इन सालों में सिर्फ दो बार सुचित्रा को सार्वजनिक रूप से घर से बाहर देखा गया। पहली दफा 24 जुलाई 1980 को जब बांग्ला फिल्मों के महानायक उत्तम कुमार का निधन हुआ। अपनी कार से उतरकर वे सीधे उत्तम कुमार के शव के नजदीक आकर मौन खड़ी हो जाती हैं। फूलों की एक माला शव पर समर्पित कर चुपचाप कार में बैठ वापस आ जाती हैं।
दूसरी बार कलकत्ता में 1982 में चल रहे फिल्मोत्सव के दौरान एक फिल्म देखने आई थीं, तब दर्शकों-प्रशंसकों ने परिचित सनग्लास पहने सुचित्रा की झलक भर देखी थी। इन्हीं वजहों से सुचित्रा की तुलना हॉलीवुड की तीस-चालीस के दशक की सर्वाधिक लोकप्रिय तारिका रही ग्रेटा गार्बो से की जाती है।
ग्रेटा ने फिल्मों से संन्यास लेने के बाद न्यूयॉर्क के एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का एक पूरा माला खरीद लिया था। एक फ्लैट में वे रहती थीं। शेष में उन्होंने ताले लगवाकर बंद कर दिए थे। उनके माले पर लिफ्ट नहीं ठहरती थी क्योंकि उन्होंने अपनी मंजिल का बटन भी बंद करा दिया था। पैंतीस वर्ष तक ग्रेटा गार्बो ने ग्लैमर से दूर गुमनामी के अंधेरे की जिंदगी अकेले बिताई।
1978 में फिल्मों से संन्यास लेकर सुचित्रा भी ऐसा ही जीवन जी रही थीं। कुछ वर्ष पहले दादा साहेब फालके अवॉर्ड के लिए उनसे सम्पर्क किया गया था। सुचित्रा ने प्रस्ताव यह कहकर ठुकरा दिया था कि वे अवॉर्ड लेने घर से बाहर नहीं निकलेंगी। भारतीय सिनेमा के इतिहास में सुचित्रा सेन एक नाम न रहकर अब एक घटना बन गया है।