इसी तरह बिपाशा बसु का उदाहरण भी हमारे सामने है, जो गोरी न होते हुए भी 'हॉट' स्टार्स में अव्वल हैं। उन्होंने भी मॉडल के रूप में सफल पारी खेली, फिर फिल्मों का रुख किया। भले ही उनकी गिनती दिग्गज हीरोइनों में न होती हो, लेकिन ग्लैमर से भरपूर भूमिकाओं में उन्होंने अपना खास मुकाम बनाया है। अपनी फिगर, बड़ी-बड़ी आँखों, भारी आवाज और बिंदास जीवनशैली के दम पर उन्होंने यह कामयाबी पाई है और इस बात को झुठला दिया है कि ग्लैमर जगत में सफल होने के लिए गोरा रंग जरूरी है।
आइटम नंबरों की महारानी मलाइका अरोड़ा खान हों या फिर पूर्व मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन व लारा दत्ता, ग्लैमर की इन देवियों की त्वचा भी बहुत गोरी नहीं है। पूर्व मिस वर्ल्ड व अब टॉप फाइव हीरोइनों में से एक प्रियंका चोपड़ा के बिना मेकअप वाले जो चित्र जारी हुए हैं, उनमें वे भी वैसी गोरी नहीं नजर आतीं, जैसा कि चोटी की हीरोइन या मॉडल से अपेक्षा की जाती रही है।
दरअसल, पर्दे पर हीरोइनों को (और हीरो को भी) एक खास तरह से पेश करने के लिए उनका लुक 'डिजाइन' किया जाता है और इसी डिजाइनिंग में अक्सर उनका रंग भी उनके वास्तविक रंग से एक-दो डिग्री उजला कर दिया जाता है। यूँ इन दिनों यह व्हाइटवॉशिंग इतनी भी नहीं की जाती कि पर्दे पर चेहरा अवास्तविक लगे। साथ ही, जिस तरह फॉर्मूलों से हटकर फिल्मों को अधिक वास्तविक बनाने का चलन जोर पकड़ चुका है, उसी लीक पर किरदारों को असल जीवन के किरदारों जैसा दिखाने का भी आग्रह देखा जा रहा है। इसी के चलते हिन्दी सिनेमा के पर्दे पर डार्क टोन वाली स्किन दिखने लगी है।
इस परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती है बड़ी संख्या में साँवले रंग वाली अभिनेत्रियों की आमद। फिर चाहे वह कोंकणा सेन शर्मा हों या चित्रांगदा सिंह, नंदिता दास हो या शाहाना गोस्वामी, इनका रंग इनके फिल्मी करियर में कहीं आड़े नहीं आया है।
माही गिल, मुग्धा गोडसे, तनुश्री दत्ता, समीरा रेड्डी आदि दूसरी-तीसरी कतार की अभिनेत्रियाँ भी अपने रंग पर गर्व करते हुए फिल्मों में डटी हुई हैं। यह आत्मविश्वास ऐसे देश में बड़ी बात है, जहाँ पीढ़ियों से नारी सौंदर्य को गोरेपन से जोड़ा जाता रहा है।
बिपाशा बसु ने एक बार कहा था, 'भारत में आज भी साँवली लड़कियों को ताने दिए जाते हैं, वैवाहिक विज्ञापनों में गोरी लड़की की डिमांड रहती है। मैं साँवली हूँ और इस पर मुझे गर्व है।' इस तरह का आत्मविश्वास व्यक्तित्व में जो सौंदर्य लाता है, वह जमाने भर का गोरापन नहीं ला सकता।
उधर प्रियंका चोपड़ा यह टिप्पणी कर चुकी हैं कि दर्शकों में त्वचा के रंग को लेकर उतना पूर्वाग्रह नहीं है, जितना खुद इंडस्ट्री वालों में है। शायद दर्शकों की राय के आगे नतमस्तक होकर ही अब इंडस्ट्री भी गोरेपन का आग्रह त्याग रही है। वर्तमान दिग्गज हीरोइनों में केवल करीना कपूर और कैटरीना कैफ ही गोरेपन के अतिवादी मापदंडों पर खरी उतर सकती हैं। बाकी हीरोइनें इस बात का सबूत हैं कि नायिकाओं की स्वीकार्यता में उनकी त्वचा का रंग मायने नहीं रखता। काजोल और रानी मुखर्जी जैसी अभिनेत्रियों ने भी अपने टैलेंट के बल पर गोरेपन की माँग को बेमानी साबित कर दिया है।
सच पूछा जाए तो अतीत में भी समय-समय पर हिन्दी सिनेमा में साँवले रंग की धनी नायिकाएँ सफल हुई हैं। कुछ ने मेकअप के सहारे खुद को अधिक गोरा बनाकर पेश किया तो कुछ अपने स्वाभाविक रूप में ही दर्शकों के दिलों में जगह बनाने में सफल हुईं। रेखा ने हालाँकि अपना हैरतअँगेज मेकओवर किया, लेकिन अपने ग्लैमरस अवतार के शीर्ष दिनों में भी वे झक्क गोरी कभी नहीं दिखीं।
दक्षिण से ही आईं वैजयंतीमाला, वहीदा रहमान, जयाप्रदा आदि भी गेहुँए से लेकर साँवले रंग वाली ही रही हैं। मीनाकुमारी का रंग भी गोरा नहीं था। स्मिता पाटिल का नाम लेते ही उनकी प्रतिभा के साथ-साथ उनका साँवला रंग जेहन में आता है, जो उनका प्लस पॉइंट ही रहा, कमजोरी नहीं। इन अभिनेत्रियों द्वारा की गई पहल को इतनी बड़ी संख्या में वर्तमान दौर की अभिनेत्रियाँ आगे बढ़ा रही हैं, यह समाज और इंडस्ट्री की परिपक्व होती सोच का ही संकेत है।