बादशाहो हमें 1975 में ले जाती है जब राजनीतिक उठा-पटक मची हुई थी। आपातकाल का दौर था और कुछ शक्तियां बुरी तरह हावी थी। रॉयल परिवारों के पीछे सरकार पड़ी हुई थी, खासतौर पर राजस्थान में। उनसे कहा जा रहा था कि 1971 में उन्होंने अपनी संपत्ति घोषित नहीं की और उसे जब्त किया जा रहा है। सोना, जवाहरात, एंटिक्स जैसी चीजें ले ली गईं। जयपुर में रहने वाली रानी गीतांजलि (इलियाना डीक्रूज) के महल पर छापा मारा गया और सोना जब्त कर लिया गया। गीतांजलि को संपत्ति घोषित न करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया।
सोने को ट्रक में भर कर जयपुर से दिल्ली सड़क के जरिये ले जाने का फैसला लिया गया। गीता को ऐसे समय में भवानी सिंह (अजय देवगन) की याद आई जो उनके सोने को बचा सकता था। भवानी ने बदमाशों की एक गैंग बनाई जो उसके जैसे ही खूंखार हैं।
दलिया (इमरान हाशमी) में जमाने भर की बुराई थी। एक नंबर का इश्कबाज जो औरतों को देख फिसल जाता था। वह सबको जानता था और सब उसको। वेश्यालयों में वह सोता है और जब जान पर बन आती है तब ही उठता है। एक ही बात उसमें अच्छी है कि वह भवानी के प्रति वफादार है और उसकी हर बात मानता है।
इस गैंग का एक मेंबर है टिकला उर्फ गुरुजी (संजय मिश्रा)। टिकला की उम्र हो चली है। शराब उसकी कमजोरी है और गुस्सा नाक पर रहता है। ताला खोलने में माहिर और उसकी उंगलिया चाकू से भी तेज हैं। गीतांजलि की वफादार, सेक्सी और ताकतवर संजना (ईशा गुप्ता) भी इस गैंग में शामिल हो जाती है।
इन सभी का एक ही मिशन है, गीतांजलि के सोने को बचाना जिसे मेजर सेहर सिंह (विद्युत जामवाल) की अगुवाई में ले जाया जा रहा है। 600 किलोमीटर का रास्ता है। 96 घंटे इनके पास हैं। इस गैंग के सामने सिर्फ कठिनाइयां हैं। पारस्परिक प्रतिद्वंद्विता, राजनीतिक ईर्ष्या, शाही रहस्य, धोखे और खतरनाक रेगिस्तान के बीच क्या यह मिशन कामयाब होगा?