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आमतौर पर हास्य फिल्म बनाने वाले प्रियदर्शन ने इस बार ऑनर किलिंग जैसे गंभीर विषय पर ‘आक्रोश’ नामक फिल्म बनाई है। ऑनर किलिंग के नाम पर पूरी दुनिया में हर वर्ष 5000 से भी ज्यादा हत्याएँ होती हैं। 1995 में टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक आलेख ‘ऑनर किलिंग’ पर यह फिल्म आधारित है।
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नीची जाति का एक लड़का अपने दो दोस्तों के साथ बिहार स्थित झांजर नामक एक गाँव में रामलीला देखने जाता है। दिल्ली विश्वविद्यालय के ये तीनों छात्र उस गाँव से लापता हो जाते हैं। तीन महीने गुजरने के बाद भी उन तीनों के बारे में कोई सुराग हाथ नहीं लगता। मीडिया मामले को लगातार उठाता है और बिहार के विद्यार्थियों द्वारा आंदोलन किया जाता है तो सरकार पर दबाव बनता है।
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सीबीआई ऑफिसर्स सिद्धांत चतुर्वेदी (अक्षय खन्ना) और प्रताप कुमार (अजय देवगन) को यह जिम्मेदारी सौंपी जाती है कि वे मामले की तहकीकात करे। प्रताप बिहार का ही निवासी है और अच्छी तरह जानता है कि जातिवाद की जड़े झांजर जैसे गाँव में कितनी गहरी हैं। प्रताप अपने आकर्षक व्यक्तित्व और चतुराई से मामले की जाँच करता है जबकि सिद्धांत कॉपीबुक स्टाइल में सीधे-सीधे काम करने में यकीन रखता है। दोनों की इस बात पर टकराहट भी होती है। जाँच करना दोनों के लिए आसान नहीं है क्योंकि गाँव की पुलिस फोर्स, जमींदारों और नेताओं से मिली हुई है जो शूल सेना की एक शाखा चलाते हैं। नीची जाति के लोग भी उनकी कोई मदद नहीं करते हैं क्योंकि वे शूल सेना से डरे हुए हैं जो आए दिन उन्हें डराया-धमकाया करती है।
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रोशनी (अमिता पाठक) के पिता गाँव के शक्तिशाली और धनवान लोगों में से एक हैं। वह इन दो ऑफिसर्स को कुछ ऐसी बातें बताती हैं, जिससे उन्हें एक नई दिशा मिलती है। जैसे-जैसे मामले की छानबीन करते हुए आगे बढ़ते हैं गाँव के कुछ लोग दंगा भड़का देते हैं। घर जला देते हैं। दिन-दहाड़े हत्याएँ कर देते हैं। गीता (बिपाशा बसु) नामक लड़की पर सिद्धांत की मदद से प्रताप अपना प्रभाव जमाता है जो कई महत्वपूर्ण राज उन्हें बताती है। किस तरह से कई रोमांचक घटनाओं के बीच दोनों इस गुत्थी को सुलझाते हैं ये इस कहानी का क्लाइमैक्स है।