इस बीच वहीदा के पिता की अचानक मृत्यु हो गई और घर की आर्थिक जिम्मेदारी वहीदा पर आ गई। पिता के एक मित्र की सहायता से वहीदा को एक तेलुगु फिल्म में काम करने का मौका मिला। फिल्म सफल रही। फिल्म में वहीदा का अभिनय दर्शकों ने सराहा।
हैदराबाद में फिल्म के प्रीमियर के दौरान निर्माता गुरूदत्त के एक डिस्ट्रीब्यूटर फिल्म में वहीदा के अभिनय को देखकर काफी प्रभावित हुए। उन्होंने गुरूदत्त को वहीदा से मिलने की सलाह दी। वहीदा छोटी थी इसलिए वहीदा की जगह उनकी मां गुरूदत्त से मिलने गई। बाद में गुरूदत्त ने वहीदा को स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया और अपनी फिल्म सी.आई.डी. में काम करने का मौका दिया।
फिल्म निर्माण के दौरान जब गुरूदत्त ने वहीदा को नाम बदलने के लिए कहा तो वहीदा ने साफ इंकार करते हुए कहा कि उनका नाम वहीदा ही रहेगा। दरअसल वहीदा का अर्थ होता है 'लाजवाब' इसलिए वे अपना नाम नहीं बदलना चाहती थीं। बाद में वहीदा रहमान ने अपने लाजवाब अभिनय से अपने नाम को सार्थक भी किया।
वर्ष 1957 में वहीदा रहमान को एक बार फिर से गुरूदत्त की फिल्म 'प्यासा' में काम करने का अवसर मिला। फिल्म के निर्माण के समय फिल्म अभिनेत्री के रूप में मधुबाला का नाम प्रस्तावित था, लेकिन गुरूदत्त को भरोसा था कि फिल्म के चरित्र के साथ केवल वहीदा रहमान ही इंसाफ कर सकती हैं।
फिल्म में वहीदा रहमान ने एक वेश्या का किरदार निभाया था। गुलाबो के किरदार को वहीदा रहमान ने इतने सहज और दमदार तरीके से पेश किया कि दर्शक उनके अभिनय के कायल हो गए। इसके बाद वहीदा रहमान को वर्ष 1959 में प्रदर्शित गुरूदत्त की ही फिल्म 'कागज के फूल' में काम करने का मौका मिला।
' कागज के फूल' के प्रीमियर के दौरान वहीदा रहमान ने कहा था 'फिल्म बहुत भारी है, नहीं चलेगी।' उनकी इस बात पर कथाकार अब्रार अल्वी ने कहा 'तुम अभी बच्ची हो। तुम क्या समझती हो।' फिल्म नहीं चली। इसकी मुख्य वजह यह थी कि फिल्म अपने वक्त से काफी आगे की थी, लेकिन बाद में इसी फिल्म को लोगों ने काफी सराहा। यह फिल्म देश की महानतम कला फिल्मों में शुमार की गई।
वर्ष 1960 में वहीदा रहमान की यादगार फिल्म 'चौदहवीं का चांद' रिलीज हुई, जो रूपहले पर्दे पर सुपरहिट हुई। इस फिल्म के एक गाने 'चौदहवीं का चांद हो, या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम, लाजवाब हो' ने दर्शकों को वहीदा का दीवाना बना दिया और उन्हें कहना पड़ा कि वह अपने नाम की तरह सचमुच लाजवाब हैं।
वर्ष 1962 में वहीदा रहमान की 'साहब बीबी और गुलाम' रिलीज हुई। फिल्म के निर्माण के समय वहीदा रहमान छोटी बहू के किरदार को निभाना चाहती थी, लेकिन इस किरदार के लिए अभिनेत्री मीना कुमारी को उपयुक्त समझा गया। इस बात को लेकर वहीदा काफी दुखी हुईं। वहीदा का मन रखने के लिए फिल्म निर्देशक ने 'छोटी बहू' के रूप में उनका स्क्रीन टेस्ट लिया, लेकिन वह इसमें सफल नहीं रही।
निर्देशक अबरार अल्वी किसी भी कीमत पर फिल्म में वहीदा को रखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने वहीदा को अन्य किरदार निभाने के लिए राजी कर लिया। हालांकि यह किरदार छोटी बहू के किरदार जितना महत्वपूर्ण नहीं था। इसके बावजूद वहीदा रहमान ने अपनी छोटी-सी भूमिका में जान डाल दी।
वहीदा ने कई यादगार फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों का मन मोहा है। इन दिनों वे यदाकदा फिल्मों में नजर आती हैं और उनकी झलक देखने उनके फैंस पहुंच जाते हैं।(वार्ता)
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