मशहूर अभिनेता संजय मिश्रा 'घाशीराम कोतवाल' के नए हिंदी अवतार में नाना फडणवीस के दमदार रोल में नजर आने वाले हैं। यह न सिर्फ थिएटर लवर्स के लिए ट्रीट है, बल्कि सत्ता, चालबाज़ी और शोषण पर करारा तमाचा भी है। विजय तेंडुलकर द्वारा लिखित और वसंत देव द्वारा रूपांतरित इस क्लासिक पॉलिटिकल प्ले को अभिजीत पानसे और भालचंद्र कुबल ने डायरेक्ट किया है, और इसका प्रोडक्शन किया है आकांक्षा ओमकार माळी और अनिता पालांडे ने।
मराठी लोकनाट्य की खुशबू और आज की सच्चाइयों का ज़बरदस्त मिक्स, घाशीराम कोतवाल एक ऐसी कहानी है जो 18वीं सदी के पेशवा काल में सेट है, लेकिन इसकी गूंज आज की राजनीति तक सुनाई देती है। एक शख्स जो ताकत के लिए अपनी बेटी तक को दांव पर लगा देता है – और अंत में वही सिस्टम उसे चबा जाता है।
संजय मिश्रा ने अपने किरदार के बारे में कहा, नाना सिर्फ इतिहास की किताबों में बंद कोई किरदार नहीं, वो एक सोच है। ये नाटक हमारे आज के हालात का आईना है। मेरे लिए ये रोल निभाना एक्टिंग नहीं, बल्कि सियासी सच्चाइयों से आमना-सामना है।
संतोष जुवेकर, जो निभा रहे हैं घाशीराम का रोल, कहते हैं, “घाशीराम बनना मतलब रस्सी पर चलना – कभी पीड़ित, कभी साजिशकर्ता, और कभी एक ट्रैजिक हीरो। इसमें दर्द भी है, पावर भी और कविता भी। मुझे इसे मंच पर उतारने का बेसब्री से इंतज़ार है।”
उर्मिला कानेटकर, जो गुलाबी का रोल निभा रही हैं, बताती हैं, गुलाबी सिर्फ लावणी डांसर नहीं है, वो इस कहानी की आत्मा है। संगीत और नृत्य के जरिए वो उस दर्द को बयां करती है, जिसे औरतें अक्सर अंदर ही अंदर जीती हैं। मेरे लिए ये सबसे इमोशनली डिमांडिंग रोल है।
फुलवा खामकर की कोरियोग्राफी में, 2025 की ये प्रस्तुति पुराने रस और संगीत को बनाए रखते हुए आज की हकीकत से जोड़ती है। नैतिक पतन, सत्ता का दुरुपयोग और औरतों का बाजारीकरण जैसे मुद्दे आज भी उतने ही ताज़ा लगते हैं। घाशीराम कोतवाल हिंदी में 14 अगस्त को अपना प्रीमियर करेगा।