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दीपिका पादुकोण ने की छात्रों की मेंटल हेल्थ को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक दिशा-निर्देश की सराहना

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WD Entertainment Desk

, गुरुवार, 31 जुलाई 2025 (13:20 IST)
बॉलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण ने हाल ही में स्टूडेंट्स के लिए मेंटल हेल्थ गाइडलाइंस शेयर की हैं। उन्होंने कहा कि स्कूलों को मेंटल हेल्थ पॉलिसी बनानी चाहिए और स्टाफ को ट्रेन करना चाहिए, ताकि स्टूडेंट्स को सपोर्टिव माहौल मिल सके और उनकी मेंटल हेल्थ से जुड़ी परेशानियों को ठीक से समझा जा सके।
 
दीपिका पादुकोण ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी में द लिव लव लाफ फाउंडेशन (TLLLF) का एक पोस्ट शेयर किया है। दीपिका ने इसे “स्टूडेंट मेंटल हेल्थ के लिए एक ऐतिहासिक कदम” बताया है। जो पोस्ट दीपिका पादुकोण ने शेयर किया है, वो सुप्रीम कोर्ट की स्टूडेंट्स की मेंटल हेल्थ और वेलबीइंग को लेकर जारी की गई गाइडलाइंस का छोटा और संक्षिप्त वर्जन है।
 
26 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने मेंटल हेल्थ को जीवन और गरिमा के मूल अधिकार यानी आर्टिकल 21 का हिस्सा बताया। जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता ने 15 गाइडलाइंस साझा कीं और कोचिंग सेंटर्स को छात्रों की मानसिक सेहत को नज़रअंदाज़ करने के लिए फटकार लगाई।
 
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये गाइडलाइंस तब तक लागू रहेंगी जब तक इस पर कोई ठोस कानून नहीं बन जाता। सभी स्कूलों और कॉलेजों को एक कॉमन मेंटल हेल्थ पॉलिसी तैयार करने को कहा गया है।
 
ये पॉलिसी 'उम्मीद ड्राफ्ट', 'मनोदर्पण योजना' और 'नेशनल सुसाइड प्रिवेंशन स्ट्रैटेजी' पर आधारित होनी चाहिए। इसे हर साल रिव्यू करना होगा और वेबसाइट व नोटिस बोर्ड पर साझा भी करना होगा।
 
ये कदम उस वक्त उठाया गया जब कोर्ट एक 17 साल की नीट छात्रा की मौत से जुड़ी अपील पर सुनवाई कर रही थी। 2024 में विशाखापत्तनम में छात्रा की मौत हुई थी। उसके पिता ने CBI जांच की मांग की थी। हालांकि आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने ये मांग खारिज कर दी थी, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने CBI जांच को मंज़ूरी दे दी है।
 
कोर्ट ने कहा है कि जिन संस्थानों में 100 या उससे ज्यादा छात्र हैं, वहां कम से कम एक ट्रेन्ड काउंसलर, साइकोलॉजिस्ट या सोशल वर्कर होना चाहिए। छोटे संस्थानों को बाहरी मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स से जुड़ना होगा। साथ ही स्कूलों और कॉलेजों को अपने पूरे स्टाफ को साल में दो बार बेसिक मेंटल हेल्थ केयर की ट्रेनिंग देनी होगी, वो भी प्रोफेशनल्स की मदद से। 
 
संस्थानों को ये सुनिश्चित करना होगा कि छात्रों के पास बुलींग, छेड़छाड़, रैगिंग या किसी भी तरह के शोषण की शिकायत करने के लिए एक सुरक्षित और प्राइवेट तरीका हो। इसके साथ ही पैरेंट्स को भी रेगुलर सेशन्स के ज़रिए मेंटल हेल्थ के बारे में जागरूक किया जाएगा।
 
स्कूलों को अपने मेंटल हेल्थ से जुड़े कामों का गुमनाम रिकॉर्ड रखना होगा और हर साल उसकी रिपोर्ट तैयार करनी होगी। इसके साथ ही पढ़ाई के अलावा स्पोर्ट्स, आर्ट्स और पर्सनैलिटी डेवेलपमेंट जैसी एक्टिविटीज़ को भी अहमियत दी जाएगी। एग्ज़ाम्स को इस तरह प्लान किया जाए कि बच्चों पर ज़रूरत से ज़्यादा दबाव न पड़े। मकसद ये है कि बच्चे सिर्फ नंबरों से नहीं, बल्कि हर तरह से आगे बढ़ें और खुद को बेहतर बना पाएं।
 
बेंच ने साफ कहा है, अगर किसी केस में वक्त पर या सही तरीके से कदम नहीं उठाए गए, खासकर जब लापरवाही की वजह से बच्चा आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने जैसा कदम उठाए, तो इसे संस्था की ज़िम्मेदारी माना जाएगा और एडमिनिस्ट्रेशन पर कड़ा क़ानूनी और रेगुलेटरी एक्शन लिया जाएगा।

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