शर्ट नहीं तो शर्ट का कॉलर चलेगा। इन संवाद के बाद गाना शुरू होता है- तुझको रक्खे राम, तुझको अल्लाह रक्खे। यह सीन है रामानंद सागर की फिल्म आंखे (1968) का। मेहमूद भिखारी के भेष में अपने साथी धर्मेन्द्र की तलाश में हैं।

ऐसे ही मेहमूद को तरह-तरह की विचित्र आवाजें निकालने का बेहद शौक था। फिल्म प्यार किए जा में उन्होंने लैंग्वेज से इफेक्ट पैदा किया था- टोइंग-टोइंग.... वाव्व-वाव्व.....कु्रड-कु्रड कच-कच-कच......श्मशान की भयाकनता वह शब्दों के मार्फत बताना चाहते थे।

हिन्दी सिनेमा में कॉमेडियन की लम्बी परम्परा रही है। लेकिन सबसे अधिक फिल्मों में सबसे अधिक नाना-प्रकार के रोल करना उनके ही खाते में दर्ज है। जॉनी वॉकर और किशोर कुमार को थोड़ी देर के लिए माइनस कर दिया जाए, तो मेहमूद को किंग ऑफ कॉमेडी के खिताब से कोई नहीं रोक सकता।

बॉम्बे टॉकीज के आंगन में
मेहमूद का जन्म 29 सितम्बर 1932 को मुम्बई के बायुकला इलाके में हुआ था। उनके पिता मुमताज अली बॉम्बे टॉकीज में नर्तक-अभिनेता थे। मेहमूद का बचपन अपने पिता के साथ स्टुडियो में बीता। स्टुडियो में खेलना-कूदना और मौज-मस्ती करना उन्हें पसंद था, लेकिन फिल्मों में एक्टिंग की रूचि कतई नहीं थी। पतंग उड़ाना, दोस्तों के साथ बगीचों से आम चुराना, काजू खाना उन्हें अच्छा लगता था।

मेहमूद ने बचपन में दोस्तों की एक गैंग बना ली थी। वह मिलकर अपने से बड़ों की मजाक और नकल करने में माहिर थे। बॉम्बे टॉकीज की फिल्मों में काम करने वाले कलाकार अक्सर अपनी मोटर-कार भेजकर मेहमूद को बुलवाते और हंसी-मजाक से अपना मनोरंजन करते थे। मेहमूद ने कई बार घर से भागने की कोशिश की थी। एक बार पक्रडे गए, तो मां ने नाराज होकर कहा- 'ये जो कपड़े पहने हो, तुम्हारे अब्बा के हैं। यहीं उतार कर जाओ।' और सचमुच में मेहमूद ने अपने बदन से सारे कपड़े उतार दिए और नग्न अवस्था में घर छोड़ दिया।

माधुरी से निकाह
घर से भागकर मेहमूद ने कई छोटे-मोटे काम किए। अण्डे बेचना। मुर्गी के चूजे सप्लाय करना। मीना कुमारी को टेबल टेनिस खेलने की ट्रेनिंग भी मेहमूद ने दी है। मीना के घर आना-जाना बढ़ा तो उनकी छोटी बहन माधुरी से 1953 में निकाह कर लिया। जब जिंदगी और परिवार के प्रति गंभीर हुए तो फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने लगे। लेकिन किसी निर्माता-निर्देशक को यह पता नहीं चलने दिया कि वह मीनाकुमार के बहनोई हैं।

बॉम्बे टॉकीज की फिल्म किस्मत (1943) में अशोक कुमार के बचपन का रोल मेहमूद ने किया है। इसके बाद किशोर साहू की फिल्म सिंदूर (1947) में एक भूमिका निभाई। अब तक मेहमूद की बहन मीनू मुमताज एक प्रसिद्ध अभिनेत्री बन चुकी थी। मगर यहां भी उन्होंने अपनी खुद्दारी कायम रखी और बहन के नाम का इस्तेमाल नहीं किया। ऐसा कहा जाता है कि बीआर चोपड़ा की फिल्म एक ही रास्ता (1953) में उन्हें जो रोल ऑफर हुआ था, उसकी वजह मीना कुमारी थी, जो फिल्म की नायिका थी। मेहमूद ने अपना रास्ता बदल लिया।

अशोक कुमार की सलाह
बॉम्बे टॉकीज के समय से ही मेहमूद दादा मुनि यानी अशोक कुमार के फेवरेट हो गए थे। उन्होंने अपनी फिल्म बादबान (1954) तथा बंदिश (1955) में मेहमूद को काम दिया। एक बार उन्होंने मेहमूद को पास बैठाकर कर कहा कि तुम्हारे ललाट पर त्रिशूल का निशान है। भगवान शिव तुमसे प्रसन्न हैं। इसलिए फिल्मों के किरदार के नाम महेश रख कर काम किया करो। मेहमूद ने ऐसा ही किया।

मेहमूद को फिल्में तो मिलती चली गईं मगर ऐसा रोल नहीं मिला, जिससे उसका नाम होकर दर्शकों में एक पहचान बन सके। जॉनी वाकर ने मेहमूद की मदद की। गुरुदत्त की फिल्म सीआईडी (1956) में एक हत्यारे का रोल किया। फिल्म प्यासा (1957) में गुरुदत्त के भाई का रोल निभाया, जो गुरुदत्त को घर से बाहर कर देता है। अभिमान तथा हावड़ा ब्रिज फिल्म में भी मेहमूद ने काम तो किया मगर किस्मत चमकने नहीं पाई।

सुसराल से बने कॉमेडियन
मेहमूद को लाइमलाइट में लाने वाली फिल्म थी परवरिश (1958)। इसमें वह राज कपूर के हंसोड़ छोटे भाई बने थे। इस फिल्म के बाद उन्हें लम्बे और महत्वपूर्ण रोल ऑफर होने लगे। छोटी बहन (1959), कानून (1960) तथा मैं और मेरा भाई (1961)।

इसके बाद आई राजेन्द्र कुमार - सरोजा देवी अभिनीत फिल्म ससुराल (1961)। इसमें उनका कॉमेडियन का रोल था, जो सीन चुराकर ले गया। शुभा खोटे उनके अपोटिज थी। दोनों की जोड़ी आगे चलकर हिट हुई। मेहमूद ने इसमें एक यादगार गाना गया था- अपनी उल्फत पे जमाने का ना पेहरा होता। शुभा खोटे- मेहमूद की मैजिकल केमिस्ट्री को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। इनकी टीम बाद में दिल तेरा दीवाना, गोदान, गृहस्थी, भरोसा, हमराही, बेटी-बेटे, जिद्दी और लव इन टोकियो में लगातार दिखाई दी। कॉमेडियन की इस जोड़ी ने थर्ड-एंगल के बतौर धुमाल को जोड़ देने से नौटंकी ज्यादा धमाकेदार हो गई।

मेहमूद और म्युजिक सेंस
मेहमूद के एक व्यक्तित्व में कई व्यक्तित्व समाए हुए थे। उन्हें संगीत की बेहतर समझ थी। उन्होंने जॉनी वाकर को सामने रखकर कई गाने अपनी फिल्मों में गाए हैं। दूसरे पार्श्वगायक मन्ना डे ने जितने नटखट गाने गाए हैं, ज्यादातर का पार्श्वगायन मेहमूद के लिए हुआ है। मन्ना डे ने अपनी आत्मकथा में मेहमूद का आभार भी माना है।

जब मेहमूद फिल्म निर्माता बन गए तो उन्होंने अनेक संगीतकारों को मौका देकर आगे बढ़ाया। मिसाल के बतौर आडी बर्मन (छोटे नवाब), राजेश रोशन (कुंआरा बाप) तथा बासु-मनोहारी (सबसे बड़ा रुपैय्या) के नाम गिनाए जा सकते हैं।

जीरो से हीरो तक
अपने घर से नग्न अवस्था में बाहर आने वाला बालक अपने साथ जीरो लेकर चला था। जब कॉमेडियन के रूप में वह फिल्मों के लिए अनिवार्य हो गए तो छोटे बजट की फिल्मों में उन्हें हीरो के रोल मिलने लगे। छोटे नवाब (निर्माता-मेहमूद), फर्स्ट लव, प्यासे पंछी, कहीं प्यार ना हो जाए, शबनम, भूत बंगला, नमस्ते जी जैसी फिल्में प्रमुख हैं। आई.एस. जौहर के साथ भी मेहमूद की ट्यूनिंग उम्दा रही। जौहर-मेहमूद इन गोआ के बाद जौहर-मेहमूद इन हांगकांग इस जोड़ी की यादगार फिल्में हैं।

साठ के दशक में मध्य से हिन्दी फिल्मों के लिए मेहमूद का फिल्म में होना उसकी सफलता की गारंटी बन गया था। इस दौर में बड़े बैनर, बड़ी फिल्में और बड़े सितारों के साथ काम करने का मौका मिला। ऐसी फिल्मों का यहां सिर्फ उल्लेख किया जा सकता है- पत्थर के सनम, दो कलियां, नीलकमल, औलाद, प्यार किये जा, हमजोली, पड़ोसन आदि।

फिल्म पड़ोसन मेहमूद के करियर की ऑल टाइम ग्रेट फिल्म है। यदि पांच कॉमेडी फिल्मों की तालिका बनाई जाए, तो निश्चित रूप से उनमें से एक पड़ोसन रहेगी। शुभा खोटे के बाद कॉमेडी-पार्टनर के रूप में दूसरी लेडी हैं अरुणा ईरानी। मेहमूद का साथ पाकर अरुणा का करियर इतना आगे बढ़ गया कि मेहमूद ने अपने प्रोडक्शन हाउस में अमिताभ बच्चन को हीरो बनाकर फिल्म बॉम्बे टू गोआ (1972) बनाई।

डूबने लगा सूरज
अपने करियर के शिखर पर जाकर मेहमूद अपने आपको संभाल नहीं पाए। जरूरत से ज्यादा कॉमेडी और इमोशनल रोल करने से वे टाइप्ड हो गए। एक के बाद एक लगातार फिल्में रिलीज होने से भी दर्शक मेहमूद-मेनिया के शिकार होने लगे।

सत्तर के दशक ढलते-ढलते मेहमूद के सूरज की गर्मी ठण्डी होने लगी। देव आनंद के केम्प में शरीक होकर उन्होंने डॉर्लिंग-डॉर्लिंग (1977), देस परदेस (1978) और लूटमार (1980) फिल्में की थीं। ये फिल्में देव आनंद के लिए भी कमजोर साबित हुईं। मेहमूद की इनमें चरित्र भूमिकाएं थीं। अस्सी के दशक में मेहमूद और निचली पायदान पर चले गए। दादा कोंडके का हाथ पक्रडकर उन्होंने अंधेरी रात में दिया तेरे हाथ में और खोल दे मेरी जुबान जैसी स्तरहीन फूहड़ फिल्में की।

मेहमूद के जीवन के आखिरी दिन अकेले और बीमारी से संघर्ष में बीते। लगातार ऑक्सीजन सिलेंडर लगाने से फिल्मी दुनिया से दूर होते चले गए। आखिरी समय में भारत भी छूट गया। 24 जुलाई 2004 को पेननसिल्वेनिया (अमेरिका) के अस्पताल में आखिरी सांस ली।

मेहमूद ने अपने अंतिम दिनों में अपने दोस्त को जीवनी लिखवाई थी। उसमें वे कहते हैं- 'मैं कभी टाइप्ड नहीं हुआ। मेरी अपनी निश्चित स्टाइल भी नहीं थी। मुझमें ऑब्जरवेशन की ताकत अद्भुत थी। मैं अच्छा नकलची था। इसने मुझे अच्छा कॉमेडियन बना दिया। फिल्म सबसे बड़ा रुप्पैया में मैंने फिल्मिस्तान के सेठ तोलाराम जालान की कॉपी की थी।'

मेहमदू के यादगार गीत
तुम्हीं मेरे मीत हो, तुम्ही मेरी प्रीत हो (प्यास पंछी)
पीपरा के पतवा सरीका डोले मनवा (गोदान)
मैंने तेरे प्यार में क्या-क्या (जिद्दी)
अजबूं ना आया बालमा सावन बीता जाए (सांझ और सवेरा)
आओ ट्वीस्ट करें (भूत बंगला)
हम काले हैं तो क्या हुआ दिल वाले हैं (गुमनाम)
ये दो दीवाने दिल के (जौहर-मेहमूद इन गोआ)
ओ मेरी मैना (प्यार किए जा)
इक चतुर नार करके श्रृंगार (पड़ोसन)
जोड़ी हम्मारी जमेगा कैसे जॉनी (औलाद)
मुथु कोडी कवारी हडा (दो फूल)

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