जब यह बात वह अपनी गर्लफ्रेड आरजू को बताता है तो वह उसके साथ वहां जाने में हिचकती है। कुणाल उसे मना लेता है। दोनों शादी कर केपटाउन के लिए रवाना हो जाते हैं। कुणाल का बॉस उसे नए घर की चाबी देता है और सात दिन बाद काम पर आने को कहता है ताकि वह अच्छे से सैटल हो सके। सात दिनों में कुणाल और आरजू खरीददारी करते हैं। कैफे हाउस में जाते हैं। पार्क और टूरिस्ट हॉटस्पॉट पर घूमते हैं।
इसके बाद कुणाल काम पर आता है और अपनी स्ट्रीट स्मार्टनेस का उपयोग करते हुए महंगे हीरों को कम दाम में खरीदता है और अपनी कंपनी को करोड़ों का फायदा पहुंचता है। कुणाल के काम से कंपनी का मालिक धर्मेश ज़वेरी बेहद प्रभावित होता है और कुणाल अब उनके साथ काम करने लगा है। धन और लक्जरी लाइफस्टाइल के चक्रव्यूह में कुणाल धीरे-धीरे फंसता जाता है।
काम में व्यस्त कुणाल अपनी पत्नी आरजू की उपेक्षा करने लगता है। समय नहीं देता है। इसका असर उनके संबंधों पर होता है। एक दिन कुणाल को मि. जवेरी बताते हैं कि यह कंपनी सिर्फ हीरों का काम ही नहीं करती बल्कि माफियाओं के लिए भी कई तरह के अवैध काम करती है। वे कुणाल के आगे ऑफर रखते हैं कि यदि वो गलत कामों में भी उनका हाथ बंटाए तो ज्यादा पैसे कमा सकता है। साथ ही चेतावनी भी मिलती है कि वह कंपनी के ऐसे राज जान गया है कि अब कंपनी छोड़ कर कही नहीं जा सकता है।
कुणाल यह बात अपनी पत्नी को बताता है। वह उसे भारत वापस चलने के लिए कहती है, लेकिन कुणाल को पता है कि यहां से निकल पाना बेहद मुश्किल है। कुणाल कंपनी के साथ ही काम करने का फैसला करता है ताकि वह उन लोगों के खिलाफ सबूत इकट्ठा कर सके। धड़कन तेज करने वाले क्लाइमेक्स में तमाम मुश्किलों के बावजूद कुणाल एक विजेता के रूप में उभर कर सामने आता है और सारे सबूत पुलिस को सौंपता है। फिल्म के निर्देशक का कहना है कि यह एक ऐसे युवा की कहानी है जो भौतिक साधनों के पीछे भागता है, लेकिन जिंदगी की प्रक्रिया से वह आंतरिक रूप से अमीर बनकर सामने आता है।